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hirdesh singh rathore

विहाय कामान् य: कर्वान्पुमांश्चरति निस्पृह:। निर्ममो निरहंकार स शांतिमधिगच्छति।। अर्थ- जो मनुष्य सभी इच्छाओं व कामनाओं को त्याग कर ममता रहि

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साहस

अक्सर नारी के नयन के तीर ओर उसके हाव भाव ही आचे अच्छे संयमी का संयम तोड़ देते है । अध्यात्म से लिखूंगा तो विहाय गंभीर और तर्क वितर्क का हो जा #yqbaba #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine #collabwithjogi #collabwithrestzone #himanshuhimdil #collabwithकोराकाग़ज़

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कहां चली तू किधर चली,
ए बहारा तू है हुस्न की कली,
मिली तो मिली,कली कब खिली? अक्सर नारी के नयन के तीर ओर उसके हाव भाव ही आचे अच्छे संयमी का संयम तोड़ देते है । अध्यात्म से लिखूंगा तो विहाय गंभीर और तर्क वितर्क का हो जा

N S Yadav GoldMine

#City {Bolo Ji Radhey Radhey} अध्याय 2 : सांख्ययोग श्लोका 22 वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न #पौराणिककथा

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{Bolo Ji Radhey Radhey}
अध्याय 2 : सांख्ययोग
श्लोका 22
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
अर्थ :- मनुष्य जैसे पुराने कपड़ोंको छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है, ऐसे ही देही पुराने शरीरोंको छोड़कर दूसरे नये शरीरोंमें चला जाता है।

जीवन में महत्व :-  यह गीता में कई प्रसिद्ध श्लोकों में से एक है, जिसमें यह समझाया गया है कि कैसे आत्मा अपने शरीर को छोड़ देती है और अन्य शरीरों के साथ पहचान करके नई परिस्थितियों में नए अनुभव प्राप्त करती है। व्यासजी द्वारा प्रयुक्त यह दृष्टान्त बहुत जानी मानी है ।

भगवान अपने विचारों को विशद उपमाओं के माध्यम से समझाने की विधि अपनाते हैं। इस तरह की तुलना आम आदमी को विचार स्पष्ट करने में मदद करती है।

जैसे कोई जीवन की अलग अलग परिथितियों के लिए अलग अलग कपडे पहनता है, उसी प्रकार आत्मा एक शरीर को छोड़कर अन्य प्रकार के अनुभवों को प्राप्त करने के लिए दूसरे शरीर को धारण करती है। कोई भी नाइट गाउन पहनकर अपने काम पर नहीं जाता या ऑफिस के कपड़े पहनकर टेनिस नहीं खेलता। वे अवसर और स्थान के अनुकूल कपड़े पहनते हैं। यही हाल मौत या आत्मा का भी है।
यह समझना इतना सरल है कि केवल अर्जुन ही नहीं, कोई भी विद्यार्थी या गीता का श्रोता त्याग के विषय को स्पष्ट रूप से समझ सकता है।
अनुपयोगी कपड़े बदलना किसी के लिए भी मुश्किल या दर्दनाक नहीं होता है और खासकर जब किसी को पुराने कपड़े छोड़कर नए पहनने पड़ते हैं। इसी तरह, जब जीव को पता चलता है कि उनका वर्तमान शरीर उनके लिए किसी काम का नहीं है, तो वे पुराने शरीर को त्याग देते हैं। शरीर का यह "बूढ़ापन" या यों कहें कि शरीर की घटती उपयोगिता को केवल पहनने वाला ही निर्धारित कर सकता है।

