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Vikas Sharma Shivaaya'
कुबेर लक्ष्मी मंत्र : ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥ पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भृगु ऋषि का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या ख्याति से हुआ जिससे धाता,विधाता दो पुत्र व श्री नाम की कन्या का जन्म हुआ। भागवत पुराण के अनुसार भृगु ऋषि के कवि नाम के पुत्र भी हुए जो कालान्तर में शुक्राचार्य नाम से प्रसिद्ध हुए। शुक्र -जिसका संस्कृत भाषा में एक अर्थ है शुद्ध, स्वच्छ, भृगु ऋषि के पुत्र एवं दैत्य-गुरु शुक्राचार्य का प्रतीक शुक्र ग्रह है। भारतीय ज्योतिष में इसकी नवग्रह में भी गिनती होती है। यह सप्तवारों में शुक्रवार का स्वामी होता है। यह श्वेत वर्णी, मध्यवयः, सहमति वाली मुखाकृति के होते हैं। इनको ऊंट, घोड़े या मगरमच्छ पर सवार दिखाया जाता है। ये हाथों में दण्ड, कमल, माला और कभी-कभार धनुष-बाण भी लिये रहते हैं। उषानस एक वैदिक ऋषि हुए हैं जिनका पारिवारिक उपनाम था काव्य (कवि के वंशज, अथर्व वेद अनुसार जिन्हें बाद में उषानस शुक्र कहा गया। शुक्र एकाक्षरी बीज मंत्र- 'ॐ शुं शुक्राय नम:। ' शुक्र तांत्रिक मंत्र- 'ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:। ' सो शिंगार वा चित्र में हतो , तैसोई वस्त्र आभूषन अपने श्रीहस्त में धारण किये ! गाय ग्वाल सखा सब साथ ले के आप पधारे !! इस दोहे में रसखान जी कहते है कि चित्र में जैसा श्रृंगार था ठीक उसी प्रकार का श्रृंगार करके श्री कृष्ण पीताम्बर रूप में अपने ग्वाल बाल गोपो के साथ वे रसखान से मिलने पहुँच जाते है जहाँ रसखान बैठकर कृष्ण के प्रेम में आंसू बहा रहे थे ! 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' कुबेर लक्ष्मी मंत्र : ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥ पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के मानस प
PARBHASH KMUAR
जब देवताओं से युद्ध करते हुए असुरों को मृत व पराजित होना पड़ा, तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी शक्तियों से उन सभी को पुनः जीवित कर दिया था। मगर जीवित होने के पश्चात तो जैसे, असुरों के अत्याचार की सारी सीमाएं अतिक्रमित होने लगी। राजा बलि ने भी शुक्राचार्य की कृपा से अपना जीवन लाभ किया था, इसलिए वह भी उनकी सेवा में लग गए। इस दौरान, राजा बलि की सेवा से प्रसन्न होकर शुक्राचार्य ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया। इधर, पौराणिक मान्यता के अनुसार, असुरों के हर दूसरे दिन देवताओं पर किए गए अत्याचारों से माता अदिति अत्यंत दुखी हो गईं थीं। उन्होंने अपनी यह व्यथा अपने स्वामी कश्यप ऋषि को सुनाते हुए कहा, “हे स्वामी! मेरे तो सभी पुत्र मारे-मारे फिरते हैं और उन्हें इस अवस्था में देखकर, मेरा हृदय क्रंदन करने लगता है।” अपनी पत्नी की यह बात सुनकर, कश्यप ऋषि ने सोचा, इस व्यथा के समाधान के लिए तो अपना सर्वस्व प्रभु नारायण के चरणों में समर्पित कर, उनकी आराधना करना