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Saurabh Raj Sauri
बस चयेणु तेरु दगड़ू, चै कुछ भी करण पोड्या मि थै सबि खैरी विपदा दगड़ी, चै यखुली लड़ण पोड्या मि थै माया मा बस तेरी एक हाँ च्येणी चै सौ जन्म तेरी,जग्वाल करण पोड्या मि थै जरसी अबेर होली "राज" थै पर प्रीत घनाघोर होली त्वे भी सुरक सुरक माया मा लठयाली मेरी खुद जरूर लगेली त्वे भी माया की आग लगाण खु चै त्यारा मुलुक आण पोड्या मि थै माया मा बस तेरी एक हाँ च्येणी चै सौ जन्म तेरी,जग्वाल करण पोड्या मि थै धार मा की जून जन बाँद त्वे पौणा की मनसा धरि च मेरी त्वे ब्योली बनौणा की इक हरि रटण लगाई च मेरी त्वे अपणी बणाणा कु सौंजड्या चै धर्मधाद लगाण पोड्या मि थै माया मा बस तेरी एक हाँ च्येणी " चै सौ जन्म तेरी,जग्वाल करण पोड्या मि थै ©Saurabh Raj Sauri जरसी अबेर होली ☺️
Shahab
नजर नहीं आते अब गलियों में आशिक , इश्क भी अब डिजिटल हो गया है ... ©Shahab #डिजिटल
◆°Indu Nagpuriya°◆
बेशर्त दोस्ती सोच रहा हूँ में भी डिजिटल शायर बन जाऊं... जो कर रहे है कुचरनी, बनके वायरस उनकी जिंदगी में...*में* हड़कम्प मचाऊं... #डिजिटल
Parasram Arora
हम सब आज डिजिटल युग में जी रहे हैं दुनिया का लगभग संपूर्ण साहित्य एक क्लिक क़े फ़ासले पर हैं ©Parasram Arora डिजिटल युग....
Mamtaj Priya
Sea water कमबख्त दिख रहा है मुझे तेरा हर लिहाज बदला हर पैंतरा,हर लहजा और निगाह बदला तुम कह रहे हो व्यस्त हु वक्त नहीं मिलता... हम बखूबी देख रहे है तेरा हर वक्त ऑनलाइन रहना...✍️✍️ m.priya ❤️✍️ ©Mamtaj Priya डिजिटल धोखा...
CK JOHNY
डिजिटल ईश्क जब तुम सो जाते थे हम तेरी पोस्टस् में खो जाते थे। नींद आती न थी जब रातों में तेरे प्यार भरे जज्बातों में हम कई बार मैसेज तेरे दोहराता थे। हाँ जब तुम सो जाते थे हम तेरी पोस्टस् में खो जाते थे। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ डिजिटल इश्क़
Poonam Pandey
तेरे इश्क़ में बस इतनी शिद्दत चाहिए, में करू कॉल pubg के बीच में और तू मेरा कॉल उठाले, #डिजिटल इश्क़
Kumar Manoj Naveen
आजकल ज़िन्दगी डिजिटल हो गई है। वाट्सप से ही दिन की शुरुआत, और फेसबुक पर रात होती है। पबजी की दीवानगी तो ऐसी , बच्चों के सेहत-समय दोनों से खिलवाड़ होती है। भले दो आमने-सामने बैठे हों मगर, आपस में चैट से ही बात होती है। लड़ाई-झगड़े भी करना हो तो , ट्वीटर पर ही जूतम-लात होती है। ज्ञान-विज्ञान और मनोरंजन तो ठीक है, यूट्यूब पर अश्लीलता-भ्रामकता की बाढ होती है। आपसी सद्भाव -भाईचारे के संदेशों से ज्यादा, सोशल मीडिया पर घृणा-अफवाहें हीआम होती है। अपनो से दूरी तो पाटती है ये , पर मिलने-जुलने की संस्कारें बिलुप्त होती है। समय का पता ही नहीं चलता, बगैर मोबाइल जैसे एक-पल एक-साल होती है। सत्य है, सिक्के के दो पहलू होते हैं, कुछ अच्छाई तो संग बुराई भी साथ होती है। मुश्किल हो गयी है ज़िन्दगी मोबाइल बगैर , जैसे बिना कृत्रिम-रोशनी, अधेंरी-रात होती है। *****नवीन कुमार पाठक ****** ©Kumar Manoj ज़िन्दगी डिजिटल