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Himanshu Mishra
ज़िंदगी pen drive सी नहीं कि जब जो चाहो वो गीत बजा दो बल्कि radioसी है पता नहीं अगले पल कौन-सा गीत बज जाए। ©Himanshu Mishra ज़िन्दगी के संदर्भ में☺️ #Light
Rishiraj sharma
हम जीतेंगे-हमे जीतेंगे ,कोरोना से जंग जीतेंगे महामारी को हाथों से हर पल हम धो के भगायेगे घर मे रह कर घर वालो के संग देश को बचायेगें हम जीतेंगे-हमे जीतेंगे ,कोरोना से जंग जीतेंगे संकट की इस घड़ी में हमें परिवार संग देश को बचाना है मोदी जी के नियमों का पालन कर,हमे फिर भारत बनाना है हम जीतेंगे-हमे जीतेंगे कोरोना से जंग जीतेंगे परिवार संग रहकर हर दूजे को हाथ जोड़ नमस्कार करना है साथ- साथ दूरी का ध्यान रख औरो को भी ये बात सीखनी है हम जीतेंगे-हमे जीतेंगे कोरोना से जंग जीतेंगे चंद दिनों की कैद मैं बिखरा भारत फिर भारत बन जायेगा ध्यान नही दिया तो बहुत सी मासूम जाने ले जायेगा छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखो फिर कोरोना को भी रोना आयेगा , ध्यान नही रखा तो ये तुम्हे भी रुला जायेगा... हम जीतेंगे-हमे जीतेंगे कोरोना से जंग जीतेंगे हम जीतेंगे-हमे जीतेंगे कोरोना से जंग जीतेंगे.... *R&J* RISHIRAJ एक विचार कोरोना के संदर्भ में
Divya Joshi
अब तो एक ही आस है, मेरे भोलेनाथ! काश! आपसे वरदान प्राप्त कोई भस्मासुर आज मेरे सिर पर हाथ धर दे। और मैं अपने अस्तित्व समेत सम्पूर्ण भस्म हो जाऊँ। ©Divya Joshi संदर्भ 1 कुछ गुनाहों की माफी नहीं होती संदर्भ 2 जब जीवन में सब कुछ खत्म सा प्रतीत हो। संदर्भ 3 मोक्ष की आस #guilt #पश्चाताप #Sawankamahin
Manish Mishra
तेरे सिवा कौन मेरा सहारा यहाँ, एक तू ही है जिससे दुनिया की तमाम उम्मीद लगाए बैठा हूँ। मुझे पता है कि, तुझे पाना आसान नही लेकिन फिर भी, तुझे पाने की हर जिद किए बैठा हूँ।। आजकल के सरकारी नौकरी के संदर्भ में।
Vivek Singh rajawat
"सत्ता और कवि" सत्ता के जड़ें खँगालने बैठा हैं कवि, बीत गया दिन अस्त हो गया रवि, कालिमा छाई शशि ने हुँकार भरी, कवि नयनों में निद्रा आ उभरी, क़लम थक गई एक ओर झुक गई, आराध सिंधु सत्ता से घबरा गई, एक ओर प्रजातंत्र का किया बखान, दूजी ओर तोड़ दिया अखंड हिन्दोस्तान, अराजकता ने अपने कदम हैं फैलाये, आतंकवाद गर्व से अपना शीश उठाये, राजनीतिक पदों पर विराजमान दलाल हैं, उनकी राष्ट्र के प्रति कट्टरता भी कमाल हैं, आथिर्क स्तिथी राष्ट्र की मांग रही न्याय, यहाँ कानून व्यवस्था ही झेल रही अन्याय, ईमान बिक रहा हैं कीमत चंद रुपये, जो न बिकाऊ ठहरा वो नुकसान में आये, सरे आम लूट ,हत्या ,गोली कांड, पुलिस भी हो गयी चापलूसी भांड, चल रहा राजनीतिक साम्प्रदायिक चुनावी दंगल, भाड़ में जाये अखण्डता होने दो अमंगल, रचयिता भी गहन चिंतन सोच में डूबे, न जाने सत्ता में किसके क्या मनसूबे, यहाँ चहरों पर नकाबों की कमी नही , क्या पता कि कौन हो मनुष्य सही, बीत गया दिन अस्त हो गया रवि, सत्ता के जड़ें खँगालने बैठा हैं कवि। विवेक सिंह राजावत। राजनीतिक संदर्भ से कुछ लेना देना नही है इसका।