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Akhilesh Kumar
मैं तुम से.... हम बस इतना ही है .... प्रेम अखिलेश ©Akhilesh Kumar देह से देह तक
पूर्वार्थ
देह अति आवश्यक है किंतु यह गंतव्य नहीं माध्यम है दुख होता है जब हम दैहिक विलासिता अर्जित कर , भोग कर स्वयं पर इठलाते हैं हमें लगता है हमनें उसे अर्जित किया, भोगा! सत्य ये है की विलासिता ने हमें अर्जित कर लिया, बिना कोई मोल चुकाये, हमें अपना दास बनाया हमें तप योग्य नहीं रहने दिया हमसे सहनशीलता छीन ली प्रतिक्षा का गुण गौण कर दिया जब हम दो कदम नंगे पाँव नहीं चल पाते चप्पल हंसती है हमपर जब हम एक घंटे की भूख नहीं सह पाते, तो देह अपनी गिरती संभावनाओं पर रोती है जब हमें गौ माता के गोबर से अपनी मौलिकता का एहसास होने के बजाए, बदबू आती है, तो धरती हमें अपनी गोद में पालती नहीं है, बल्कि हमारा बोझ सहन करती है मनुष्य असीम संभावनाओं का स्वामी है, लेकिन एक ऐसा स्वामी जिसे अपनी ही निधि का पता नहीं या पड़ी नहीं कामनाएं, वासनाएं, इक्षाएं, विलासिता ये सब जीवन के महत्वपूर्ण अंग हैं किंतु जीवन नहीं? जीवन एक वृहद संकल्पना है। जब हमारे जीवन का लक्ष्य देह को सुख के साधन उपलब्ध कराना बन जाता है, तो हमें नश्वर सुख की अनुभूति तो अवश्य हो सकती है, किंतु इसमें शाश्वत मन का हर्ष, आत्मा की तृप्तता संभव नहीं। ©purvarth #देह
Manoj Srivastava
एक नदी सी बहती थी उसके देह के अंदर। मैं भी आकुल था, उससे मिलने को समंदर। #देह
Dhananjay(dhanuj) Sankpal
_#कवी'धनूज. देह माझा रक्ताने न्हाला पात्रात वेलियारच्या निशब्द निजला खेळ करमणूकीचा, बुद्धीजीवी मानव प्रजातीचा माझ्या मरणाने संपला का..? कशासाठी..? असंख्य विचांरानी तडफडला देह माझा रक्ताने न्हाला भूकेल बाळ पोटीशी मस्तकी चित्कार झाला आई..आई..ची हाक पोटी हाकेचा अंत झाला मानवतेचा पोशाख लेऊनी देह राक्षसी वाढला रक्त मांस लुटण्यास गिधाडे मानवरूपी जन्मला दयेचा पाझरपाट रक्ताने घेतला निर्दयी मानवतेचा चेहरा बघ कसा उजागर झाला बघ कसा उजागर झाला देह माझा रक्ताने न्हाला... देह माझा रक्ताने न्हाला -लेखक'कवी- (धनंजय संकपाळ) #धनूज | रंग मनाचे. देह माझा
Akhilesh Kumar
देह पर जय ही प्रेम की सच्ची जय है प्रेम को देह से अलग कभी कोई नहीं जीत पाया अखिलेश ©Akhilesh Kumar देह पर
Kamal bhansali
शीर्षक : देह-मंत्र देह से मुक्त होती जिंदगी की वासनायें कह रही साथ कुछ भी तुम्हारे न जाये तुम कह रहे जिसे अपना यहीं रह जाये आत्मिक-कर्म ही आगे नया स्थान पाये ।। साँसों से जुड़े प्राणों के तार जब टूट जाये बंधन मोह के सब इस जहाँ में रह जाये क्षल-कपट की जिंदगी खुद से ही शरमाये देह की हसरतें आत्मा को मलिन कर जाये ।। सोच यही सही जीवन धवल ही रह जाये संयम के फूल आत्मा के गुलशन को सजाये देह की सुंदरता कभी कांटो सी न हो जाये अँहकार की धुंध में गलत कर्म नजर न आये ।। रैन बसेरा है ये जग क्योंकि जीवन एक यात्रा है मंजिल-राही बनकर चलना, ये एक ही सूत्र है आत्मा ही लिफाफा है शरीर तो सिर्फ एक पत्र है पता कहाँ का होगा ? जानने का कर्म ही मंत्र है ।। ✍️ कमल भंसाली ©Kamal bhansali #देह-मंत्र
Ravi
एक वक़्त बाद देह पर मिले सारे चुम्बन.. आत्मा मे गहरे घाव के रूप मे दर्ज हो जाते है.. ©रविशंकर देह# #touchthesky