इस श्लोक की आलोचना यह है कि इस संसार में बहुत से बच्चे और युवा मरते हैं जिनका शरीर जीर्ण-शीर्ण नहीं था। इस मामले में, "बूढ़ापन" का अर्थ वास्तविक बुढ़ापा नहीं है, लेकिन शरीर की कम उपयोगिता यानी | इन बच्चों और युवाओं के लिए, यदि शरीर अनुपयोगी हो जाता है, तो वह शरीर पुराना माना जाएगा। एक अमीर व्यक्ति हर साल अपना भवन या वाहन बदलना चाहता है और हर बार उसे खरीदने के लिए कोई न कोई मिल जाता है। उस धनी व्यक्ति की दृष्टि से वह भवन या वाहन पुराना या अनुपयोगी हो गया है, लेकिन ग्राहक की दृष्टि से वही मकान उतना ही उपयोगी है जितना नया। इसी तरह, शरीर अप्रचलित हो गया है या नहीं, यह केवल वही तय कर सकता है जो इसे धारण करता है।
यह श्लोक पुनर्जन्म के सिद्धांत को पुष्ट करता है।
(राव साहब एन. एस. यादव )
अर्जुन इस दृष्टान्त के माध्यम से समझते हैं कि मृत्यु उन्हें ही डराती है जो इसे नहीं जानते। लेकिन जो व्यक्ति मृत्यु के रहस्य और अर्थ को समझता है, उसे कोई दर्द या दुख नहीं होता है, क्योंकि कपड़े बदलने से शरीर को कोई दर्द नहीं होता है, और न ही हम हमेशा वस्त्र त्यागने की स्थिति में रहते हैं। इसी प्रकार विकास की दृष्टि से आत्मा भी शरीर त्याग कर नये अनुभवों की प्राप्ति के लिये उपयुक्त नये शरीर को धारण करती है। इसमें कोई दर्द नहीं है। यह वृद्धि और परिवर्तन जीव के लिए है न कि चेतना के रूप में आत्मा के लिए। आत्मा हमेशा परिपूर्ण होती है, उसे विकास की आवश्यकता नहीं होती।

©N S Yadav GoldMine #City {Bolo Ji Radhey Radhey}
अध्याय 2 : सांख्ययोग
श्लोका 22
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न

Vikas Sharma Shivaaya'

*AN AWESOME MESSAGE* *URGENTLY NEEDED...* Not BLOOD But, An *ELECTRICIAN* , to restore the joyful current between people, #समाज

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*AN AWESOME MESSAGE*

 *URGENTLY NEEDED...* 
Not BLOOD
But,
An *ELECTRICIAN* ,
to restore the joyful current
between people,
who do not speak
to each other anymore...

An *OPTICIAN* ,
to change the 
outlook of people...

An *ARTIST* ,
to draw a smile
on everyone's face...

A *CONSTRUCTION* WORKER,
to build a bridge
between neighbours...

A *GARDENER* ,
to cultivate good thoughts...

A *PLUMBER* ,
to clear the
choked and blocked mindsets...

A *SCIENTIST* 
to rediscover compassion...

A *LANGUAGE TEACHER* 
for better communication
with each other...

And Last but not least,
A *MATHS TEACHER* ,
for all of us to relearn how to count on each other...

*Spread love, positivity and  smiles always*

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 872 से 883 नाम  )

872 प्रियार्हः जो प्रिय ईष्ट वस्तु निवेदन करने योग्य है
873 अर्हः जो पूजा के साधनों से पूजनीय हैं
874 प्रियकृत् जो स्तुतिआदि के द्वारा भजने वालों का प्रिय करते हैं
875 प्रीतिवर्धनः जो भजने वालों की प्रीति भी बढ़ाते हैं
876 विहायसगतिः जिनकी गति अर्थात आश्रय आकाश है
877 ज्योतिः जो स्वयं ही प्रकाशित होते हैं
878 सुरुचिः जिनकी रुचि सुन्दर है
879 हुतभुक् जो यज्ञ की आहुतियों को भोगते हैं
880 विभुः जो सर्वत्र वर्तमान हैं और तीनों लोकों के प्रभु हैं
881 रविः जो रसों को ग्रहण करते हैं
882 विरोचनः जो विविध प्रकार से सुशोभित होते हैं
883 सूर्यः जो श्री(शोभा) को जन्म देते हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' *AN AWESOME MESSAGE*

 *URGENTLY NEEDED...* 
Not BLOOD
But,
An *ELECTRICIAN* ,
to restore the joyful current
between people,
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