Nojoto: Largest Storytelling Platform

New कठोपनिषद का सारांश Quotes, Status, Photo, Video

Find the Latest Status about कठोपनिषद का सारांश from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, कठोपनिषद का सारांश.

    PopularLatestVideo

राहुल अग्निहोत्री

कठोपनिषद लोक्ति nojoto #poem

read more
सस्यमिव मतर्या: पच्यते सस्यामिवाजायते पुनः।

अर्थात

मरणधर्मा मनुष्य अनाज की तरह है 
जो जराजीर्ण होकर मर जाता है
और फिर पुनः जन्म लेता है। कठोपनिषद लोक्ति #nojoto #poem

Nagendra Dahayat

जिंदगी का सारांश #अनुभव

read more
ना हारना जरूरी ना जीतना जरूरी जो रूठ गए ना उनको मना ना जरूरी यह जिंदगी है साहब बस इसे समझना जरूरी है

©nagendra dahayat

©nagendra dahayat जिंदगी का सारांश

वेदों की दिशा

।।ॐ।।

अ॒न्धन्तमः॒ प्र वि॑शन्ति॒ येऽस॑म्भूतिमु॒पास॑ते। 
ततो॒ भूय॑ऽइव॒ ते तमो॒ यऽउ॒ सम्भू॑त्या र॒ताः ॥९ ॥

पद पाठ

अ॒न्धम्। तमः॑। प्र। वि॒श॒न्ति॒। ये। अस॑म्भूति॒मित्यस॑म्ऽभूतिम्। उ॒पास॑त॒ इत्यु॑प॒ऽआस॑ते ॥ ततः॑। भूय॑ऽइ॒वेति॒ भूयः॑ऽइव। ते। तमः॑। ये। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। सम्भू॑त्या॒मिति॒ सम्ऽभू॑त्या॒म्। र॒ताः ॥९ ॥

(ये) जो लोग परमेश्वर को छोड़कर (असम्भूतिम्) अनादि अनुत्पन्न सत्व, रज और तमोगुणमय प्रकृतिरूप जड़ वस्तु को (उपासते) उपास्यभाव से जानते हैं, वे (अन्धम्, तमः) आवरण करनेवाले अन्धकार को (प्रविशन्ति) अच्छे प्रकार प्राप्त होते और (ये) जो (सम्भूत्याम्) महत्तत्त्वादि स्वरूप से परिणाम को प्राप्त हुई सृष्टि में (रताः) रमण करते हैं (ते) वे (उ) वितर्क के साथ (ततः) उससे (भूय इव) अधिक जैसे वैसे (तमः) अविद्यारूप अन्धकार को प्राप्त होते हैं ॥

(These) Those who know God (Asambhuti) except the infinitely unintelligible entity, Raja and Tamogunamya, the root object of nature (Upasate), they (Andam, Tama), the covering darkness (the entry) will get well and (these)  ) Those who achieve the result of the (Sambhutyam) Mahātattvādī form (Rātāh) in the creation (Ram): They (U) with vitarka (s) (more) than (the earth) are more like (Tama) in the dark darkness.  
 
ईशोपनिषद मंत्र ९ #उपनिषद #ईशोपनिषद

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

तस्माद्वा एते देवा अतितरामिवान्यान्देवान्यदग्निर्वायुरिन्द्रस्ते ह्येनन्नेदिष्ठं पस्पर्शुस्ते ह्येनत्प्रथमो विदाञ्चकार ब्रह्मेति ॥

केनोपनिषद चतुर्थ खण्ड मंत्र २ #केनोपनिषद #उपनिषद

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

प्रतिबोधविदितं मतममृतत्वं हि विन्दते।
आत्मना विन्दते वीर्यं विद्यया विन्दतेऽमृतम्‌ ॥

जब यह ऐसे प्रत्यक्ष बोध के द्वारा जाना जाता है जो ‘इसे’ प्रतिबिम्बित करता है, तभी व्यक्ति 'इसका’ विचार बना पाता है, क्योंकि उससे व्यक्ति को अमृतत्व की उपलब्धि होती है; उपलब्धि के लिए व्यक्ति को आत्मा से वीर्य (शक्ति) प्राप्त होता है तथा विद्या से अमृतत्व की प्राप्ति होती है।

When It is known by perception that reflects It, then one has the thought of It, for one finds immortality; by the self one finds the force to attain and by the knowledge one finds immortality.

