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Pradyumn awsthi
जीवन का सबसे मधुर,आनंददायक,यादगार और सबसे ज्यादा खुशी देने वाला समय - बचपन,बचपन की यादें और नानी दादी की वो मजेदार कहानियां जिनको सुनकर मन आनंद की मस्ती में झूम उठता था ©"pradyuman awasthi" #मधुर बाल्यावस्था
Parasram Arora
तुम्हारी व्यवस्थित व्याकर्णन के लिये ये अराजकऔर खूखार शब्द तुम्हारे लिये चुनौती हैँ बस जीने या होने की लड़ाई हो या फिर सच के साथ सच की ये अपने हिस्से कों जी लेने की ज़िद है बस निचोडा जाना तमाम सम्भावनाओं का ये जिंदगी कों जीने की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है बस पुराने कों नया और नए कों पुराना करते रहना. ये परिधियों का. अतिक्रमण.करना है बस ©Parasram Arora प्रक्रिया..
Arora PR
ज़ब मैंने अपने भूखे पेट के लिए लोगो से रोटी मांगी तो मेरी बात किसी ने भी नहीं. सुनी फिर मैंने प्रेम ईश्वरऔर मानवता का वास्ता देकर रोटी मांगी तो भी मेरी याचना क़ी उपेक्षा क़ी गई. अब अगर मै अपने भूखे पेट क़ी तृप्ती के लिए जबरन रोटी छीनने लगु तो मेरे इस कृत्य को क्या न्यायिक प्रक्रिया के खिलाफ समझा जाएगा? ©Arora PR न्यायिक प्रक्रिया
siddharth vaidya
ना धर्म की सीमा हो, ना जाति का हो बंधन, जब वोट करे कोई तो देखे केवल मन, राष्ट्र प्रेम जगाकर तुम मेरी जीत अमर कर दो।। विकास की गंगा बहाकर तुम, मेरी प्रीत अमर कर दो। #विकास siddharth vaidy #विकास
Datta Dhondiram Daware
प्रि-येचा कळाला नाही मला डाव..! ति-च्या अदाने केला ह्रदयी घाव..! वि-सरू शकत नाही,मी प्रेमफुला..! का-तिल नजरेन केले घायाळ मला..! स-मस्त काळजात तुझीच छबी..! चा-हूल लागे मनी गोडगुलाबी..! बु-डत्याला दिलास तुच आधार..! क-रू नकोस आता मला निराधार..! स्वा-भिमान माझ्या ह्रदयात पेटला..! र-क्ताने माझ्या तुझ्या कपाळी टिळा नटला.! विकास
संजय श्रीवास्तव
विकास विकास की इबारत चमचमाती सड़के क्यूँ रो रही हैं थका जिस्म औ बोझिल सांसे लिये जिंदगी सो रही है कौन सा सपना कौन सी मंजिल कुछ भी तो नही वक्त के ठेले में लगा के पहिया खुद को ढो रही है क्या करोगे सुनकर कहानी उसकी रोक सकते हो बूढ़ी होती जा रही जवानी उसकी अरे छोड़ो मियाँ चलो चलें वहां जहाँ समाजवाद की सभा हो रही है। समाज के अंतिम व्यक्ति की बात करके कितनो की आँखे खुद को भिगो रही है। संजय श्रीवास्तव विकास
Parasram Arora
मनुष्य क़े ह्रदय में मनुशय की आत्मा में कौनसी ज्योति जगी. हैँ जिसको हम विकास कहें.? मनुष्य क़े ह्रदय में कौनसा आनंद. सफुरित हुआ हैँ जिसको हम विकास कहे.? मनुष्य क़े भीतर क्या फलित हुआ हैँ कौनसेफूल उगे हैँजिसको हम विकास कहे? (आदमी इस तथाकथित विकास क़े नीचे समाप्त होता जा रहा हैँ ) ©Parasram Arora विकास.......