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Sangeeta Patidar
"जाने क्यों सारी यादें इसी वक़्त ख़ुसर-फ़ुसर करती हैं, यूँ तो ये रहती नहीं साथ, ऐसे भी किसी और हाल के" -दरमियाँ.. मेरे-तुम्हारे हिन्दी कविता संग्रह 'दरमियाँ.. मेरे-तुम्हारे' विमोचन. सभी रचनाकारों को बहुत-बहुत शुभकामनायें. दरमियाँ के रचनाकार - गोविंद अलीग, दशरथ गढ़ेकर,
Sangeeta Patidar
नवोदयन रचनाकारों के लिए विशेष 'हिन्दी कविता संग्रह' (Anthology) प्रकाशित किया जा रहा है, जिन्हें भी अपनी कवितायें इस पुस्तक के लिए देना हो,
Sangeeta Patidar
Book Launch आर. के. क्रियेशनस् एवं तनिष्का इवेंट्स, मुंबई, श्री आर. के. शर्मा जी द्वारा पद्मश्री स्व. श्री रवीन्द्र जैन जी की स्मृति में आयोजित कार्यक्र
Micku Nagar
जब मेरी आखरी सांसे चल रही होगी जब में इस दुनिया से विदा लूंगा तब मेरे पास भी एक छोटा सा "कविता संग्रह" होगा। जिसमे मैंने ज़िक्र किया होगा.... पेड़ - पोधों , नदियों , पर्वतों , मैदानों का, चांद ,सूरज ,ग्रह ,उपग्रह , ब्रम्हांड, तारों का, फुल , बगीचों , बेलों , और हरियाली का कोयल , चिड़ियां , चकवा , चकोर का सपने ,ख्वाब , हकीकत , ख्वाहिशों का, देह , आत्मा , रूह , जिस्म , जान का औरत , पुरुष , वासना , ज़िद्द , काम का , बचपन, जवानी , पचपन और बुढापे का, उन सारी चीज़ों का जिन्होंने मुझे विचलित किया होगा। और इन सब में सबसे ज्यादा ज़िक्र होगा, तुम्हारा , हां सिर्फ तुम्हारा तुमने मुझे परिभाषित किया है। मेरी रचनाओं का शाश्वत केंद्र हो तुम। **************************** जानती हो तब सबसे अच्छा क्या होगा, तुम्हे पढ़ा जाएगा, कविताओं के माध्यम से। तुम्हें याद किया जाएगा। लोग तुम्हें पढ़कर मोहब्बत करना सीखेंगे। मैं छोड़ जाऊंगा तुम्हें प्रेम की पोटली पर सब्र वाली गांठ लगाकर बहुत यत्न किए जाएंगे , मुझे समझने के लिए, लेकिन बस तुम खोजी जाओगी, हां बस तुम मैं भी तुम्हारे हदय स्पर्श के बाद ही खुद को जान पाया हूं। ***************** #कविता #संग्रह
Er Aniket B Modake
ओळख स्वतःची स्वतःच करून देईल मी नव्या युगाचा नवा चेहरा बनून समोर येईल मी स्वप्नांची शिदोरी जिद्द कोरी घेऊन येईल मी लढाई अस्तित्वाची अभिमानाने लढत राहील मी स्वप्नांची दुनिया सत्यात घेऊन येईल मी हरलेल्या स्वप्नांसवे पुन्हा एकदा उत्तुंग भरारी घेईल मी #कविता संग्रह
Rasika Chalke
स्मृतिगंध कविता संग्रह विसरलीस आज का तू विसरलीस आज का तू मला नसतेस तू सोबत माझ्या भेटलीस तेव्हा होती ओढ तुला रोजची सोबत तुझी जाणवते आज सख्यांसोबत असतेस जेव्हा तू आपल्याच नादात रमलीस आज तू तिथेच त्यांचीच होऊन हसताना, फिरताना पाहिले तुला मी ठररवले तेव्हा मी माझ्याच मनाशी जगू द्यावे तुला हवे तसे क्षण आनंदाचे मनमोकळे स्वच्छंदपणे विहार करताना दूरूनच पहावे तूला रोज तू खुश असताना कवितांच्या ओळीतही मी तुला वाचावे वाचता वाचता तुझ्या आवडीचे गीत गुणगुणावे आणि त्यावेळी तू अवचितपणे यावे विचारताच तुजला मी का विसरलीस मला तू तेव्हा उत्तर तुझे असते कशी विसरेन तुला मी तू लिहिलेल्या कविता वाचतांना सख्या ही खुश होतात तुझ्या कविता ऐकून तुझ्या सोबतच असते मी शब्दांच्या शृखल्यात हल्ली प्रत्यक्षात भेटणे ,बोलणे आपुले होत नाही म्हणुन वाटते सारखे की विसरलीस आज का मला तू विसरलीस आज का मला तू सौ. रसिका चाळके २३ / ६ / २०२१ ©Rasika Chalke स्मृतिगंध कविता संग्रह