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Ek villain
सफलता हासिल करने के लिए सबसे पहले हमें अपनी इच्छा एवं बुरी प्रवृत्तियों को ढूंढना चाहिए हम क्या हैं क्या बनना चाहते हैं इसका विश्लेषण करना चाहिए अपने जीवन के धैर्य के संबंध में उचित निर्णय लेना चाहिए हमें जैसा होना चाहिए वैसा जैसा होना चाहिए वैसा ही बनने के लिए हमें कठिन प्रयास करने चाहिए हमें अपने ध्यान को असफलता से सफलता की ओर चिंता से अनिश्चित चिंता की ओर भटकाव से एक गधा की ओर अशांति से शांति की ओर और शांति से आंतरिक आनंद की ओर लगना चाहिए ©Ek villain #Shayari सफलता हासिल करने के लिए सबसे पहले हमें अपनी अच्छी एवं बुरी प्रवृत्तियों को ढूंढना चाहिए
Motivational indar jeet group
जीवन दर्शन 🌹 असली शत्रु हमारे कुसंस्कार है जो पशु प्रवृत्तियों के रूप में अंतरंग की उत्कृष्टता की दिशा में एक कदम बढ़ने की तैयारी करते ही भारी अड़चन बनकर द्वार रोकते हैं !.i. j ©motivationl indar jeet guru #जीवन दर्शन 🌹 असली शत्रु हमारे कुसंस्कार है जो पशु प्रवृत्तियों के रूप में अंतरंग की उत्कृष्टता की दिशा में एक कदम बढ़ने की तैयारी करते ही भ
Divyanshu Pathak
रस्म-ओ-रिवाज़ के बिना रिश्ते पुष्प रहित वृक्ष की तरह होते हैं। #रिश्ते #रश्मों_रिवाज #yqlife #yqlove #yqdidi #पाठकपुराण #yqquotes #YourQuoteAndMine Collaborating with Vidya Shandilyaजी मनुष्य ने सम
Pnkj Dixit
🚩🇮🇳🚩 मनुष्य को राजहंस की तरह नीर-क्षीर विवेक करना चाहिए और जो उत्कृष्ठ है,उसी को हठपूर्वक ग्रहण करना चाहिए। जिस प्रकार सूर्य मे गर्मी और रोशनी दो गुण हैं उसी प्रकार सत्य में दो प्रवृत्तियों का समन्वय है एक यथार्थता,दूसरी मंगलोन्मुख न्यायनिष्ठ दूरदर्शिता। इन दोनों का समन्वय ही पूर्ण सत्य है, एकांगी तो अधूरा रहता है । जय श्री राम 🚩 ©Pnkj Dixit 🚩🇮🇳🚩 मनुष्य को राजहंस की तरह नीर - क्षीर विवेक करना चाहिए और जो उत्कृष्ठ है , उसी को हठ - पूर्वक ग्रहण करना चाहिए । जिस प्रकार सूर्य मे गर्
Pnkj Dixit
#OpenPoetry मनुष्य को राजहंस की तरह नीर - क्षीर विवेक करना चाहिए और जो उत्कृष्ठ है , उसी को हठ - पूर्वक ग्रहण करना चाहिए । जिस प्रकार सूर्य मे गर्मी और रोशनी दो गुण है , उसी प्रकार सत्य में दो प्रवृत्तियों का समन्वय है , एक - यथार्थता , दूसरी -- मंगलोन्मुख न्यायनिष्ठ दूरदर्शिता । इन दोनों का समन्वय ही पूर्ण सत्य है, एकांगी तो अधूरा रहता है । ।। जय श्री राम 🚩🕉️ ०२/०८/२०१९ 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' मनुष्य को राजहंस की तरह नीर - क्षीर विवेक करना चाहिए और जो उत्कृष्ठ है , उसी को हठ - पूर्वक ग्रहण करना चाहिए । जिस प्रकार सूर्य मे गर्मी
Singleboy9918
"आदतों का खेल" स्वभाव आदतों का एक योग है, यही इसका सबसे बड़ा रोग है। जब इसे बदलने जाते हैं, तो अपनी फितरत को इसके विपरीत पाते हैं। इनका इस क
Divyanshu Pathak
पूरा देश लक्ष्मी की पूजा करता है दीपावली पर। दुर्गा की पूजा करता है नवरात्रा में,नौ दिन। सरकारें अरबों रूपए चाट रही हैं- ‘बेटी बचाओ’,‘कन्या भ्रूण’,‘बेटी पढ़ाओ’,‘शादी करवाओ’, ‘उनको मुफ्त शिक्षा दो’,‘किताबें,यूनिफॉर्म, साइकिलें बांटों।’ और जब वो बड़ी हो जाएं तो सत्ता में बैठे मठाधीश ही सबसे पहले उनको भोग की वस्तु बना डालते हैं। दीपावली का पर्व लक्ष्मी- उल्लू और अंधकार का है। उल्लू को प्रकाश में दिखाई नहीं देता। इसीलिए पर्व रात में ही मनाया जाता है। आज रोशनी आधार बन
N S Yadav GoldMine