केनोपनिषद द्वितीय खण्ड ४ #केनोपनिषद  #उपनिषद

Suman Pandey

कठोपनिषद नचिकेताकुँवरनारायण हिंदी कविता कविता हिन्दीकविता NITKavi

read more
mute video

वेदों की दिशा

।।ॐ।।
अने॑ज॒देकं॒ मन॑सो॒ जवी॑यो॒ नैन॑द्दे॒वाऽआ॑प्नुव॒न् पूर्व॒मर्ष॑त्। 
तद्धाव॑तो॒ऽन्यानत्ये॑ति॒ तिष्ठ॒त्तस्मि॑न्न॒पो मा॑त॒रिश्वा॑ दधाति ॥


ब्रह्म के अनन्त होने से जहाँ-जहाँ मन जाता है, वहाँ-वहाँ प्रथम से ही अभिव्याप्त पहिले से ही स्थिर ब्रह्म वर्त्तमान है, उसका विज्ञान शुद्ध मन से होता है, चक्षु आदि इन्द्रियों और अविद्वानों से देखने योग्य नहीं है। वह आप निश्चल हुआ सब जीवों को नियम से चलाता और धारण करता है। उसके अतिसूक्ष्म इन्द्रियगम्य न होने के कारण धर्मात्मा, विद्वान्, योगी को ही उसका साक्षात् ज्ञान होता है, अन्य को नहीं ॥

Wherever the mind goes from the eternal existence of Brahma, there is an already stable Brahm present in the first place, its science is done with a pure mind, the eye is not observable with senses and blinders. He has set himself up and governs all creatures by the law. Because of his not being very subtle sensible, only God, scholar and yogi get to know about him and not others.

ईशोपनिषद मंत्र 4 #ईशोपनिषद
#उपनिषद
#ब्रह्म

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

तेऽग्निमब्रुवन् जातवेद एतद्विजानीहि किमेतद्यक्षमिति तथेति ॥

उन्होने अग्निदेव से कहा, ''हे समस्त उद्भवों को जानने वाले देव (जातवेदा)! इस विषय में जानकारी प्राप्त करो कि यह बलशाली यक्ष क्या है?” अग्निदेव ने कहा, ''तथा इति” (मैं वैसा ही करूंगा)।

They said to Agni, “O thou that knowest all things born, learn of this thing, what may be this mighty Daemon,” and he said, “So be it.”

केनोपनिषद तृतीय खंड मंत्र ३ #केनोपनिषद #उपनिषद #अग्नि

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

न तत्र चक्षुर्गच्छति न वाग्गच्छति नो मनो
न विद्मो न विजानीमो यथैतदनुशिष्यात्।
अन्यदेव तद्विदितादथो अविदितादधि।
इति शुश्रुम पूर्वेषां ये नस्तद्व्याचचक्षिरे ॥

वहाँ न चक्षु जा सकता है, न वाणी, न ही मन। हम न 'उसे’ जानते हैं न यह जान पाते हैं कि ‘उसकी’ शिक्षा कैसे दी जाये; क्योंकि 'वह' विदित से अन्य है; तथा अविदित से भी परे है; 'वह' ऐसा है यह हमने उन पूर्वजों से सुना है जिन्होंने उस 'परतत्त्व' की हमारे बोध के लिए व्याख्या की है।

There sight travels not, nor speech, nor the mind. We know It not nor can distinguish how one should teach of It: for It is other than the known; It is there above the unknown. It is so we have heard from men of old who declared That to our understanding.

केनोपनिषद मंत्र ३ #Art #केनोपनिषद #उपनिषद

वेदों की दिशा

।।ॐ।।
अने॑ज॒देकं॒ मन॑सो॒ जवी॑यो॒ नैन॑द्दे॒वाऽआ॑प्नुव॒न् पूर्व॒मर्ष॑त्। 
तद्धाव॑तो॒ऽन्यानत्ये॑ति॒ तिष्ठ॒त्तस्मि॑न्न॒पो मा॑त॒रिश्वा॑ दधाति ॥


ब्रह्म के अनन्त होने से जहाँ-जहाँ मन जाता है, वहाँ-वहाँ प्रथम से ही अभिव्याप्त पहिले से ही स्थिर ब्रह्म वर्त्तमान है, उसका विज्ञान शुद्ध मन से होता है, चक्षु आदि इन्द्रियों और अविद्वानों से देखने योग्य नहीं है। वह आप निश्चल हुआ सब जीवों को नियम से चलाता और धारण करता है। उसके अतिसूक्ष्म इन्द्रियगम्य न होने के कारण धर्मात्मा, विद्वान्, योगी को ही उसका साक्षात् ज्ञान होता है, अन्य को नहीं ॥

Wherever the mind goes from the eternal existence of Brahma, there is an already stable Brahm present in the first place, its science is done with a pure mind, the eye is not observable with senses and blinders. He has set himself up and governs all creatures by the law. Because of his not being very subtle sensible, only God, scholar and yogi get to know about him and not others.

ईशोपनिषद मंत्र 4 #ईशोपनिषद
#उपनिषद
#ब्रह्म
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile