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Sarvaiya Dharmesh
हम तो वो है जिसे गुलामी में भी "आजाद" कहते थे। चंद्रशेखर आजाद ...comrade क्रांतिकारी
chintu kumar
रात नहीं ख्वाब बदलता है, मंजिल नहीं कारवाँ बदलता है; जज्बा रखो जीतने का क्यूंकि, किस्मत बदले न बदले , पर वक्त जरुर बदलता है। चिंटू कुमार क्रांतिकारी शायरी
Dinesh kagra (DK)
(लाचार मजदूर) गरीब,लाचार ,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है। भूखा पैदल चल रहा हूँ, अभी घर मेरा बहुत दूर है। घर से निकला सोचा ना था,की ऐसा वक्त भी आयेगा। रोटी के बदले फ़ोटो खीचकर, वो गरीब का मजाक बनाएगा। पैदल ही घर को चल पड़ा, अपनो से मिलने का शरूर है। गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है। जो देश छोड़कर निकल लिए,आज उनपे रहमत जारी है। जिनका खून देश की नींव में है,आज वक्त भी उनपे भारी है। भूख से दम ना तोडेंगे हम, साथ अपनो के मरणा मंजूर है। गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है। कोई दे गया झूठी तस्सली, किसी ने अपनी रोटी शेखी है। एक रोटी पे दो वक्त गुजारे, हमने वो गरीबी देखी है। गरीब को मरते उसके हाल पर छोड़ा, ये दुनिया का दस्तूर है। गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है। दो छोटे बच्चे गोद मे है,माँ,बहन के पैर में छाले है। वो बच्चे भूखे रो रहे है, जो प्यार से हमने पाले है। मरे के मुँह में घी लगाते, ये दुनिया का उसूल है। गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है। कुचला पड़ा परिवार किसी का,किसी के भाई ने दम तोड़ा है। सीना किसी का कटा पड़ा है, किसी से मंजिल ने मुँह मोड़ा है। हर कोई दर्द को देख रहा है, पर लगता सबको फिजुल है। गरीब,लाचार ,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है। भूखा पैदल चल रहा हूँ, अभी घर मेरा बहुत दूर है। #DK #लाचार_मजदूर #क्रांतिकारी
Modern Gyani
इतिहास के पन्नों पर, क्या नवजवानों के लहू का मोल है जहां रणभूमि में रो रहा सत्य है। और विजयी पुरुष के नाम पर अर्द्ध _ मृत _ से हो रहे आनंद से; किन्तु व्यंग्य, पश्चाताप, अंतरदाह का अब विजय _ उपहार भोगो चैन से। ©Modern Gyani #क्रांतिकारी #सुभाषचंद्रबोस
J.P. BABBU
भारत की स्वतंत्रता की पुकार को विदेशों में बुलंद करने के लिए आजीवन प्रयासरत रहने वाले महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और संस्कृत एवं वैदिक शास
motivation
2 Years of Nojoto क्योंकि मैं उस औरत के बारे में जानता हूँ जो अपने सात बित्ते की देह को एक बित्ते के आंगन में ता-जिंदगी समोए रही और कभी बाहर झाँका तक नहीं और जब बाहर निकली तो वह कहीं उसकी लाश निकली जो खुले में पसर गयी है माँ मेदिनी की तरह -विद्रोही #विद्रोही क्रांतिकारी कवि