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    PopularLatestVideo

Vimlesh Vision

अपना हृदय  समुद्र जैसे रखो 

  नदिया खुद मिलने तुमसे आयेगीं #रिवर

ASHUTOSH Maurya

देखना है तो हमारे साथ चलो,
किसी दरिया किनारे साथ चलो,
शहरों के लोग सब पत्थर हुए हैं
छोड़ कर ये नजारे साथ चलो,

©ASHUTOSH 'ASHU' #Missing #रिवर

Babita Kumari

#woaurmain #रिवर #, love pramodini mohapatra neha gaTTubaba KhaultiSyahi ANSARI ANSARI pramod malakar Raj Yaduvanshi –Varsha Shukla ad sa #Love

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Nojoto Hindi (नोजोटो हिंदी)

'कलम से' कड़ी के कलाकार हैं-रस्किन बॉन्‍ड #Kalamse #RuskinBond रस्किन बॉन्‍ड का जन्म 19 मई 1934 को हिमाचल प्रदेश के कसौली में हुआ था। 17 साल

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 'कलम से' कड़ी के कलाकार हैं-रस्किन बॉन्‍ड 
#KalamSe #RuskinBond
रस्किन बॉन्‍ड का जन्म 19 मई 1934 को हिमाचल प्रदेश के कसौली में हुआ था। 17 साल

Agrawal Vinay Vinayak

मातृभूमि को कर नमन कर्तब्य पथ पर चल रहा, दिव्यता का तेज जिनके मुख पर जल रहा, हजारों मुश्किलें हैं, षड़यंत्र हैं, दुश्वारियाँ हैं एक उनके #Brave #womenempowerment #Soldier #army #IndianArmy #Armywife #yqvinayvinayak #yqkanhakiladli

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सेना का सम्मान
[Read Caption] मातृभूमि को कर नमन 
कर्तब्य पथ पर चल रहा,
दिव्यता का तेज जिनके मुख पर जल रहा, 
हजारों मुश्किलें हैं,  षड़यंत्र हैं,  दुश्वारियाँ हैं
एक उनके

Nojoto Hindi (नोजोटो हिंदी)

'कलम से' कड़ी के अगले कलमकार हैं- रस्किन बॉन्ड #Kalamse #RuskinBond रस्किन बॉन्‍ड का जन्म 19 मई 1934 को हिमाचल प्रदेश के कसौली में हुआ था। 17

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 'कलम से' कड़ी के अगले कलमकार हैं- रस्किन बॉन्ड
#KalamSe #RuskinBond
रस्किन बॉन्‍ड का जन्म 19 मई 1934 को हिमाचल प्रदेश के कसौली में हुआ था। 17

Shree

बस और मन में नहीं दब सकती...! मुझे चाहिए... अब वो गोदावरी का तट, और साबरमती रिवर फ्रंट, सागर की वो अधसोई लहरें और उन लहरों का शोर, दे दो मुझ #yourquote #yqbaba #yqdidi #yourquotebaba #yourquotedidi #musingtime #a_journey_of_thoughts #unboundeddesires

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शीर्षक/Caption:

                ले चलो मुझे...






 बस और मन में नहीं दब सकती...!
मुझे चाहिए...
अब वो गोदावरी का तट,
और साबरमती रिवर फ्रंट,
सागर की वो अधसोई लहरें
और उन लहरों का शोर,
दे दो मुझ

✍️ लिकेश ठाकुर

अंग्रेजों से लड़ भिड़े,वो इंकलाब की वाणी, भगत सिंह राज सुखदेव की,तुम याद करों कुर्बानी। देश भक्ति की भट्टीयों में,तपी उनकी जवानी, वादे प्यासी

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अंग्रेजों से लड़ भिड़े,वो इंकलाब की वाणी,
भगत सिंह राज सुखदेव की,तुम याद करों कुर्बानी।
देश भक्ति की भट्टीयों में,तपी उनकी जवानी,
वादे प्यासी मोहब्बतों के,सूनी किसी की धानी*।
बालपन से वीर रसों का,रगो में बहती रवानी,
ऐसे महान वीरों की,तुम याद करों कुर्बानी।

