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Arpit Mishra
अवहट्ट से है रूप पाया , पं. कामता ने जिसे निखारा, हिन्दी ही हमारी पहचान, हिन्दी हिन्दु हिन्दुस्तान ।। जिसकी जननी है संस्कृत, भारतेन्दु ने किया परिष्कृत , पाया विश्व भाषा मे ऊँचा स्थान, हिन्दी हिन्दु हिन्दुस्तान ।। प्रसाद पंत ने किया साहित्य विस्तार, सन संतावन मे दिया देश को एकताकार, सुभद्रा दिनकर ने किया ओजवान, हिन्दी हिन्दु हिन्दुस्तान ।। महादेवी ने वेदना से संवारा , प्रेमचंद ने दिया सहारा, हिन्दी बनी देश की शान, हिन्दी हिन्दु हिन्दुस्तान ।। 14 सितंबर हिन्दी दिवस हैआया, विदेशी भाषा से निदान है पाया, मिला राजभाषा का सम्मान, हिन्दी हिन्दु हिन्दुस्तान ।। ©Arpit Mishra Hindi diwas par Hindi Ki kahani
jayprakash kumar nirala
*हिंदी की दर्द भरी कहानी* मैं हिन्दी हूँ मुझसे ज्यादा अभागा कोई नहीं होगा जानते हो क्यों कि मेरा हाल उसके जैसा हो गया जो घर का मालिक तो है पर घर पर उसका कोई राज नहीं । मैं भी भाषाओं का तो राजा हूँ , पर मेरा कोई अधिकार नहीं सिर्फ नाम का रह गया हूँ राष्ट्र भाषा हिंदी खाने के कोई और दांत और दिखावे कोई और दांत लोग सिर्फ झूठ में मुझे राष्ट्र भाषा का दर्जा दे रखें हैं । हर स्कूल कॉलेजों से मुझे ऐसे बाहर निकाला जा रहा है जैसे कि मैं कोई भूत हूँ। हर बच्चा अंग्रेजी में बोले लोगों की ये सपना होती है। अगर कोई मुझे बोल लेता है तो उसका अपमान हो जाता है। हर कोई मुझे साधारण भाष समझ कर मुझसे दूर ही होते चले जा रहें हैं। अब हर किसी को तो अंग्रेजी चाहिए । तो फिर मुझे क्यों राष्ट्रीय भाषा बना के रखे हो मैं कोई घंटा हूँ जो मुझे बजाने के लिए रखे हो या फिर मूर्ख समझकर मुझे मूर्ख बना रहे हो । तुमलोगों को इतना मेरा अपमान करने के बावजूद भी कलेजा को ठंडक नहीं मिला जो मेरा विश्व हिंदी दिवस बनाकर मेरी जख्मों पे नमक छिड़कते हो । जिसे अपने ही घर में इज्जत न मिले उसे दूसरे भला क्या इज्जत देंगे। मेरा अपमान करना बंद करो पूरे राष्ट्र में हिंदी का प्रचलन करो नहीं तो मुझे राष्ट्र भाषा की कुर्सी से उत्तार दो मैं तंग आ गया हूँ इस कुर्सी पर बैठकर मेरी दर्द को समझों । *पूरे भारत में हो हिंदी का सम्मान है, हमारी पुकार* हर गली हर राज्य में हो हिंदी का गुणगान है, हमारी पुकार और न होने देंगे हिंदी का अपमान हमने लिया है ठान।। *जय हिंदी राष्ट्र भारत* ✍️ जयप्रकाश कुमार निराला #hindi ki kahani# #reading Anjali
Tabassum
बीते वक्त का निशानी हूं मैं, कई सदियों की कहानी हूं मैं...। ©Tabassum #Sukha#ped#ki#kahani#nojoto#hindi#vichar
Meghwans Saab