अध्याय 3 : कर्मयोग श्लोका 41 तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ। पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्।। अर्थ :- {Bolo Ji Radhey Radhey} हे अर्जुन, आरम्भ में ही इन्द्रियों को वश में कर, ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार के पापी विनाशक इस काम को निश्चय ही मार डालो हे अर्जुन, भरतों में से सर्वश्रेष्ठ, शुरुआत में ही इंद्रियों को नियंत्रित करने से आपको इस काम या इच्छा को मारने में मदद मिलेगी, जो पाप का अवतार और ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार का विनाशक है।। जीवन में महत्व प्रभु उस रहस्यमय शक्ति का रहस्य बताते हैं जो मनुष्य को पाप करने के लिए मजबूर करती है, हालाँकि वह ऐसा नहीं करना चाहता। भगवान बल का विश्लेषण करते हैं, और कहते हैं कि काम और क्रोध की जुड़वां बुराइयां मनुष्य द्वारा किए गए सभी पापों के पीछे की शक्ति का निर्माण करती हैं। आवेग हमें यह विश्वास दिलाता है कि भौतिक सुख हमें सुख देंगे, और इस प्रकार यह उन्हें प्राप्त करने की इच्छा पैदा करता है। और फिर जब हम उन्हें हासिल नहीं करते हैं, तो यह क्रोध की ओर ले जाता है। पहला कारण है और दूसरा प्रभाव है। जब काम होता है, तो क्रोध होता है। इसलिए काम को मनुष्य की छह बुरी प्रवृत्तियों में से पहला कहा जाता है - काम, क्रोध, लोभा, मोह, मद और मत्स्य। काम शत्रु शक्तियों की टीम का कप्तान है जो मानव जाति को परेशान करती है, और सीधे आत्म-साक्षात्कार के रास्ते में खड़ी होती है। काम मांस की वासना नहीं है, बल्कि सभी सांसारिक सुखों का प्रतिनिधि है - अमीर होने की इच्छा, शक्ति और प्रतिष्ठा की वासना, शारीरिक आग्रह आदि। इसलिए भगवान काम, इच्छा और क्रोध के शत्रु को साहस और दृढ़ संकल्प के साथ जीतने के लिए प्रेरक वचन बोलते हैं, चाहे संघर्ष कितना भी लंबा और कठिन क्यों न हो। "जाहि सतरुम महाबाहो" के साथ समाप्त होने वाले आने वाले छंद हर तरह से दुश्मन को हराने और नष्ट करने के लिए भगवान का शानदार उपदेश है। श्री कृष्ण इच्छा को वश में करने की एक विधि प्रदान करते हैं। उन्होंने अर्जुन को पहले इंद्रियों के स्तर पर इच्छा को नियंत्रित करने की सलाह दी। इच्छाएं इंद्रियों में मौजूद पसंद और नापसंद में उत्पन्न होती हैं, और इसलिए हमें उनके पीछे जाना चाहिए। इसके लिए हमें अपनी पसंद-नापसंद के बारे में लगातार जागरूक और सतर्क रहने की आवश्यकता है, और एक बार जब हम उन्हें देखते हैं तो उनके ऊपर हावी नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए, हम अपने मन में किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति क्रोध का पता लगा सकते हैं जिसे हम नापसंद करते हैं। हम क्रोधित विचारों को दबाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन यह संभव नहीं है। इसलिए हमें पहले उस व्यक्ति के प्रति कोई कठोर शब्द न बोलकर जीभ के स्तर पर क्रोध को नियंत्रित करना सीखना चाहिए। हमें सचेत करने और वर्तमान क्षण में लाने के लिए कई तकनीकें हैं। सबसे सरल तकनीक है कुछ सांसें लेना और केवल सांस लेने और छोड़ने पर ध्यान केंद्रित करना। यह सभी मानसिक "बकबक" को तुरंत रोक देगा। श्री कृष्ण ने यहां यह भी उल्लेख किया है कि इच्छा न केवल ज्ञान बल्कि ज्ञान को भी नष्ट कर देती है। ©N S Yadav GoldMine अध्याय 3 : कर्मयोग श्लोका 41 तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ। पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्।। अर्थ :- {Bolo Ji Radhey
Shree
दिखे ना कोई उद्गम, ना विराम! अनुशीर्षक प्रेम .... प्रेम के कई प्रारूप होते हैं, कई चरण होते हैं, ऐसा कहते हैं। पर, जब चरम आता है, प्रेम का तो ना कोई रूप, ना कोई चरण, ना आंसू, ना म
Aprasil mishra
नव प्रगतिवाद एक आखेट " नव प्रगतिवाद एक आखेट " हम उद्दीपन की ऐसी व्यवस्था के शिकार क्यों हो रहे हैं, जहाँ उच्छृंखल विषयों पर भी विकल्पहीनता दे