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Vikas Sharma Shivaaya'

ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।। ”ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं “ “ अब कै माधव मो #समाज

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ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।

”ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं “

“ अब कै माधव मोहिं उधारि-मगन हौं भाव अम्बुनिधि में कृपासिन्धु मुरारि॥
नीर अति गंभीर माया लोभ लहरि तरंग-लियें जात अगाध जल में गहे ग्राह अनंग॥
मीन इन्द्रिय अतिहि काटति मोट अघ सिर भार-पग न इत उत धरन पावत उरझि मोह सिबार॥
काम क्रोध समेत तृष्ना पवन अति झकझोर-नाहिं चितवत देत तियसुत नाम.नौका ओर॥
थक्यौ बीच बेहाल बिह्वल सुनहु करुनामूल-स्याम भुज गहि काढ़ि डारहु सूर ब्रज के कूल॥ “

दुनिया रूपी समुद्र में माया रूपी पानी भरा हुआ है, लालच की लहरें हैं, वासना के रूप में मगरमच्छ हैं, इंद्रियां मछलियां हैं, और पापों का बंडल इस जीवन के शीर्ष पर रखा गया है। इस समुद्र में मोह आकर्षण है। काम, क्रोध आदि की हवा हिल रही है। तब हरि नाम की नाव पार हो सकती है। महिलाओं और बेटों की माया मोह यहां देखने की अनुमति नहीं देती है।भगवान हाथ पकड़कर हमारे बेड़े को पार कर सकते हैं।

🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।

”ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं “

“ अब कै माधव मो

Vikas Sharma Shivaaya'

ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।। अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्, भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!

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ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।

अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!

तू हिन्दु बनेगा ना मुसलमान बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा  ।

अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है-तुझको किसी मजहब से कोई काम नहीं है-जिस इल्म ने इंसान को तकसीम किया है-उस इल्म का तुझ पर कोई इलज़ाम नहीं है-तू बदले हुए वक्त की पहचान बनेगा ।

मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया-हमने उसे हिन्दू या मुसलमान बनाया-कुदरत ने तो बख्शी थी हमें एक ही धरती-हमने कहीं भारत कहीं इरान बनाया-जो तोड़ दे हर बंध वो तूफ़ान बनेगा ।

नफरत जो सिखाये वो धरम तेरा नहीं है-इन्सां को जो रौंदे वो कदम तेरा नहीं है-कुरआन न हो जिसमे वो मंदिर नहीं तेरा-गीता न हो जिसमे वो हरम तेरा नहीं है-तू अम्न का और सुलह का अरमान बनेगा ।

ये दीन के ताजिर ये वतन बेचने वाले- इंसानों की लाशों के कफ़न बेचने वाले-ये महलों में बैठे हुए ये कातिल ये लुटेरे-काँटों के एवज़ रूह-ए-चमन बेचने वाले-तू इनके लिये मौत का ऐलान बनेगा  ।

🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।

अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!

OMG INDIA WORLD

#OMGINDIAWORLD (((( नवरात्र में उपवास का महत्व )))) . नवरात्र में उपवास रखने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। नवरात्र में विधि-विधान से मा #समाज #navaratri

