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Rahul Paswan
Himshree verma
आप पर मुझे गर्व है ! इक नारी होकर अपने राष्ट्रीय पद हासिल किया और सभी नारियों की सम्मानित बनी 👏👏👏👍 ©Himshree verma #राष्ट्रपति #President
Ravinder Sharma
#WorldStudentsDay हौंसलें और परिंदों को तालीम दी नहीं जाती ऊंची उड़ानों की शुरुवात लिखी नहीं जाती उन जंगी जहाजों और यानों की महज इत्तेफाक है ये आखिर खोज पहुंच ही जाती है ऊंचाई मापने आसमानों की ©Ravinder Sharma #राष्ट्रपति #President #apjabdulkalam
kavi manish mann
मेनका गांधी कहती हैं "जो हुआ बहुत भयानक हुआ, वैसे भी उनको फांसी मिलती। आप कानून हाथ में नहीं ले सकते।" इनसे कोई पूछेगा, निर्भया मामले में कितनों को फांसी मिली।और इसके उल्टा दया याचिका की सिफारिश हो रही है राष्ट्रपति से। 😈😈 #राष्ट्रपति #yqbaba #yqdiary
Parasram Arora
आज जीवन भार इसलिए लगता है क्योंकि हम कल को डो रहे है जो बीत गए है ढेरों कल. उनका पहाड़ भी हमारी छाती पर सवार है और जो आये नहीं कल. उनका. पहाड़ भी हमारी छाती पर सवार है इन दो पाटन क़े बीच आदमी पिसता है मर जाता है घसीटता है रोता है टूटता है खंडित होता है लेकिन इन दो पाटों क़े बीच भी एक स्थान है मुक्ति का द्वार है ... वह हैवर्तमान का क्षण ©Parasram Arora वर्तमान.......
काल की कलम से
एक बार एक गांव में बड़ी महामारी फैली. पूरे गांव को लंबे समय तक के लिए बंद कर दिया गया. केवट की नाव घाट पर बंध गई. कुम्हार का चाक चलते चलते रुक गया. क्या पंडित का पत्रा, क्या बनिया की दुकान, क्या बढ़ई का वसूला और क्या लुहार की धोंकनी, सब बंद हो गए. सब लोग बड़े घबराए. गांव के दबंग जमींदार ने सबको ढांढस बंधाया. सबको समझाया कि महामारी चार दिन की विपदा है. विपदा क्या है, यह तो संयम और सादगी का यज्ञ है. काम धंधे की भागम-भाग से शांति के कुछ दिन हासिल करने का सुनहरा काल है. जमींदार के भक्तों ने जल्द ही गांव में इसकी मुनादी पिटवा दी. गांव वालों ने भी कहा जमींदार साहब सही कह रहे हैं. लेकिन जल्द ही लोगों के घर चूल्हे बुझने लगे. फिर लोग दाने-दाने को मोहताज होने लगे. कई लोग भीख मांगने को मजबूर हो गए. जमींदार साहब ने कहा कि यही समय पड़ोसी और गरीब की मदद करने का है. यह दरिद्र नारायण की सेवा का पर्व है. लोग कुछ मन से और कुछ लोक मर्यादा से मदद करने लगे. उन्होंने सोचा कि चार दिन की बात है, मदद कर देते हैं. लेकिन मामला लंबा खिंच गया. मदद करने वालों की खुद की अंटी में दाम कम पड़ने लगे. जब घर में ही खाने को न हो, तो दान कौन करे. हालात विकट हो गए. सब जमींदार की तरफ आशा भरी निगाहों से देखने लगे. जमींदार साहब यह बात जानते थे. लेकिन उनकी खुद की हालत खराब थी. सब काम धंधे बंद होने से न तो उन्हें चौथ मिल रहा था और न लगान. ऊपर से जो कर्ज उनकी जमींदारी ने बाहर से ले रखे थे, उनका ब्याज तो उन्हें चुकाना ही था. लेकिन जमींदार साहब यह बात गांव वालों को बताते तो फिर उनकी चौधराहट का क्या होता. इसलिए उन्होंने कहा कि अगले सोमवार को वह पूरे गांव के लिए आर्थिक सहायता की घोषणा करेंगे. इतनी बड़ी घोषणा करेंगे, जितनी उनकी पूरी जमींदारी की आमदनी भी नहीं है. लोगों को लगा कि उनकी सूखती धान पर अब पानी पड़ने