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H.S.Shukla Sir
नारीशक्ति जो कि ब्रह्मांड की सबसे बड़ी शक्ति है, वह सिनेमा जगत और अन्यत्र के कुछ ख्याति प्राप्त महिलाओं को अपना आदर्श मानकर उन्हीं के जैसा बनने को सोच रही हैं ।वह अपनी वास्तविक पहचान , अपनी वास्तविक क्षमता, अपना वास्तविक आदर्श भूल चुकी हैं। वह अपने आपको असहाय और लाचार मान चुकी हैं । नारी अपमान के बदले में लंका दहन और महाभारत की परंपरा थी। यह मोमबत्ती जलाने वाली परंपरा हमारी संस्कृति में कब से आ गई? मुझे नहीं मालूम। और हां रामायण काल से आपको यह लग रहा होगा, कि 'सीता की सुरक्षा भी राम पर आश्रित थी। लेकिन मैं यह बात सिरे से नकारता हूं क्योंकि सीता अपने आप में इतनी समर्थ थी , कि वह चाहती तो रावण समेत पूरी लंका को एक पल में नष्ट कर सकती थी। रामायण में इसके कई प्रमाण भी हैं जैसे जिस शिवधनुष को स्वयंवर हजारों वीर योद्धा अपनी दोनों भुजाओं की पूरी ताकत लगाने के बाद भी हिला तक नहीं सके उसे सीता ने बचपन में ही एक हाथ से ही उठाकर किनारे रख दिया था । लेकिन वह पतिव्रता होने के कारण इसका श्रेय श्री राम को देना चाहती थी।और यह बात रावण भी जानता था और यही कारण था कि रावण इतने लंबे समय तक लंका में सीता के रहने के बाद भी कुछ भी नहीं कर सका'। लेकिन आज नारी अपनी सुरक्षा के लिए किसी और पर पूर्णतः आश्रित हो गई है।जबकि वास्तविकता यह है, कि दुनिया की सुरक्षा का दायित्व उसके कंधे पर हैं। यह दुनिया उसके कारण हैं, आज हम आप और पूरा ब्रह्मांड अगर जीवित हैं तो उसी नारी शक्ति उसी मां के कारण है । अगर मां हमारा पालन-पोषण ना करती तो शायद पूरे ब्रह्मांड का अस्तित्व नहीं होता । इतिहास में उसने पूरी दुनिया का पालन, पोषण और इसके बाद आवश्यकता पड़ने पर संहार भी किया है। लेकिन आज आदर्श नारी के नाम पर नारी के आत्मसम्मान को पैरों तले रौंदा जा रहा है ।उसकी आवाज दबाई जा रही है । आज नारी संसार मे केवल और केवल मुफ्त का घरेलू नौकर,बच्चों को जन्म देकर उन्हे पालने, और हवस शांत करने की वस्तु बनकर रह गई है। और यही कारण है कि आज झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ,वीरांगना दुर्गावती,वीरांगना पद्मा, महासती अनुसूया, माता सीता, मां कालिका और मां चंडी,मां दुर्गा आदि जैसी नारियों की समाज में कमी है। और शौर्य की परिभाषा जो नारी हुआ करती थी , समाज को आज इसकी पुनः जरूरत है । फिर से उसी तरह की एक शौर्य और तेजोमय मूर्ति की ही जरूरत है। फिर से समाज एक चंडिका का आह्वान कर रहा है। हे मातृशक्ति! तू अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान नहीं पा रही तू अनादि और अनंत है । हे आदिशक्ति! तू स्वयं को जागृत कर, फिर से जला अपने उस क्रोध की ज्वाला और अपने तेज को देख। देख समाज तुझे कितना कमजोर और लाचार समझ रहा है। तुझे हे की दृष्टि से देख रही हैं दुनिया। तू फिर से काली बन , फिर से तू मां दुर्गा बन ,अब तू ही संहार कर दुष्टों का । क्योंकि कोई भी तेरी मदद नहीं करेगा । यह दुनिया केवल तुझे एक हंसी का पात्र बना देगी । तू किनसे गुहार लगा रही है, इन नपुंसकों से जो खुद भी व्यभिचार में लिप्त हैं। फिर से तू खड़ग उठा ,फिर से तू शस्त्र-धारिणी बन। तू सौंदर्य की नहीं अब शौर्य की प्रतिमूर्ति बन। और दिखा दे दुनिया को कि तुझे किसी के सहयोग की,किसी से गुहार लगाने की जरूरत नहीं है।