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Writer1
आओ सब को 90's की बात सुनाऊं जब घर में, शर्ट वाला ब्लैक एंड वाइट टीवी हुआ करता था, ऊंचाई पर एंटीना होता था, ग्रीष्म काल का महीना था, उस वक्त पारिवारिक वातावरण की थी हवाएं, रंगोली और चित्रकार सबका मनोरंजन कराएं, हर रविवार और शुक्रवार को सुबो-शाम आते थे, रेडियो सबके पसंदीदा गाना सुना मन था बहलाते थे। अपराजिता जैसे धारावाहिक हमारे फर्ज से अवगत कराते थे, मालगुडी डेस, महाभारत हमें इतिहास से रुबरु कराते थे, रामायण जैसे धारावाहिक हमें अपने संस्कारों से मिलाते थे। पिताजी मेरे, का मनपसंद था व्योमकेश बख्शी,हमारी उत्सुकता बढ़ाते थे, अगले पल क्या होगा मैं और पिताजी अनुमान लगाकर शर्त लगाते थे। इसी बहाने से पिताजी हमें जिंदगी का असली सबक सिखाते थे। मेरे छोटे भाई का अति प्रिय शक्तिमान, काल्पनिक था यह सारा, परंतु आखिर में पसंदीदा पात्र, सभी दार्शनिक को एक अच्छी बात बताते थे। दूरदर्शन और मेरा बचपन मानो एक जैसा था, दूरदर्शन पर बुनियाद धारावाहिक मेरा अति प्रिय था, बुनियाद की कहानी मुझे घर जैसी लगती थी। उस वक्त लोगों का दूरदर्शन पर सबका, विश्वास था और यह सब के लिए खास था। "ध्यान रहे कि यह कोई प्रतियोगिता नहीं है" दिए गए शब्द (एंटीना, बूस्टर, रंगोली, चित्रहार, बुधवार, रविवार, शुक्रवार, मालगुडी डेज, व्योमकेश बक