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Vivek
रंगों ने गीत गाकर ----तस्वीर तुम्हारी बना दी ----हवा ने घूँघट उड़ाकर ----सूरत तुम्हारी दिखा दी ----रौशनी से जब मैंने पूछा क्या है तुम्हारा नाम ----परछाईं तुम्हारी नाम तुम्हारा ---मुस्कराकर बता दी ----!!! ©Vivek #रंगों ने तुम्हारे गीत गाकर
Dinesh Kashyap
इसमें तेरा कसूर है जरा जरा ! फूल शाख से टूटकर आ गिरा! इसमें तेरा कसूर है जरा जरा! यह तेरी मेरी पहली मुलाकात है ऐसा लगा की रब से मिली एक सौगात है! तेरी नजरों से बरसा है सावन! प्यार की खुशबू से महक उठा यह मन आंगन !तुझे बाहों में भरलूं यह दिल करे जरा जरा! इसमें तेरा कसूर है जरा जरा! तेरी आंखों में शबनमी शाम हो गई है! यह जीस्त तेरे नाम हो गई है! इसमें तेरा मेरा कोई कसूर नहीं है! यह तो वक्त की साजिश है जरा जरा! इसमें तेरा कसूर है जरा जरा! ©Dinesh Kashyap # जरा जरा
vibhu Chauhan
हम मिले थे, वो ठिकाना शायद तुम्हें याद हो वो गिले-शिकवे, वो गुफ़्तगू शायद तुम्हें याद हो मुझे महसूस होती हो तुम आज भी ज़रा ज़रा ज़रा-ज़रा मेरा एहसास भी शायद तुम्हें याद हो ©vibhu Chauhan जरा जरा #AloneInCity
Manoj Kumar Chauhan
जरा सोचो . ©Manoj Kumar Chauhan जरा सोचो#जरा सोचो#
writer abhay
तेरी महफिल में ऐसे बैठा हूँ मैं, जैसे कोई कांच का टुकड़ा हूँ मैं. प्यार से समेटना तुम मुझको, देखो मोहब्बत से बिखरा हूँ मैं. तुम्हारे दिल से सरका हूँ मैं ऐसे, जैसे कोई फिसलता दुपट्टा हूँ मैं. तुम जो मोहब्बत से देखते मुझे, लगता है कि तेरा आईना हूँ मैं. ख़ूबसूरत अदांज मे पढ़ते हो, महबूब की ख़त का पन्ना हूँ मैं. इसे महफिल में जब भी सुनाऊंगा गाकर सुनाऊंगा
ranjan
वो पडोसन भी आतंकवादी से कम नही होती,, जो नई साड़ी ख़रीद कर सीधे आप की बीबी को दिखाने आती है,,,, जरा
Rupam Rajbhar
खुशबू कुछ देर ही रह गई थी इस तन्हाई में जरा ठोकर से खुशबू बिखर गई इन रुसवाई में #जरा
Santosh Verma
क्यूं गुमशुम खड़े हो अंधेरे में, जरा चेहरा अपना रोशनी में लाओ। क्या तुम अभी भी बंधे हो बेड़ियों से!, जरा चिराग दिल में फिर से तो भड़काओ।। बैठे बिठाए यूं कुछ नहीं होने वाला, कोशिश के आगे ना कोई टिकने वाला। है अगर हिम्मते जिगर में, जरा अपना हुनर दुनिया को तो दिखलाओ.।। फड़फड़ा के मछली जब बाहर आयेगी, आईना ए समंदर तो दिखलाएगी। भड़क उठेगी ज्वाला फिर से, जरा तुम लौ तो जलाओ।। हम क्या ,हमारा क्या?, इसमें खोई दुनिया सारी है,, मेरा ही हो हर कुछ, ये नई उलझन इक बीमारी है। उठो _उठो हे!मेरे शेर उठो, ना भागो तुम कौम के पीछे,, जगेगी इंसानियत इक दिन, जरा तुम प्यार का बिगुल तो बजाओ।।।। written by (संतोष वर्मा) आजमगढ़ वाले खुद की ज़ुबानी.... ©Santosh Verma जरा......
Akshay Bhosale
...जरा माणसात यारे ..जरा माणसात या... .जाती-धर्मात जाती यतेची दंगली घडवणाऱ्या,मनुवादी विचारांच्या नासलेल्या बुध्दीच्या गाढवांनो, .छञपती शिवरायांच्या फुले-शाहु आंबेडकरांच्या अशा अनेक महा-मानवांच्या विचारांची आणि पुतळ्यांची विठंबना करनाऱ्या भडव्यांनो, .जरा माणसात यारे जरा माणसात या........... पांढरी- शुभरी कपडे नेसुन,हात पाय जोडुन,आश्वसने झाडुन,मोठा मोठाली भाषने ठोकुन जनतेच्या मतांवर निवडणूक लढुन त्यांचीच पिळवुणुक फसवणुक करणाऱ्या हारमखोर मंञ्या संञ्या नेत्यांनो, .जरा माणसात यारे जरा माणसात या....... खाकी वर्दी वाल्या रं,काळ्या कोट वाल्या, सरकारी हुद्या वाल्या रं,खाजगी हुद्या वाल्या टेबला खालचा भाड खाणाऱ्या, भ्रष्टाचार चाटनाऱ्या लाचार कुञ्यांनो .जरा माणसात यारे जरा माणसात या......... आया-बहीनींची छेड छाड काढणाऱ्या रोड-रोमीयो माकडांनो, अबरू-इज्जत लुटनाऱ्या वासनांच्या भुकेल्या गिदाडांनो जाच-हाट करणाऱ्या,अत्याचार करणाऱ्या, गर्भ पात करणाऱ्या ना मर्द स्वार्थी लाडग्यांनो, .जरा माणसात यारे जरा माणसात या....... बूवा-बाजी करणाऱ्या,लिंबु-मीर्ची मारणाऱ्या, करनी-धरनी करणाऱ्या देव दुतांच्या नावावर लुटा-लुट करणाऱ्या, स्वार्था पोटी बळी बकरी घेणाऱ्या राक्षसी गणांच्या,अंधश्रध्देच्या विचारांनो जरा माणसात यारे जरा माणसात या......... विचार करा जरा,आचार करा भारत मातेचा विकास करा, मनाने,तनाने,मानसीक विचाराने फक्त आणि फक्त तुम्ही भारतीय व्हा, जरा माणसात यारे जरा माणसात या...... स्वाभिमानी मनाचा,ताट मानेचा पुरोगामी विचाराचा सच्चा भारतीय व्हा रे तुम्ही भारतीय व्हा........... आणि मानुस बणुनी माणसात या, जरा माणसात यारे जरा माणसात या....... कवी/अक्षय भोसले दि.०५/०२/२०२१ (बारामती) ©Akshay Bhosale जरा माणसात यारे, जरा माणसात या..... #lockdown2021