तू अपने आपने पूर्ण हैं। तू अपने इतिहास को याद कर.... एक शब्द आजकल बहुत प्रचलित है,वह है नारी सुरक्षा। इस संबंध में सभी राजनेताओं ,सभी प्रशासनिक अधिकारी , सभी समाचार पत्रों ,पत्रिकाओं ,और चैनलों वाले इतना ही नहीं सभी साहित्यकार भी इसका सहारा लेकर खूब मसालेदार भाषण और लेख लिख जाते हैं। मेरी समझ में यह नहीं आया, कि आज तक पुरुष सुरक्षा पर कोई चर्चा क्यों नहीं हुई? फिर नारी सुरक्षा पर इतनी चर्चा क्यों? नारी सुरक्षा पर इतना बवाल क्यों? आखिर क्यों नारी को ही सुरक्षा की जरूरत है ? और पुरुष को नहीं हम देखते हैं कि हमारे घर से एक लड़की जो लगभग 18- 20 साल की है, को घर से अकेले बाहर भेजते समय उसकी सुरक्षा के लिए 5 साल से 8 साल के उसके छोटे भाई को भेजते हैं। यह हमारी किस मानसिकता को दर्शाता है? मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि, अगर वह 18- 20 साल की लड़की अपनी सुरक्षा नहीं कर पा रही तो, वह 5 से 8 साल का लड़का उसकी सुरक्षा कैसे करेगा? इसमें दो बातें सामने आती हैं। 1 तो यह कि हम अपनी लड़की पर विश्वास नहीं कर रहे हैं ।या फिर हम लड़का और लड़की में भेद करके लड़की को इस काबिल बनने नहीं दिये कि वह अपनी सुरक्षा स्वयं कर सके। और धीरे-धीरे उसकी मानसिकता में हम यह भरे दे रहे हैं। कि तुम्हें अपनी सुरक्षा के लिए एक सुरक्षा गार्ड की जरूरत है। और वह जीवन पर्यंत इसी मानसिकता से घिरी रहती है, हमेशा सहमी-सहमी और डरी-डरी रहती हैं और कभी भी अपनी सुरक्षा स्वयं नहीं कर पाती। और इसीलिए उसको सुरक्षा की जरूरत होती। यहां तक तो ठीक था लेकिन " जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तब क्या करें? एक तरफ हम बोलते हैं,कि हम नारी-पुरुष मे कोई भेद नहीं करते ।दूसरी ओर हम नारी जाति को एक विशेष वस्तु के रूप में देखते हैं ।क्योंकि किसी विशेष वस्तु को ही सुरक्षा की आवश्यकता होती है। उसे एक मनुष्य रहने दीजिए इंसान बने रहने दीजिए उसकी सुरक्षा मत कीजिए उसे ऐसा बनने दीजिए कि वह आत्मरक्षा आसानी से कर सके,साथ ही वह किसी और को भी सुरक्षा प्रदान पर सकें। शेष जल्द ही.... ★हरिशंकर शुक्ल 'हरि'★ #नारी का आदर्श
Shashi Bhushan Kumar
कदर करलो उनकी जो तुम्हें बिना मतलब की चाहत करते हैं दुनियां में ख़्याल रखने वाले काम और तकलीफ देने वाले ज्यादा होते हैं आदर्श , ©Shashi Bhushan Kumar #आदर्श #आदर्श
WRITER ADARSH PANDEY
बंज़र जमी होगा उगता हूआ सूरज होगा जब हम मंच होंगे तो पूरे सितारे जमी पे। ©WRITER ADARSH PANDEY शायरी लेखक आदर्श पाण्डेय का #Mic
Rahul Shastri worldcitizens2121
Safar July 10,2019 सत्संग का अर्थ होता है गुरु की मौजूदगी! गुरु कुछ करता नहीं हैं, मौजूदगी ही पर्याप्त है। ओशो सत्संग का अर्थ
Aman Baranwal
मिट्टी का जिस्म और आग सी ख्वाहिशें, खाक होना लाजमी है, क्योंकि आदमी आखिर आदमी है! जीवन का अर्थ