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(((( नवरात्र में उपवास का महत्व ))))
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नवरात्र में उपवास रखने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। नवरात्र में विधि-विधान से माता की पूजा के साथ व्रत भी रखा जाता है। 
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कुछ लोग पहले दिन और अष्टमी के दिन उपवास रखते हैं तो वहीं नवरात्र में कुछ लोग पूरे 9 दिन का उपवास करके मां शारदा की आराधना करते हैं। 
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क्या कभी आपने सोचा है कि नवरात्र में व्रत रखने के पीछे क्या वजह है, नवरात्र में उपवास रखने का विशेष महत्व है। देवी पूजा के साथ व्रत करके माता से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। 
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आइए जानते हैं नवरात्र के पावन पर्व रखे जाने वाले व्रत के महत्व के बारे में।
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नवरात्र में देवी पूजन करने का विधान है। व्रत-उपवास भी इसके ही अंतर्गत आता है। 
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मान्यता है कि नवरात्र रखे जाने वाले यह व्रत हमारी आत्मा की शुद्धता के लिए होते हैं। 
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एक साल में दो बार हम इन व्रत के दौरान अपनी आत्मा की शुद्धि करते हैं। व्रत करने से मन,तन और आत्मा की शुद्धि मिलती है। 
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व्रत पालन करने से शारीरिक, मानसिक और धार्मिक सभी प्रकार से फायदा होता है। नवरात्र के व्रत से शरीर तो स्वस्थ रहता ही है मन भी शांत बना रहता है। 
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इसके अलावा नवरात्र‍ि पर्व में व्रत रखना शरीर को भी लाभ पहुंंचाता है।
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नवरात्र पर देवी पूजन और नौ दिन के व्रत का बहुत महत्व माना जाता है। 
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नवरात्र के नौ पावन दिन स्वयं को शुद्ध, पवित्र, साहसी, मानवीय,आध्यात्मिक और मजबूत बनाने की अवधि होती है। 
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त्योहार के दौरान देवी से आशीर्वाद के साथ उनके चरित्र के गुणों को अपने व्यक्तित्व में शामिल करना चाहिए। इससे तपकर कुंदन बनकर निकल पाए तो नवरात्र हमारी आत्मा को तृप्त कर पाने में सफल रहेंगे। 
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दरअसल नवरात्र ऋतु परिवर्तन के समय पड़ते हैं। ऐसे समय में बीमार होने की संभावना काफी अधिक होती है। 
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लोगों को कई तरह के संक्रामक रोग भी हो जाते हैं। इसलिए नवरात्र के 9 दिन तक व्रत रखने से खानपान भी संतुलित होता है। 
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व्रत से शरीर स्वस्थ बना रहता है। पाचन तंत्र को सुचारु रूप से चलता है। कब्ज, गैस, अपच आदि की समस्या से निजात मिल जाती है। 
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व्रत रखने से मां की अनुकंपा मिलती है और मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। 
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आध्यात्मिक शक्ति और ज्ञान बढ़ने के साथ विचारों में भी पवित्रता आती है।
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देवताओं ने भी रखा था नवरात्र का उपवास
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इस तरह विदित है कि नवरात्र के त्योहार और व्रत का अपना महत्व है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि मां आदि शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए स्वयं देवताओं ने भी नवरात्र के व्रत किए थे। 
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देवराज इंद्र ने पूजा भगवति को स्वर्गलोक के राजा देवराज इंद्र ने राक्षस वृत्रासुर का वध करने के लिए मां दुर्गा की पूजा अर्चना की और नवरात्रि के व्रत रखे। 
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त्रिपुरासुर दैत्य का वध करने के लिए भगवान शिव ने मां भगवति का पूजन किया। 
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जग के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने मधु नाम के असुर का वध करने के लिए नवरात्र का व्रत किया था। 
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रावण का वध करने के लिए भगवान श्रीराम ने आश्विन नवरात्र का व्रत किया था। देवी के व्रत से भगवान राम को वह अमोघ वाण प्राप्त हुआ था जिससे रावण मारा गया। 
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महाभारत में कौरवों पर विजय पाने के लिए पांडवों द्वारा देवी का व्रत करने का उल्लेख मिलता है। 
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देवी भागवत पुराण में राजा सुरथ की कथा मिलती है, जिन्हें नवरात्रि के व्रत रखने से अपना खोया हुआ राज्य और वैभव फिर से प्राप्त हुआ था।
 ((((((( जय जय श्री राधे )))))

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(((( नवरात्र में उपवास का महत्व ))))
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नवरात्र में उपवास रखने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। नवरात्र में विधि-विधान से मा

Vikas Sharma Shivaaya'

श्री भृगु ऋषि' द्वारा रचित सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र... ॐ गं गणपतये नम:। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालान #समाज

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श्री भृगु ऋषि' द्वारा रचित सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र...

