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Amit Singhal "Aseemit"
यदि हृदय से हृदय तक, प्रेम भाव का बहाव होता रहे। फिर ग्रीष्म ऋतु में धूप से और, वर्षा ऋतु में वर्षा से बचाव होता रहे। ©Amit Singhal "Aseemit" #यदि #हृदय #से #हृदय #तक
"अर्श"
प्रथम रश्मि का पान सखी, उसके नयनों का मैंने पाया है। मेरे उर के आनन में सावन, प्रथम बार ही तो आया है। मैं कैसे स्वप्नों को पुलिनो में, भीगने को हे प्रिये छोड़ दूं, मेरे जीवन को निशा प्रहर, भी तो प्रथम बार भाया है। वो विहग चकोर निशा में, विरह राग अलापता... केवल इसी प्राणी का विरह, प्रति निशा में आया है। प्रथम रश्मि का पान सखी, उसके नयनों का मैंने पाया है अर्श हृदय से..
"अर्श"
आज मध्य पथ मिली प्रेमिका, चिर स्मित लिए, वो मृगनयनीका, सौंदर्यता की पराकाष्ठा, करती जब मलय वन विहार, हर भुजंग अवलुंठन को आतुर, करती जब अंगविक्षेप सुकुमार। पराग जिसके चरण रज कन, प्रसून पल्लव जिसे सहलाते है, दल अलियों का, या अप्सराओं का, आकर यहीं भरमाते है। हे मृगनयनी! हे वल्लरिका! हे निशीथ की चंद्रिका, नवल गान स्व मृदु कंठ से, गाओ कोई प्रेम गीत कोकिला। अर्श हृदय से..
BANDHETIYA OFFICIAL
लिख चुका है गीत,चूके शब्द न आघात में, तुम हृदय रखते जो हो तो समझो बात-बात में, अक्षरों का चुभना हो फिर भाव आत्मसात् में, बोल आत्मा के ही प्यारे, बात तीर न गात में। ©BANDHETIYA OFFICIAL गीत हृदय से हृदय तक। #selfhate
Sandeep Shrivastav
किसी की गलतियों का हिसाब ना कर, खुदा बैठा है तू हिसाब ना कर।। ©Sandeep Shrivastav हृदय की कलम से
Shashi Bhushan Mishra
फूलों से रथ सजा बजाकर डोली निकली शान से, पिया मिलन की बेला आई रुख़सत हुई जहान से ॥ छूटा पीछे सखी-सहेली डोली में मैं चढ़ी अकेली, भीँगे नयन सगे-संबंधी लौट गये श्मशान से ॥ जिनके संग जुड़ा था नाता जीवन,यौवन,सुख-दुख का, टूट गये वो बंधन सारे गीता और कुरआन के ॥ छोड़ जगत के नाते-रिश्ते धन-दौलत और माल-खजाने, प्रेम भक्ति से गोद भराई तृप्त हृदय मुस्कान से ॥ --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra #तृप्त हृदय मुस्कान से#