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Pushpa Sharma "कृtt¥"
दर्पण देखूं रूप संवारु और सोलह श्रंगार करूँ, फेर नज़रिया बैठा बैरी कैसे अंखियाँ चार करूँ। #बैरी #nojoto
prachi dixit
रौशन करते है वो अब अपनी महफिल हमारी बुराइयाँ कर के। जो कभी हमारे नगमे गुनगुनाया करते थे।। # बैरी पिया
दीपेश
बैरी बदरिया देखो बैरी बदरिया सूखे सूखे सावन बीता शर्दी डूबी झोपड़िया बैरी बदरिया देखो बैरी बदरिया सींच सींच धान बोये ,काटे, बहा ले जाये बैरी बदरिया बैरी बदरिया देखो बैरी बदरिया सूखे में सूखी जाए सुख में ये सुख ले जाये प्यासा न पानी पाए नदिया सागर हो जाये कोई कही का कैसे ऐसे भला रह पाए बदरा क्यों बरसे बेमन बदला काहेका पाए बैरी बदरिया देखो बैरी बदरिया बैरी बदरिया
Mahen@Bst
कलम तो आज भी थिरकने लगती है... मेरी उंगलियों को छूकर.. चलने की फिर से जिद करती है.. कागजों के टुकडो़ पर ... कहती हो कि आज फिर.... कुछ अल्फाज़ बयॉ करने दो.. आज शब्दों से स्याही मिलने दो... सोचने लगता हूँ लिखू तो क्या... कल के बीते हुए दिन या दिन आने वाले.... सब अधूरे से हैं फिकी चाय जैसे.. सब्र की मशालें जलाकर.... कागजों पर शब्दों और स्याही को मिलाने की... कोशिशें तमाम होती हैं.... पर अंत में कलम कागजों से.. बैर कर लेती है.... बैरी कलम
दूध नाथ वरुण
बैरी पिया मोहे निंदिया न आए, याद तोहार मोहे हरपल सताए। मोसे जो कहिके गयो हम आईब हो,सदियां गयो पर तुम नही आए।। ©दूध नाथ वरुण #बैरी पिया
khushboo subraj tiwari
इस शाम ने मेरी मुस्कान छिनी है, भौरे की मैं भी प्यासी हूँ जान कर, बगिया में फैला कर अंधेरा, भौरे को वापस घर भेज देनी है. अकड़ता है खुद पर, जैसे ये खोखला समाज है. करता है दो चाहने वाले को जुदा, ऐसी खोखली रीत पर उसको नाज़ है. हर शाम मेरी मुस्कान छीनता है...... मुरझाया हूँ तो क्या हुआ, कली हूँ, फूल मैं भी बनुँगा, तू क्यों इतना घमंड करता है . आएगा जो फिर वो भौरा मुझ पर मंडराने, देखता हूँ तू कैसे फिर रोकता है. हर शाम मेरी मुस्कान छिनता है.......... बहुत खूब !! तूने उसको भी रोक दिया, हमको मिल जाने से. गुलशन में फिर एक गुल खिलेगा, देखता हूँ तो कैसे रोकेगा नए भौरे को आने से. ©khushboo €{khushi}€ tiwari #Morning बैरी सांझ