क्रांति की मशाल जलाकर,तोड़ी ग़ुलामी की जाली।
अंग्रेजों की छक्के छुड़ा दी,वो इंकलाब की वाणी।
संसद की गूँज ने,गोरों को हिला डाली,
ना डरे ना भागे,देशभक्त थे बड़े अभिमानी।
नरसंहार जालियांवाला का,हिलोरें लेती डाली,
रंजिशों के बादलों ने,क्रांतिकारी बना डाली।
निडर अविचल इरादे,तन मन थे फौलादी,
भगत राज सुखदेव की,तुम याद करों कुर्बानी।

गूँगी बहरी अभेद्य दीवारें,तोड़ उन्होंने डाली,
भारत माँ के सपूत थे,वो इंकलाब की वाणी।
देशप्रेम के ख़ातिर मौत को,हँसते गले लगा ली,
भगतसिंह राज सुखदेव की,तुम याद करों कुर्बानी।।
कवि लिकेश ठाकुर
*धानी-रंगीन दुपट्टा अंग्रेजों से लड़ भिड़े,वो इंकलाब की वाणी,
भगत सिंह राज सुखदेव की,तुम याद करों कुर्बानी।
देश भक्ति की भट्टीयों में,तपी उनकी जवानी,
वादे प्यासी

Aprasil mishra

********************************* पीड़ायें तो पीड़ायें हैं विह्वल पीड़ायें क्या जाने, है हिमनद में यों तपी देह कि वह बह बह कर ही म #Pain #Struggle #tears #river #View #yqhindi #हरिगोविन्दविचारश्रृंखला

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"जलप्लावन : शैवालिनि(नदी) पीड़ा"
( अनुशीर्षक👇)  *********************************

पीड़ायें  तो  पीड़ायें   हैं   विह्वल  पीड़ायें  क्या  जाने,
है हिमनद में यों तपी देह कि वह बह बह कर ही म

रजनीश "स्वच्छंद"

क्या लिखूं और कब लिखूं। मैं अब लिखूं की तब लिखूं, तुम ही बोलो कब लिखूं। मैं जप लिखूं की तप लिखूं, तुम जो बोलो सब लिखूं। मैं शब्द हूँ और प् #Poetry #Quotes #words #kavita #hindikavita #hindipoetry #shabd

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क्या लिखूं और कब लिखूं।

मैं अब लिखूं की तब लिखूं, तुम ही बोलो कब लिखूं।
मैं जप लिखूं की तप लिखूं, तुम जो बोलो सब लिखूं।

मैं शब्द हूँ और प्राण हूँ, तम का कवच भेदता बाण हूँ।
उदबोधन हूँ मैं ज्ञान हूँ, बन सबल निर्बलों का मान हूँ।

मैं ढाल भी मैं प्रहार हूँ, कुरान भी और गीता सार हूँ।
जीवन भी और संहार हूँ, वाणी की तीक्ष्ण मैं धार हूँ।

बिन पांव भी मैं चल रहा, कभी छू क्षितिज ढल रहा।
जेहन में सबके पल रहा, मन मे दीया बन जल रहा।

मैं राह तेरी गढ़ रहा, बिन बोले ही सब मैं पढ़ रहा।
हो नत हूँ पर्वत चढ़ रहा, अकम्पित आगे बढ़ रहा।

विष पिये मैं नीलकंठ, सुंदर ग्रीवा और मोर पंख।
लेख कविता और छंद, मैं ही मज़हब जाति पंथ।

मैं शब्द अविरल बह रहा, कानों में सबके कह रहा।
हो वज्र सब मैं सह रहा, ग़म में खुशी की तह रहा।

मैं तपी हूँ मैं हूँ ज्ञानी, बिन रंग चढ़ा मैं तो हूँ पानी।
सबने मेरी बात मानी, चलो फिर कभी बाकी कहानी।

©रजनीश "स्वछंद" क्या लिखूं और कब लिखूं।

मैं अब लिखूं की तब लिखूं, तुम ही बोलो कब लिखूं।
मैं जप लिखूं की तप लिखूं, तुम जो बोलो सब लिखूं।

मैं शब्द हूँ और प्
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