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Pushpmala_pandey_mrs.mishraa

#मजदूर मजबूर नहीं मजबूत होते है #Majdoorkikahani #ज़िन्दगी

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Hem Raj jangid

मजबूरी के मजदूर शायरी

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मजबूरी के मजदूर है हम इसलिए मजबूर हैं हम
ऐसे हम मजबूर नही होते है जनाब
कुछ मजबूरिया मजबूर कर देती है मजबूर होने के लिए 
उन मजबूरियों से मजबूर होकर मजबूरी
के मजदूर है हम।

हेमराज जांगिड़ मजबूरी के मजदूर शायरी

Dr Satish Maurya

मजबूर मजदूर

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साथ मे बच्चे 
नन्हें नन्हें पैर ,सहा न जाय काली रोड की तपिश,और दूरी का जहर ऊपर से प्यास और भूख का कहर, मोटर न सवारी मीडिया ले रहे फ़ोटो बारी बारी
मजदूर और उनके बच्चों की मजबूरी 
ले रहे पत्रकार फ़ोटो बारी बारी, मजबूर मजदूर

Pradeep Kumar Mishra

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monu agrawal

मजबूर मजदूर #poem

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DHIRAJ GARG

मजबूर मजदूर #nojotovideo

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jagdish dawar

# मजबूर मजदूर

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Satish Kaushal

मजदूर मजबूर #कविता

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बहुत कुछ कहके हम फसना नही चाहते,
दो वक्त की रोटी मिल रही है वही बहुत है..
सच बोलकर इन रोटियों के लिए 
तरसना नही चाहते..
समय और हालात एक सा नहीं रहता,
आज है तो कल भी आएगा
जो चमक रहा है दिन के उजालों की तरह,
वक्त का पहिया घूमेगा और 
वो भी ढल ही जायेगा..
इतना कुछ कहके भी क्या होने वाला है
तेरे हिस्से में जितनी मुस्कुराहट है मुस्कुराले
क्यों की तू तो ऐसे ही रोने वाला है...
तू मजदूर है मजबूर रहेगा,
तुझे इंसान कौन समझता यहां
तेरे दर्द तेरे है यहां 
तेरे दर्द को कौन सहेगा..
मत सुना अपने दर्द जमाने को
लोग तेरा मजाक बनाएंगे
तू रोएगा और ये मुस्कुराएंगे

©Satish Kaushal मजदूर 
मजबूर

कौशिक

मजबूर मजदूर

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हां मजदूर हूं मैं
पर उस से कहीं ज्यादा मजबूर हूं मैं
दिन भर मेहनत कर पसीना बहाता हूं
तब कहीं जाकर मुठ्ठी भर कमाता हूं                               
 मजदूर हूं 
अपना घर  परिवार छोड़के आता हूं
 शौक नहीं मजबूर हूं
 इसलिए शहर शहर ठोकरें खाता हूं
सोचता था एक धागा हूं जिसमे शहरों के मोती पिरोता हूं
सोचता था मै वो कड़ी हूं जो भारत को भारत होने देता हूं 
 ये मोटर,ये गाड़ी आलीशान बंगले साहब
 सब बने मेरे ही पसीने से हैं
 वो संसद जिसमे होती है  साजिशे मेरे ही खिलाफ
 वो भी इन्हीं हाथो के नगीने हैं
लोग देखते है कारीगरी तो तारीफ करते हैं
जब मेरे  लिए कुछ करने की बारी होती है
तब बस टीवी के आगे बातें करते हैं
बहुत तो कहते हैं 
ये मजदूर है टिकता नहीं है एक जगह
देश में महमारी फैलाने की यही है बस एक वजह
  मुझे तो कोई शौक नहीं   दर दर भटकने का
  रोटी कपड़ा मिलता यहीं पर  तो साहब क्यों करता 
  मीलों का पैदल सफर
क्या देखते नहीं या दिखता ही नहीं हुक्मरानों को
देश का सिपाही देश में ही मोहताज है
दाने दाने को  
(देश में मजदूर होना अभिशाप है
मजदूर होने की सज़ा पूरा परिवार भुगतता है) मजबूर मजदूर

feeling

*बिस्तर नही है उनके नसीब में साहब।*
*गरीब हैं गर्म हौसले ओढ़कर सो जाते हैं।*

@अज्ञात #City #मजदूर #मजबूर #
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