मां......…..... मां की कहानी एक मां अपने बच्चों के लिए भगवान से भी लड़ सकती हैं परन्तु आपने बच्चों से नहीं लड सकती मगर बच्चे बड़े होते ही उसी मां को घर से निकाल देते हैं फिर भी वही मां अपने बच्चों को बुरा नहीं बतातीं क्योंकि मां को पता होता हैं की वह भटक गया है बस यही आशा लिए मां चुप रहती है की एक दिन वो वापिस जरूर आयेगा ! प्राथना है कि किसी के लिए भी आपने माता पिता के साथ ऐसा ना करें, ©Meghwans Saab #MothersDay #hindi kahani #hindi kahani
ABK Delhi wala
ऐेैक लड़की कैसे सब के लिए बौझ बन जाती है ( ऐैक उदास लड़की की कहानी) मीना अपने माता पिता की बहुत लाडली थी। तीन बडे भाईयों की बहन थी। कोई भी चीज मांगने पर उसी वक्त सामने हाजिर हो जाती। पूरे घर में रौब था उसका। पूरे परिवार ओर नौकरों पर राजकुमारी की तरह हुक्म चलाती थी मीना स्कूल में भी पूरा रौब था उसका। बडे घर की लाडली जो थी वह। ऐसे ही उसने कालेज में दाखिला लिया। उसके ठाठबाट, बडी गाड़ी में आना जाना, हर दिन नया फैशन देखकर हर कोई उससे दोस्ती करना चाहता था। थोड़े ही दिनों में उसके बहुत से दोस्त बन गए। पूरे कालेज में उसकी अपनी ही एक पहचान थी। इन दिनों उसके घर एक रिश्ता आया। खानदानी लोग थे ओर पापा की पुरानी जान-पहचान थी उनके साथ। मीना के साथ कोई जबरदस्ती नहीं थी| पर मीना ने फिर भी हां कर दी, कयोंकि वह अपने परिवार से बहुत प्यार करती थी। वह जानती थी कि वह लोग उसका अच्छा ही सोचेंगे। लडके का नाम सूरज था। सूरज काफी पढा लिखा ओर समझदार लडका था। ससुराल वाले भी बहुत अच्छे थे। ससुराल में मीना की जगह वैसी ही थी जैसी कि मायके में। कोई भी काम मीना की सलाह के बिना नहीं होता था। सबकी लाडली बहू बन गयी थी वह। फिर उसके घर एक बेटे का जन्म हुआ। समर मीना को जान से प्यारा था। पोता पाकर ससुराल वाले तो फूले नहीं समाते थे। मीना कभी कभी सोचती कि उसकी किस्मत कितनी अच्छी है। उसका हर अपना उसे कितना प्यार करता है। चाहे जीवन में कैसा भी समय आये मेरे अपने हमेशा मेरे साथ हैं, मैं कभी अकेली नहीं हो सकती। कितनी खुशकिस्मत हूँ मैं। पर शायद मीना की खुशियों को उसकी अपनी ही नजर लग गई थी। एक दिन वह मायके जाने की जिद्द कर बैठी। सूरज को बहुत काम था।लेकिन वह फिर भी उसे ले गया। रास्ते में उनकी गाड़ी दूसरी गाड़ी से टकरा गई। मीना, सूरज ओर समर बहुत बुरी तरह से जख्मी हो गए। काफी दिनों के इलाज के बाद समर ओर सूरज तो ठीक हो गए लेकिन मीना पूरी तरह ठीक ना हो सकी। सर पर चोट लगने के कारण वह अपनी आंखों की रौशनी खो बैठी। अब मीना की किस्मत जैसे उलटे पांव चलने लगी। मायके वाले कुछ दिनों तक उसे मिलने आते रहे फिर कभी कभार फोन ही करके पुछ लेते कि अब कैसी हो। धीरे धीरे ये सिलसिला भी कम हो गया। ससुराल वालों की सहानुभूति भी कम होने लगी। घर में किसी को पास बैठने के लिए कहती तो जवाब मिलता बहुत काम है अब तुम भी हाथ नहीं बंटा सकती। सूरज भी चिडचिडा हो गया था। बस समर ही था उसके साथ जिसके साथ हंसते खेलते उसका वक्त गुजरता। एक दिन मीना के हाथ से कुछ सामान गिर गया जिसकी वजह से समर को हलकी सी चोट लग गई। मीना के सास ससुर ने सूरज को उससे अलग कर दिया कि कहीं उसके ना देखने की वजह से बच्चे का कोई नुकसान ना हो जाये। मीना अंदर से टूट चुकी थी। एक दिन उसने सबके सामने मायके जाने की इच्छा रखी तो सूरज उसे तुरंत मायके छोड़ आया। जैसे कि वह भी यही चाहता था। लेकिन समर को उसके साथ नहीं भेजा गया। मीना कभी समर से दूर नहीं रही थी, पर अपनी कमी के कारण उसने ज्यादा बहस नहीं की। मीना को लगा कि वह तीन चार दिन वहां रहेगी तो थोड़ा हवा पानी बदल जायेगा कयोंकि वह कितने दिनों से कहीं भी बाहर नहीं गयी थी। घर वाले भी इतने दिनों बाद उसे देखकर कितने खुश होंगे। मीना के घर पहुंचने पर सब लोग बहुत खुश हुए। खाने में सब कुछ मीना की पसंद का ही बना था। उसने अपने मम्मी पापा ओर भाई भाभियों से दिल खोल कर बातें की। उनके छोटे छोटे बच्चे भी बूआ के साथ घुलमिल गए थे। रात को सोने के वक्त जब वह कपडे बदलने लगी तो उसे पता चला कि उसका बैग तो बहुत भरा हुआ था। वह सब समझ गई। वह बहुत उदास हो गई। कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा, फिर जैसे सब बदलने लगा। सबका व्यवहार बदल रहा था। वह लोग जैसे थक चूके थे उससे। सब लोग घूमा फिरा कर पुछने लगे कि सूरज कब आ रहा है उसे ले जाने। वह बहाना बना देती। जबकि वह जानती थी कि उस घर मे अब उसके लिए कोई जगह नहीं। मीना से चलते वक्त कुछ ना कुछ नुक्सान हो जाता। थोड़ी बहुत टोकाटाकी उसे सूनाई देती। वह टाल देती। एक दिन उसके हाथ से लगकर एक कीमती फूलदान टूट गया। छोटी भाभी ने बहुत हंगामा मचाया। मीना के माता पिता रोज रोज के झमेलों से तंग आ गए थे। उन्होंने सूरज को खुद से फोन कर दिया। सूरज मीना को अपने घर ले गया। मीना को अपने परिवार वालों से ये उम्मीद ना थी जिस मीना के कहे बिना घर मे एक पत्ता भी नहीं हिलता था, उस घर के लिए वह अब बोझ बन चुकी थी। सूरज के साथ ससुराल आते वक्त वह बहुत खुश थी। क्योंकि वह अपने घर जा रही थी अपने जिगर के टूकडे अपने बेटे समर के पास। पर यह खुशी भी कुछ पल की ही थी। सारा बन्दोबस्त पहले ही किया हुआ था। मीना को सीधे ऊपर वाले कमरे में पहुंचा दिया गया। समर से दूर रहने की सख्त चेतावनी दी गई। एक कामवाली हैमा को उसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। जो उसके खाने पहनने जैसी जरूरतों का ध्यान रखती। मीना ज्यादातर चुप ही रहती। कभी-कभी कामवाली हैमा से थोडि बात चीत कर लेती। उसके जरिये समर का पता चल जाता। सबकी लाडली बेटी ओर बहू सबके लिए लाडली से बोझ बन चुकी थी। ©ABK Delhi wala Kahani # Hindi kahani