ॐ गं गणपतये नम:। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुद्धि-प्रदाय, नाना-प्रकार-धन-वाहन-भूमि-प्रदाय, मनोवांछित-फल-प्रदाय रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ गुरवे नम:, ॐ श्रीकृष्णाय नम:, ॐ बलभद्राय नम:, ॐ श्रीरामाय नम:, ॐ हनुमते नम:, ॐ शिवाय नम:, ॐ जगन्नाथाय नम:, ॐ बदरीनारायणाय नम:, ॐ श्री दुर्गा-देव्यै नम:।।
ॐ सूर्याय नम:, ॐ चन्द्राय नम:, ॐ भौमाय नम:, ॐ बुधाय नम:, ॐ गुरवे नम:, ॐ भृगवे नम:, ॐ शनिश्चराय नम:, ॐ राहवे नम:, ॐ पुच्छानयकाय नम:, ॐ नव-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नम:।।
 
ॐ मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्ट्वा द्रष्टेषु येषु हृदयस्थं त्वयं तोषमेति विविक्षते न भवता भुवि येन नान्य कश्विन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि। ॐ नमो मणिभद्रे। जय-विजय-पराजिते! भद्रे! लभ्यं कुरू कुरू स्वाहा।।
 
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्-सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।। सर्व विघ्नं शांन्तं कुरू कुरू स्वाहा।।
 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक-भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय दिर्घारिष्ट-विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (यजमानस्य वा) सर्वरिष्टं हन हन, पच पच, हर हर, कच कच, राज-द्वारे जयं कुरू कुरू, व्यवहारे लाभं वृद्धिं वृद्धिं, रणे शत्रुन् विनाशय विनाशय, पूर्णा आयु: कुरू कुरू, स्त्री-प्राप्तिं कुरू कुरू, हुम् फट् स्वाहा।।
 
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:। ॐ नमो भगवते, विश्व-मूर्तये, नारायणाय, श्रीपुरुषोत्तमाय। रक्ष रक्ष, युग्मदधिकं प्रत्यक्षं परोक्षं वा अजीर्णं पच पच, विश्व-मूर्तिकान् हन हन, ऐकाह्निकं द्वाह्निकं त्राह्निकं चतुरह्निकं ज्वरं नाशय नाशय, चतुरग्नि वातान् अष्टादष-क्षयान् रांगान्, अष्टादश-कुष्ठान् हन हन, सर्व दोषं भंजय-भंजय, तत्-सर्वं नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकर्षय-आकर्षय, मम शत्रुं मारय-मारय, उच्चाटय-उच्चाटय, विद्वेषय-विद्वेषय, स्तम्भय-स्तम्भय, निवारय-निवारय, विघ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय-विद्रावय, चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, पा-विद्यां छेदय-छेदय, चौरासी-चेटकान् विस्फोटान् नाशय-नाशय, वात-शुष्क-दृष्टि-सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराभि: भव्यन्तरिक्षं अन्यान्य-व्यापि-केचिद् देश-काल-स्थान सर्वान् हन हन, विद्युन्मेघ-नदी-पर्वत, अष्ट-व्याधि, सर्व-स्थानानि, रात्रि-दिनं, चौरान् वशय-वशय, सर्वोपद्रव-नाशनाय, पर-सैन्यं विदारय-विदारय, पर-चक्रं निवारय-निवारय, दह दह, रक्षां कुरू कुरू, ॐ नमो भगवते, ॐ नमो नारायणाय, हुं फट् स्वाहा।।
 
ठ: ठ: ॐ ह्रीं ह्रीं। ॐ ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्या: श्रीं ॐ भैरवाय नम:। हरि ॐ उच्छिष्ट-देव्यै नम:। डाकिनी-सुमुखी-देव्यै, महा-पिशाचिनी ॐ ऐं ठ: ठ:। ॐ चक्रिण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, सर्व-व्याधि-हरणी-देव्यै नमो नम:। सर्व प्रकार बाधा शमनमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू फट्। श्रीं ॐ कुब्जिका देव्यै ह्रीं ठ: स्वाहा।।
 
शीघ्रमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं ठ: स्वाहा।।
 
शारिका भेदा महामाया पूर्णं आयु: कुरू। हेमवती मूलं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विध्नं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू। मंत्र तंत्र यंत्र कवच ग्रह पीड़ा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू। सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।।
 
सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दु:ख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि ॐ श्रीरामचन्द्राय नम:। हरि ॐ भूर्भुव: स्व: चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।।
 
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीवासुदेवाय नम:, बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीविष्णु भगवान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, सर्व विघ्नं विनाशय, मम कामना पूर्णं कुरू कुरू स्वाहा।।
 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ श्रीदुर्गा देवी रूद्राणी सहिता, रूद्र देवता काल भैरव सह, बटुक भैरवाय, हनुमान सह मकर ध्वजाय, आपदुद्धारणाय मम सर्व दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल विघ्न विनाशाय मम शुभ मांगलिक कार्य सिद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।।
 
एष विद्या माहात्म्यं च, पुरा मया प्रोक्तं ध्रुवं। शम क्रतो तु हन्त्येतान्, सर्वाश्च बलि दानवा:।। य पुमान् पठते नित्यं, एतत् स्तोत्रं नित्यात्मना। तस्य सर्वान् हि सन्ति, यत्र दृष्टि गतं विषं।। अन्य दृष्टि विषं चैव, न देयं संक्रमे ध्रुवम्। संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता च विसंशय:।। सौभाग्यं जायते तस्य, परमं नात्र संशय:। द्रुतं सद्यं जयस्तस्य, विघ्नस्तस्य न जायते।। किमत्र बहुनोक्तेन, सर्व सौभाग्य सम्पदा। लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा वचनं भवेत्।। ग्रहीतो यदि वा यत्नं, बालानां विविधैरपि। शीतं समुष्णतां याति, उष्ण: शीत मयो भवेत्।। नान्यथा श्रुतये विद्या, पठति कथितं मया। भोज पत्रे लिखेद् यंत्रं, गोरोचन मयेन च।। इमां विद्यां शिरो बध्वा, सर्व रक्षा करोतु मे। पुरुषस्याथवा नारी, हस्ते बध्वा विचक्षण:।। विद्रवन्ति प्रणश्यन्ति, धर्मस्तिष्ठति नित्यश:। सर्वशत्रुरधो यान्ति, शीघ्रं ते च पलायनम्।।

।। श्रीभृगु संहिता सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र सम्पूर्ण ।।

        🙏क्षमा प्रार्थना मन्त्र 🙏
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।।

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 478 से 489 नाम
478 सत् सत्यस्वरूप परब्रह्म
479 असत् प्रपंचरूप अपर ब्रह्म
480 क्षरम् सर्व भूत
481 अक्षरम् कूटस्थ
482 अविज्ञाता वासना को न जानने वाला
483 सहस्रांशुः जिनके तेज से प्रज्वल्लित होकर सूर्य तपता है
484 विधाता समस्त भूतों और पर्वतों को धारण करने वाले
485 कृतलक्षणः नित्यसिद्ध चैतन्यस्वरूप
486 गभस्तिनेमिः जो गभस्तियों (किरणों) के बीच में सूर्यरूप से स्थित हैं
487 सत्त्वस्थः जो समस्त प्राणियों में स्थित हैं
488 सिंहः जो सिंह के समान पराक्रमी हैं
489 भूतमहेश्वरः भूतों के महान इश्वर हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' श्री भृगु ऋषि' द्वारा रचित सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र...

ॐ गं गणपतये नम:। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालान

पं.पीयूषसंजय शास्त्री

इस बार हाथी पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा । “आ रही हैं मैया करने भक्तों का उद्धार, चारों ओर धूम मचेगी, होगी जय-जयकार!” पितृ पक्ष के बाद शा

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क्यों खास है हाथी का सवारी ‌।
ऐसी मान्यता है कि जब नवरात्रि में माता रानी, हाथी पर सवार होकर आती हैं, तो बारिश होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। इससे चारों ओर हरियाली छाने लगती है और प्रकृति का सौंदर्य अपने चरम पर होता है। तब फसलें भी बहुत अच्छी होती हैं। मैय्या रानी जब हाथी पर सवार होकर आती हैं, तो अन्न-धन के भंडार भरती हैं। माता का हाथी या नौका पर सवार होकर आना, भक्तों के लिए बहुत मंगलकारी माना जाता है। 
इस बार हाथी पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा ।

“आ रही हैं मैया करने भक्तों का उद्धार, चारों ओर धूम मचेगी, होगी जय-जयकार!” पितृ पक्ष के बाद शा

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इस वर्ष 7 नवंबर 2022 को वैकुंठ चतुर्दशी पर्व पड़ रहा है। भगवान शिव जी ने श्री विष्णु के तप से प्रसन्न होकर इस दिन पहले विष्णु और फिर उनकी प #Quotes

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