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Babli BhatiBaisla
शुष्क हो गई सुषमा की ऊष्मा किरण मत बैठ भुलावे में जाने कैसे खुश्क हो गई खासियत उसकी जान हमारे बारे में सुधा छोड़ बुलाने का चस्का उसे रास नहीं आता अब तो मै इससे या वो मुझसे कम ज्यादा की नाप तौल में उलझी वो हम देसी दिलवाले बन दूर तलक बह निकले हैं शहरी शान दिखावे भर के खुद में सिमटे रहते हैं भाईचारे में घुल मिल बैठने का हुनर देसी ही लगता बेहतर थ्योरी से प्रैक्टिकल हमेशा ही रहता है आगे निकल कर दूर तलक चलने की ललक कुछ कर गुजरने की तड़प केवल उनमें होती है रह जातें हैं जो बहुत पीछे छूट कर बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla ऊष्मा
Arpit Mishra
श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे! सब शोक अपना भूलकर करतल युगल मलने लगे! संसार देखे अब हमारे शत्रु रन में मृत पड़े! करते हुए यह घोषणा हो गए उठकर खड़े!! । ©Arpit Mishra गुप्त
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‘‘केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए। उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए॥’’ ~मैथलीशरण गुप्त राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त जी की जयंती की ढेरों शुभकामनायें
Arpit Mishra
उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा, मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा । मुख-बाल-रवि-सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ, प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ ? अथवा अधिक कहना वृथा है, पार्थ का प्रण है यही, साक्षी रहे सुन ये बचन रवि, शशि, अनल, अंबर, मही । सूर्यास्त से पहले न जो मैं कल जयद्रथ-वधकरूँ, तो शपथ करता हूँ स्वयं मैं ही अनल में जल मरूँ । - मैथलीशरण गुप्त ©Arpit Mishra मैथलीशरण गुप्त
ANURAG SINGH
श्री मैथिली शरण गुप्त की कुछ अनमोल पंक्तियाँ
Thanos
चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में, स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में। पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से, मानों झीम[1] रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥ 👉मैथिलीशरण गुप्त मैथिलीशरण गुप्त