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sunita acharya
मैंने मन के रास्तों को थोड़ा तंग कर दिया है , अब दिल तक वही पहुंचता है जो झुकना जानता है । ©sunita acharya #कोट्स #कोट्स #दिल #alone
Parasram Arora
ओ .. मेरी मातृ भाषा क्या समझ पाई हो कभी अपनी स्मृदता मै तुममें पूरी तरह घुल चुका हूँ.. सम्पूर्ण समर्पण भी तुझे कर चुका हूँ और तुझे लिख कर मै भी समृद हो रहा हूँ अकड़ जाती हैं लिखते लिखते ज़ब मेरी अंगुलिया ताज़ा साँसे भरने लगती हैं मेरी कोमल अभिव्यक्तिया जीवन के हर क्षेत्र में हैं तेरा पूरा दखल चाहे हो साहित्य के खलिहान या फिर हो आंदोलनों के सैलाब विश्व के अधिकांश भूभाग पर छाई हैं तेरी ही विविधता ओ मेरी मातभाषा तू राष्ट्र भाषा तो बन चुकी और वो दिनज्यादा दूर नही ज़ब तू अंतर्राष्ट्रीय भाषा बन कर सम्पूर्ण कर सकेगी अपना अभियान पूरा ©Parasram Arora मातृ भाषा......
Amar Anand
इस कायनात में हमें सबसे ज्यादा स्नेह अपनी मां से , दूसरा श्री कृष्ण से और तीसरा निः स्वार्थ परोपकार संगठन से है । इन तीनों की आज्ञा , उपदेश और सेवा से यदि किसी को आपत्ति है तो उसका सीधा वैर मुझसे है मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं #मातृ दिवस
नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
*मां* 🌹* मां * शब्द कितना पवित्र और महान है जिसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती। एक नारी तभी पूर्ण तभी होती है जब मां बनती है। पिता से पहले मां का संबंध अपनी संतान से उसके गर्भ से ही हो जाता है। गर्भ में जैसे जैसे वो बड़ा होता उसके हृदय के तार मां से जुड़ जाते है और मां उसकी मौन भाषा समझने लगती है। नौ मास का सारा दर्द उसके लिए एक खुशी में बदल जाता है। मां के बिना संतान उसी तरह होती है जैसे जल के बिना मछली। मां अनुपम है,अनमोल है और पूजनीय भी। वो खुशनसीब हैं जिनके पास मां होती है। मातृ दिवस के पावन शुभ अवसर पर मैं सभी माताओं के चरणों में शीश नवाता हूं।🌹🙏 ©नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।) # मातृ दिवस।
Ashok Verma "Hamdard"
मां तुम कहां गई,ढूंढे अंखियां इस वसुंधरा पर छटपट छटपट करता मन नहीं दर्शन मां इस धरा पर,अखियां ढूंढे चहुओर मां तुम कहां गई? नही आती है नींद हमें मां, लोरी की ध्वनि न आने से नहीं आती है निंदिया भी अब,लाख उसे समझाने से सुना पड़ा है घर का मंदिर,गीत भजन न गाने से, अपना घर अब मुझे लगता है,खंडहर और बिराने सा मां तुम कहां गई ? रसोई से धन लक्ष्मी रूठी,नही मिलती बासी रोटी तेरे बिना है सुना आंगन बुझ गया चुल्लाह शांत है चौका,कर ली दोस्ती पेट पीठ से मां तुम कहां गई? घूम फिर कर जब कहीं से आता,ना मां कह कर तुझे बुलाता खुश हो जाती मुझे देख कर, आकर गले लगाती। मां तुम कहां गई ? ©Ashok Verma "Hamdard" मातृ दिवस