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Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी अगर एक बुराई,किसी को आताताई बनाकर युगों युगों तक फूक सकती है अधर्मी बनाकर,इतिहास गढ़ सकती है आज पापो का और बुराइयों का दम्भ भर कर,जग इतराता है रावण से बड़ा पाप करके खुद रावण जलाता है मांस मंदिरा कत्ल खाने सजाकर राम के भारत मे,विसंगतियों को फैलाता है चिंतन की धारा को,शोषण युक्त बनाकर राम राज्य स्थापित करना चाहता है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Dussehra खुद विसंगतियां फैलाकर,बुराई स्वरूप रावण जलाता है #Dussehra
saurabh
बातों की अति क्षीण कल्पना में हमको बिसराते क्यों हो जिस पर हो अनुबंध क्षीण तुम उस पथ पर जाते ही क्यों हो कितने बदल रहे हो तुम खुद यह तुमको कैसे बतलाएं हर एक मास वही स्मृतियां क्या रख्खे क्या-क्या बिसराएं अब इन बचकानी बातों पर फिर हम अपना शीश झु
saurabh
मेरी आशाएं बिखर गई हर एक विसंगति जीत गई अंबर को तकते तकते ही संपूर्ण निशा भी बीत गई अकलंकता छिपी मेरे मन में और जीवन है कलंक गाता हर रूप निशा ही आती है हर बार भास्कर छुप जाता हर बार बिखरना या बनना उसके हाथों में आता है हरबार हमारा यह अंतस रो रो कर हमें बताता है हर बार प्रश्न आकर मेरे ख्वाबों को बिखराते हैं हरबार हमारा पथ कैसा क्यूं द एक कलम ही कुछ पन्नों पर सारा जीवन लिख देता है एक कलम कुछ अल्फाजों में कैसे ये मन लिख देता है एक कलम सारी बाधाएं और विसंगतियां लिखता है एक
saurabh
यह एक विसंगति सा जीवन हर सांस कहां तक गाएगी हम दौड़ रहे हैं अब जिस पर वह रांह कहां तक जाएगी हर बार विसंगतियां स्वर में हर बार ह्रदय का वो क्रंदन उसकी खातिर ये प्रणय मेरा केवल ठहरा हठ का बंधन उसकी गरिमा को ठेस लगी ऐसा भी मैंने कर्म
saurabh
🌼🌼🌼 फिर उजालों में कुछ नहीं दिखता फिर अंधेरे में दिख रहा हूंँ मैं इक विसंगति जो अनकही ठहरी खुद के ही संग लिख रहा हूंँ मैं कोई समझेगा कभी सोच के जीवन में आखिरी व्यंग लिख रहा हूंँ मैं... !! खुद के ही संग लिख रहा हूंँ मैं.... 🙏🙏🙏 Bye Bye Bye bye 👋 yourquote and great followers 📖✍ I wrote my life , happiness, tears and grief. Now it is time to be ownself. 😊 I will come when I
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी ढल गये सब सपने,उदासियां चिढ़ाती है ढलती शाम बेचैनियाँ रह जाती है किसे सुनाऊँ अपबीती जिंदगी तार तार हुयी जाती है गृहस्थी की नाव रोज डग मंगाती है पतझड़ से झड़ गये रोजगार धंधे बाहर बसंत बनकर कपोले उमंगों की कियो नही आती है घिरे हुये है महँगाई के तुफानो से आमद की झोले सबको सताती है सुनो नईया खेवन वाले जीवन को मझझार में कियो डुबाते हो सत्ता की चाबी पाकर डोर जीवन की कियो काट जाते हों फले फूले मुल्क में विसंगतियाँ कियो बोये जाते हो प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" फले फूले मुल्क में विसंगतियाँ कियो बोये जाते हो
Anup Kumar
Alok Vishwakarma "आर्ष"
हुक्मरानों की नहीं - समाज की जिम्मेदारी है दोषी किसे ठहरायें जब सारी गलती हमारी है देश में कौन सी ऐसी जगह है, जहाँ कोई समाज स्थापित न हो.. फ़िर उसी समाज से निकले व्यक्ति का अन्तर विसंगतियों से अगर भर जाए तो दोषी कौन है फ़िर ?