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vishal suryawanshi
अरे असेल ती गुलाबाची पाकळी पन। आपले मित्र आपल्यासाठी सोन्याची साखळी ...
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी मौसम ले जब अंगड़ाई,बहार बसन्त की आयी खिल गयी कपोले,उमंग चारो ओर छायी चल गयी पुरवाई,खेतो में फसले लहरायी आनन्द मन मे खुशियाँ समायी रंग गुलाल ले हर्षा रहे लोग लुगाई मिट गयी सब दूरियाँ, एक रंगों में रंगाई खुशियाँ जब देती है दस्तक उत्सव त्योहारों का रचायी धरती से उड़े गुलाल,आसमान हर्षायी अनूठे है भारत वासी हर रीतिरिवाजों में जिंदा दिली दिखायी गालो में रंग पोत, अपने पन की मिसाल जलायी होली की हुड़दंग में भी,प्रेम की परिभाषा देती दिखायी प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Holi गालो में रंग पोत, प्रेम की परिभाषा सिखाये #Holi
TabishAhmad 'تابش '
पोत दो लब पे स्याही इंक़लाब की, लब जो खुले निकले सदा इंक़लाब की। पोत दो लब पे स्याही इंक़लाब की, लब जो खुले निकले सदा इंक़लाब की। #nojoto #shayari #hindi #hindipoetry
Mo k sh K an
Anand Nagda
आई आहे माझी लाख मोलाची ! Just wrote while observing the innocence between a mother and her 4month old daughter in train.. Full article here:- न सोन्याची न चांदीची
Anand Nagada
आई आहे माझी लाख मोलाची ! Just wrote while observing the innocence between a mother and her 4month old daughter in train.. Full article here:- न सोन्याची न चांदीची
अम्बुज बाजपेई"शिवम्"
"तू कैद ही रह न उड़ आसमां में हर मुंडेर पर अब गिद्धों का डेरा हो गया है यूं कालिख पोत रही हैं संस्कृति पर पीढ़ियां आज़ की देवियों के लिए असुरक्षित देश मेरा हो गया है।" "तू कैद ही रह न उड़ आसमां में हर मुंडेर पर अब गिद्धों का डेरा हो गया है यूं कालिख पोत रही हैं संस्कृति पर पीढ़ियां आज़ की देवियों के लिए अस
Sanjeev Prajapati
शायद ही कोई इतना नासमझ होगा जो काली और गोरी चमड़ी पर पुते रंगीन पाउडर और क्रीमों को न पहचान पाए। होठों पर लाली पोत लेने पर और भौहों को उस्तरे से छीलकर उन्हें काले रंग से नकली भौंहें बना लेने पर अपने आप को मॉडल दिखने वाले सपना निरर्थक है किसी भी वस्तु की स्थिति और उसका आकार किसी से छुपता नहीं है। ©Sanjeev Prajapati शायद ही कोई इतना नासमझ होगा जो काली और गोरी चमड़ी पर पुते रंगीन पाउडर और क्रीमों को न पहचान पाए। होठों पर लाली पोत लेने पर और भौहों को उस्तरे
Anil Siwach
VATSA
क़ुर्बत में जो कहा, वो मलाल आखरी था जिस साल तुम बिछड़े, वो साल आखरी था रंजिशों के साए में, कुछ यूं, ख्वाहिशें मरीं पूछा ना कभी तुमसे, वो सवाल आखरी था बहुत से लोग चेहरे पे, कालिख पोत जाते हैं तेरे हाँथों जो लगा, वो गुलाल आख़री था थी हर रोज़, कत्ल होने की हसरतें मुझे उनकी दरियादिली का, वो मिसाल आख़री था बस नाम बदल बदल कर सुनाता हूं हर रोज़ तुमको था सुनाया, वो ख़याल आख़री था चीख़ता हूँ अब, बहुत कम बात करता हूँ चुप चाप जो सुनाया, इक़बाल आख़री थी है वादियों में भी, बहुत उदासी के निशान उस रात तुम हँसी थी, वो कमाल आख़री था #आखरी #वत्स #vatsa #dsvatsa #illiteratepoet #yqbaba #yqhindi #hindipoetry क़ुर्बत में जो कहा, वो मलाल आखरी था जिस साल तुम बिछड़े, वो साल आ