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DeviL
नज़रंदाज़ करके फायदा क्या? काल हश्र तो बेनकाब है । गुनाह करके जायेगा कहाँ? महाकाल के पास सबका हिसाब है।। © ✍️Devil © © कर्मफलम् अवश्यमेव अवाप्स्यति।। #heightofshame #humanwilldie #sin #devil
Atul Kaul
कई बार ऐसा महसूस किया है की लखनवी तहज़ीब खोखली दिखावटी व बनावटी बला नही है। इसमें बहुत मज़बूत सम्बल है तजुर्बे के और इनमे दानाई का ज़ख़ीरा पिन्हा है। आज मैं सिर्फ एक रुख की बात करना चाहता हूं और वो इसी समूह की किसी टिप्पणी से ही जन्मा है। जब हम देखते है की हमारी बात कोई दूसरा दोहरा रहा है इस तरह की वह उसका जना है तो हमारी मानसपटल पर दो तरह की मुदाफत होती है। एक तरफ हमें नाज़ होता है की हमारी बात इतनी पसन्द करी गई है की लोग उसे दोहरा रहे है और इस क़दर कीमती पायी गयी है की लोग उसे चुरा रहे है और हमारी वो सोच इतनी पारस है कि उन्हें भी कुंदन बना रही है। दूसरी तरफ हमे ये डाका लगता है, हमे ये लगता है हमी के सहारे चढ़ कर हमी से क़द निकाल रहे है और हममे जैसे कोई कमी कर दे रहे हैं। अब मुद्दे पर...पहली व दूसरी प्रतिक्रिया आमतौर पर कब होती है। पहली तब होती जब करने वाला आपका अपना हो, आपकी नजर में उसकी इज़्ज़त को, आपको वो अपने से ज़्यादा दानिशमंद व कामयाब दिखे। दूसरी तब जब वो मुख़ालिफीन हो, आपकी नजर में कमज़र्फ हो,व इखलाक़ी मायने में छोटा हो या नाकामयाब हो। पहली प्रतिक्रिया मसर्रत का बायस है और दूसरी... अब मूल हमारी तहज़ीब का खुलूस और दूसरे को अपने से पहला समझना व उस तरह से बरताव करना है। ये हर समय सम्भव कैसे है। Fake it till you make it इस फॉर्मूले का ये सही समय है उपयोग का। आखिरकर क्यो? सिर्फ अपनी खुशी के लिए और उसे दोबाला