क्या करूँ ऐतबार क्या ज़िक्र करूँ
कोई उम्मीद करूँ या फ़िक्र करूँ
किनारे फिर अधूरे है बिना मंजिल के
वज़ह खुद को कहूँ या तेरा ज़िक्र करूँ
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Mohammad Ibraheem Sultan Mirza
हैरत करूँ, मलाल करूँ, या गिला करूँ,
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तुम गैर लग रहे हो बताओ मै क्या करूँ,
M.I.S.MIRZA