ही वाला है. सोमवार आया. जमींदार साहब घोषणा शुरू करते उसके पहले उनके कारकुन ने आकर जमींदार साहब की तारीफ में कसीदे पढ़े. उन्हें सतयुग के राजा दलीप, द्वापर के दानवीर कर्ण और कलयुग के भामाशाह के साथ तौला. अब जमींदार साहब ने घोषणा की: वह जो गांव के बाहर पड़ती जमीन पर पड़ी है, उस पर अगले साल गांव वाले खेती करें और खूब अनाज उपजाएं, चाहें तो नकदी फसलें भी लगाएं. उन्हें विदेशों को बेचें और लाखों रुपये कमाएं. मेरी ओर से लाखों रुपये की यह भेंट स्वीकार करें. फिर उन्होंने कहा कि गांव के चार साहूकारों के पास खूब पैसा है, जाओ जाकर जितना उधार लेना है, ले लो. यह मेरी ओर से आप लोगों को दूसरी सौगात है. इन दो घोषणाओं के बाद लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे कि यह क्या बात हुई. जमींदार साहब तो मुफत का चंदन, घिस मेरे नंदन, जैसी बातें कर रहे हैं. हमारे लिए कुछ कहेंगे या नहीं. खुसर-फुसर शुरू हो पाती, इससे पहले ही जमींदार साहब ने कहा: बहुत से लोग घर में राशन न होने और भूखे रखने की शिकायत कर रहे हैं. उन्हें चिंता की जरूरत नहीं है, उनके लिए तो मैंने महामारी के शुरू में ही राशन दे दिया था. उनके पास तो खाने की कमी हो ही नहीं सकती. लोगों ने अपने भूखे पेट की तरफ देखा और सोचा कि जो हम खा चुके हैं, क्या उसे दुबारा खा सकते हैं. जमींदार साहब ने आगे घोषणा की कि जिन कुम्हारों का चाक नहीं चल रहा है, जिन पंडित जी का पत्रा नहीं खुल पा रहा है, जिस लुहार की धोंकनी नहीं चल रही और जिस केवट की नाव घाट पर लंबे समय से बंधी है, वे बिलकुल परेशान न हों. पत्रा बनाने वाली, धोंकनी बनाने वाली और नाव बनाने वाली कंपनियां भी बड़े साहूकारों से कर्ज ले सकती हैं और इन चीजों का निर्माण शुरू कर सकती हैं. हम आपदा को अवसर में बदलने के लिए तैयार हैं. यही ग्राम निर्माण का समय है. केवट और पंडित जी एक दूसरे को देखकर सोचने लगे कि कंपनियों को कर्ज मिलने से हमारा काम कैसे शुरू हो जाएगा. जमींदार साहब ने आगे कहा: हम चौथ और लगान वसूली में कोई कमी तो नहीं कर रहे, लेकिन लोग चाहें तो दो महीने की मोहलत ले सकते हैं. यह हमारी ओर से एक और आर्थिक उपहार है. इससे पहले कि गांव वाले कुछ सवाल करते, सभा में जोर का जयकारा होने लगा. जमींदार साहब के कारिंदों ने जमींदार साहब की जय और ग्राम माता की जय के नारे गुंजार कर दिए. चारों तरफ खबर फैल गई कि गांव में ज्ञात इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक सहायता पहुंच चुकी है. यह हल्ला तब तक चलता रहा, जब तक कि हर आदमी को यह नहीं लगने लगा कि उसके अलावा सभी को मदद मिल गई है. उसे लगा कि वही अभागा है जो मदद से वंचित है. जमींदार साहब की नीयत तो अच्छी है. जब सबको दिया तो उसे क्यों नहीं देंगे. अब उसकी किस्मत ही फूटी है तो जमींदार साहब क्या करें. उसने भी जमींदार साहब का जयकारा लगाया. बस गांव के दो बुजुर्ग थे जो कब्र में पांव लटकाए यह तमाशा देख रहे थे. वे कुछ कहना तो चाह रहे थे, लेकिन इस डर से कि कहीं जमींदार के कारिंदे उन्हें ग्राम द्रोह के आरोप में जेल में न डलवा दें, इसलिए चुप ही बने रहे. इसके अलावा उन्हें उन्मादी भीड़ की लिंचिंग का भी डर था. इसलिए उन्होंने एक लोटा पानी पिया और जोर की डकार ली.💐 #वर्तमान