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Parasram Arora
याद है मुझे वो नैराशय और हताशा वाले दिन ज़ो मुझे मरने के लिये प्रेरित करते थे कभी लेकिन जबसे मेरी मानसिकता मे आशावादी विचारधारा की घुसपैठ हुईहै .... तबसे मैने खुलकर जीने का मन बना लिया है और अबमूझे न जाने क्यों ये दुनिया खूबसूरत लगने लगी है और अब मुझे इस जगत के साथ.जगत का प्रत्येक प्राणी भी प्यारा लगने लगा है.... अब मुझे इस धरती की लालाती संध्याये और नभ का सिंदूरी क्षतिज़ भी भाने लगा है..... सूर्य के चारो तरफ घूमती हुई ये पृथ्वी. और ग्रहो की चाल... और ये अबाधित अनंतता का चमत्कार मेरीलघुता. क़ो प्रिय लगने लगा है और मुझमे इस विराट के प्रति एकात्मकता की एक तीव्र लालसा का संचार होने लगा है.. . कदाचित दृष्टि बदलने से ही सृष्टि भी बदल जाती है इसका आभास भी मुझे होने लगा है ©Parasram Arora दृष्टि बनाम सृष्टि
Parasram Arora
नयनाभिराम रंगो से सज़ी है सृष्टि हमारी लेकिन दृष्टि हमारी बाधित है बंधक है विचारों और धारणऔ के अरणय मे जो असमर्थ है इस मनमोहक छवि क़ो भी देखने मे ©Parasram Arora सृष्टि और दृष्टि
Hasanand Chhatwani
#दृष्टि बदले,,,सृष्टि नहीं
Ashok Topno
सृष्टि कितनी भी बदल जाए हम सुखी नहीं हो सकते हैं पर दृष्टि ज़रा सी बदल जाए हम सुखी हो सकते हैं, ©Ashok Topno सृष्टि दृष्टि #viral #nojoto
Parul Jaiswal
"जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि" माने "जैसा विचार वैसा संसार" ©Parul Jaiswal "जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि" माने "जैसा विचार वैसा संसार" #MessageToTheWorld
SURAJ आफताबी
दिल सुबकेगा ताउम्र तो इसकी तुष्टि कौन करेगा जो कर जाओगे लकीरों की लकीरों से बिछड़न फिर बताओ इस विग्रह प्रेम की पुन: पुष्टि कौन करेगा! मरू जंगल से होंगे सारे प्रेमपत्र इन पर निगाह वृष्टि कौन करेगा जो लूट ले जाओगे सबकी निगाहें हमसे दिलबर फिर बताओ इस परित्यक्त सी रूह पर दृष्टि कौन करेगा! तुमने तो बाँध ली बछल गठरी, मेरी तो मुष्टि भी कौन भरेगा ये जो तुम एक क्षण भर में कल्पों तक अकल्प कर रहे हो मुझे तो ये भी बताते जाओ इस अवस्था में मेरी विष्टि कौन करेगा ! अनुग्रह माँग कर रहा "आफताबी" तेरे रूष्ट चन्द्र वदन से जब राख हो जायेगी ये पंक्तियाँ तो सृष्टि कौन रचेगा अभी बसंत के माकूल उर्वर है कागज पर मेरा तेरा अंकन अब बताओ जब हो गई जमीं ये ऊसर तो फिर शब्द-कृष्टि कौन करेगा! तुष्टि- प्रसन्न पुष्टि- दृढ़, मजबूत विग्रह- टुकड़ा, विभक्त वृष्टि - बारिश बछल- प्रेम, वात्सल्य मुष्टि- मुट्ठी कल्प- युग अकल्प - कमजोर, क्षीण