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Ankita Tripathi
एक मुट्ठी भरी उस खुशी के लिए रोज़ सुबह से शामें सड़क पे है वो ग़रीब का पेट बड़ा होता है साहब बस उसे भरपेट खाने को नही मिलता.... #yqbaba #yqdidi #YoPoWriMo #tmpd #life #ankyy #yqbhaijaan #नफ्स़
Nikhil Kumar Rai
Suyash
काम करके भी थकी होती पर दर्द को अपने वो छुपाती , खाना बनाने से गर्म है शरीर कहकर बुखार अपना छुपाती , ख़ुद भले आधा पेट है खाती पर बच्चों को भरपेट है खिलाती , जिम्मेदारियों से दबी है ये होती पर फ़िर भी उफ़्फ़ तक ना करती !! 🙏 माँ 🙏🙏 काम करके भी थकी होती पर दर्द को अपने वो छुपाती , खाना बनाने से गर्म है शरीर कहकर बुखार अपना छुपाती , ख़ुद भले आधा पेट है खाती पर ब
Rohit Thapliyal (Badhai Ho Chutti Ki प्यारी मुक्की 👊😇की 🙏)
घर का रास्ता दिल को भाता! दिल घर से दूर भी जाता! तो भी दिल को याद आता! दाएँ-बाएँ खूब हरे-भरे पेड़ और खेत... घर का रास्ता बना मिट्टी का दिलदार पगडंडी सेठ... कहता कि- "तुम्हारे लिये पलकें बिछाए मैं हर पल खुला रखता दिल का गेट... जब इच्छा हो, तब आओ, और छुट्टी मनाओ तुम भरपेट...!" 🏕👌💎❤👂🔔🤛👊😇🙏 @बधाई हो छुट्टी की प्यारी मुक्की👊😇की🙏 #Family #BadhaiHoChuttiKi घर का रास्ता दिल को भाता! दिल घर से दूर भी जाता! तो भी दिल को याद आता! दाएँ-बाएँ खूब हरे-भरे पेड़ और खेत... घर का
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
साहब गरीबो के भूखे पेट में भरपेट*तवाम चाहिए, और जनाब अमीर को भी रोगने बादाम चाहिए/१ थालियों में छेद करना कोई इनसे सीख ले,ये लोग कौन है,क्यूं नही इनको लगाम चाहिए//२ चश्म में अश्क लबों पर तबस्सुम चाहिए,दर्द ए हयात में भूख को भी लुकमा ए अराम चाहिए//३ ऐ भूख *शब भर ख्वाब में तारे सजाना,गर तुझको भी *सहर में *शामी_कबाब चाहिए//४ शमा जख्मी पेट_ए_जिगर दिखा देगी मगर पास में *हकीम रहे तो साथ में हाकम भी चाहिए//५ shamawritesBebaak ✍️ ©shama writes Bebaak साहब गरीबो के भूखे पेट में भरपेट*तवाम चाहिए,और जनाब अमीर को भी रोगने बादाम चाहिए/१*खाना थालियों में छेद करना कोई इनसे सीख ले,ये लोग कौन है,
Kumar.vikash18
कल ही की बात है मैंने टेलीविजन पर एक विज्ञापन देखा , जिसमें कुछ स्कूली बच्चों को दिखाया गया , वह किसान जैम का विज्ञापन था ! जिसे बहुत ही सुन्दर तरीके से फिल्माया गया था ! और बताया गया था की , अगर आपके बच्चे लंच नहीं खाते हैं , तो उन्हे किसान जैम खाने की चीजों के साथ लगाकर दिया जाये , तो बच्चे पूरा लंच खा लेंगे ! विज्ञापन देखकर मेरी श्रीमती जी की खुशी का ठिकाना न रहा , उन्हे रास्ता मिल गया अपने बच्चों को भरपेट भोजन कराने का ! श्रीमती जी ने तुरंत एक भूमिका बाँधते हुये मुझे आदेश किया , सुनो जी तुम्हारा क्या तुम तो रोज सुबह से आफिस चले जाते हो , और तुम्हारे इन बच्चों को खाना खिलाने के लिये मुझे कितना परेशान होना पड़ता है ! तो कल आफिस से आते वक्त्त किसान जैम का एक बड़ा डिब्बा लेते आना ! मैंने हाँ में गर्दन हिलाई और सो गया , पर मुझे नींद न आई मेरे दिमाग में एक विचार चलने लगा ! मैं सोच रहा था कि एक गरीब के बच्चे कैसे भरपेट खाना खाते हैं ! या शायद उन्हे इन चीजों का पता ही नहीं होता ! क्योंकि उनके यहाँ टेलीविजन ही नहीं होता , मैं अब तक समझ नहीं पा रहा था , कि ऐ टेलीविजन हमें और हमारे बच्चों को बिगाड़ रहा है , या शिक्षित कर रहा है !! टेलीविजन कल ही की बात है मैंने टेलीविजन पर एक विज्ञापन देखा , जिसमें कुछ स्कूली बच्चों को दिखाया गया , वह किसान जैम का विज्ञापन था ! जिसे
Juhi Grover
उम्मीदें करने से क्या होगा, कोशिशें भी तो करनी होंगी, सोचने भर से ही क्या होगा, सोच सबकी बदलनी होगी। ग़र यकीन है नई सुबह का, एहसास भी दिलाना होगा, नव चेतना की लहर चला, खुद को भी जलाना होगा। चिंगारी निकलेगी अन्दर से, मुझे ही शुरुआत करनी होगी, सोचने भर से ही क्या होगा, सोच सबकी बदलनी होगी। तभी तो हम ये कह सकते हैं, वो सुबह कभी तो आएगी, तभी तो हम सोच सकते हैं, वो सुबह कभी ज़रूर आएगी। गहराया तिमिर है स्याह घना भटकें हम सूझे ना राह कोई उम्मीद में भोर की बैठें हैं काटे इस तम को किरण कोई वो आकर जन जन के मन में नव चेतना जगाएगी
Er.Rajeev "ऋतुज"
" क्या जाने" .. जो रहते निज ऊँचे महलो में वो मिट्टी का घरौंधा क्या जानें। जो सोते हैं पक्की छत के नीचे वो छप्पर का टपकना क्या जाने। जो चलते सदा ए.सी. कारो में वो ज्येष्ठ दुपहरी क्या जाने। जो सोते मोटे गद्दो पर वो धरती पर सोना क्या जाने। जिनके सर माँ का आँचल है वो माँ का बिछड़ना क्या जाने। जिनको मिलता भरपेट अन्न वो भूखे सो जाना क्या जाने। जिनके घर हैं नौकर चाकर खुद वो नौकरी का मतलब क्या जाने। जिनको मिल जाती पुश्तैनी दौलत वो दौलत का कमाना क्या जाने। जिनके घर न कोई बेटी है वो बेटी की तमन्ना क्या जाने। जिनके दिल हैं पाषाण यहाँ वो मोम सा पिघलना क्या जाने। ©कच्ची कलम -"राख" " क्या जाने" .. जो रहते निज ऊँचे महलो में वो मिट्टी का घरौंधा क्या जानें। जो सोते हैं पक्की छत के नीचे वो छप्पर का टपकना क्या जाने।
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