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B Pawar
तैयारी मेरे देश के साक्षर युवा लगन से कर रहे तैयारी। किसी भी हालत में बनना है इनको आदमी सरकारी। भर्ती फॉर्म कोई भी हो चपरासी हो या अधिकारी। बैठ के कुर्सी तोड़ने मिल जाए नौकरी मिल जाए सरकारी। भले हो देश की बर्बादी भ्रष्टाचार , बढ़े महंगाई। पगार टाइम पर आ जाए नौकरी चाहिए सरकारी। आम आदमी का अधिकार या मारेंगे खून पसीने की। रिश्वत से देश चलाएंगे बस बन जाए ये सरकारी। बाप दादा भी थे सरकारी इनको भी बनना अधिकारी। रिश्वत-खोर बाप-दादा थे ये भी बनेंगे भ्रष्टाचारी। क्यूं है लोभ सरकारी का? फैली हो जैसे बीमारी? जहां देखो वहां, बेरोजगार युवा बस कर रहा क्यूं तैयारी? यहां नीचे पूरा पढ़ें 👇👇👇👇👇 तैयारी मेरे देश के साक्षर युवा लगन से कर रहे तैयारी। किसी भी हालत में बनना है इनको आदमी सरकारी।
kamal sharma
तुम्हारा साधारण होना अब एक असाधारण घटना है क्युँकि यदि तुम कुटिल नही हो,तो सफलता के पैमाने में तुम अयोग्य ही घोषित हो यदि तुम्हारी रीढ सीधी है और तुममे झुकने की कला नहीं है,तो फिर उनके तय किये मापदंड में तुम्हारी अहमियत इतनी नही कि तुम उनके राग दरबारियों में शामिल माने जा सको तुम्हारा विवेकहीन होना ही उनको सहुलियत देता है तुम्हारी मुखरता उन्हे चोट दे सकती है तुम्हारे बोध से वो भयभीत हो सकते है अतः तुम्हारी असाधारणता ही तुम्हारा कवच है नेपथ्य के शोर पर कान बंद कर आगे बढो लोकतंत्र में आजादी के खतरे बहुत है # आम आदमी
hemant chhipa
मैं किसी अमीर के बदन से लिपटा तो तमीज़ बन गया किसी गरीब से मिला तो फटी पुरानी कमीज बन गया जो निकल ना पाए इस अमीरी ग़रीबी की दलदल से वो शख्स किश्तों को चुकाते चुकाते मरीज बन गया #आम आदमी
sai mahapatra
आम आदमी_साई महापात्र ----------------------------------- कुछ लोग बड़े बड़े मकानों में रहते है अच्छा अच्छा खाना खाकर मुलायम बिस्तर में सोते है कभी आकर तो देखो साहब तपती धूप में काम करना कैसा होता है जब उनका हक़ का पैसा उन्हें नहीं मिलता है तो किया बीतता है सारे घर का बोझ शर पे लिए इए एक आम आदमी कह रहा है आपसे बड़े बड़े मकानों में रहने वाले बड़े बड़े लोग ज़रा सुनो इस आवाज़ को गौर से हर दिन दो वक्त का खाना जुगाड करने केलिए करता रहता है वो संघर्ष अपने घरवालों को अपने बच्चो को वो अच्छी ज़िन्दगी नहीं दे पाया यहीं रहता उसका हमेशा अफ़सोस वो बड़े बड़े महलों में रहने का सपना नहीं देखता है अपने परिवार को अच्छी ज़िन्दगी कैसे दे सकता है यहीं वो हमेशा सोचता रहता है कभी आकर तो देखो साहब तपती धूप में काम करना कैसा होता है जब उनका हक़ का पैसा उन्हें नहीं मिलता है तो किया बीतता है ********************************************* आम आदमी
Mehfil-e-Mohabbat
खुल के एक लम्हा भी जी नहीं पाए ज़िंदगी इक नौकरी में कट गई ©Rahul Raushan Rahul एक आम आदमी का दर्द #AWritersStory