आवश्यक है। उन्होंने अदिति को भी ऐसा ही करने के लिए कहा। माता अदिति ने तब नारायण का कठोर तप किया और प्रभु भी माता के तप से प्रसन्न होकर उनके पुत्र के रूप में आविर्भूत हुए। अपने गर्भ से ऐसे चतुर्भुज प्रभु के अवतार से माता अदिति तो जैसे धन्य ही हो गईं। वहीं प्रभु ने अवतरित होते ही वामन अवतार धारण कर लिया था। इसके बाद, महर्षि कश्यप ने अन्य ऋषियों के साथ मिलकर उस वामन ब्रह्मचारी का उपनयन संस्कार सम्पन्न किया। इसके बाद, वामन ने अपने पिता से शुक्राचार्य द्वारा आयोजित राजा बलि के अश्वमेध यज्ञ में जाने की आज्ञा ली। यह राजा बलि का अंतिम अश्वमेध यज्ञ था। वामन जैसे ही उस यज्ञ में पहुंचे राजा बलि ने उन्हें देखते ही उनका आदर सत्कार किया और उनसे दान मांगने का आग्रह किया। इस पर वामन ने राजा बलि से कहा, “हे राजन! आपके कुल की शूरता व उदारता जगजाहिर है। मुझे तो बस अपने पदों के समान तीन पद जमीन चाहिए।” राजा बलि उन्हें यह दान देने ही वाले थे, तभी शुक्राचार्य ने उन्हें चेताया, “यह अवश्य ही विष्णु हैं। इनके छलावे में आ गए, तो तुम्हारा सर्वस्व चला जाएगा।” परंतु राजा बलि अपनी बात पर स्थिर रहे। उन्होंने वामन को तीन पद जमीन देने का निर्णय कर लिया। राजा बलि की यह बात सुनते ही वमानवतार श्री विष्णु ने अपना शरीर बड़ा कर लिया और प्रथम दो पदों में ही उन्होंने स्वर्गलोक और धरती को अपने नाम कर लिया। वामन के चरण पड़ने से ब्रह्मांड का आवरण थोड़ा उखर सा गया था एवं इसी स्थान से, ब्रह्मद्रव बह आया था जो बाद में जाकर मां गंगा बनीं। अब वामन ने बलि से पूछा, “राजन! तीसरा पद रखने का स्थान कहां है?” कोई दूसरा ©parbhashrajbcnegmailcomm जब देवताओं से युद्ध करते हुए असुरों को मृत व पराजित होना पड़ा, तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी शक्तियों से उन सभी को पुनः जीवित कर दिया था।
Rahul Shastri worldcitizens2121
Key to Happiness "ज्योतिष" Sep 26,2019 "ॐ" गुरु शुक्राचार्य "भोलेनाथ" "के साथ" "जीवनभर/मृत्युके बाद" भी "अमर" "प्रेम Love Dream Imagination Creativity Authority Philenthophy Prosperity Royaless Soul love Physical Love Progess Infinity " सम्बन्ध में बैठें हैं। #Happiness "Picnic" "शुक्राचार्य" + "भोलेनाथ"
HARSH369
इस प्रथ्वी पर जीवन सभी ने काटना है जो आया है जितने लोग अपके इर्द गिर्द घूमते है सारे सच्चे नही होते देत्य भी हो सकते है देव भी हो सकते है अपके दोस्त भी आपके शत्रू भी हो सकते है इसलिये अपना भाग्य खुद लिखो,किसी से सलाह न लो सलाह लेनी है तो उन धर्म गुरुओ के समीप जाओ जो लोगो को सही मार्ग दिखाते है जो प्रेरणा देते है..! वहि करो जो आपका दिल कहता है , अच्छा कुछ करोगे तो पुन्य मिलेगा,बुरा करोगे तो पाप...!! ©SHI.V.A 369 #दैत्य और दैवो की लड़ाई
Shubham Tripathi
नवसंचित मन आशांकित है हर दैत्य दमन से वंचित है हर कालनेमि इस भारत का अब राजनीति से अभिसिञ्चित है माताओं के शेर यहां खुद के लहू से रंजित है हर पापी दुष्टाचारी तो खादी वस्त्रों से सज्जित है अब राम नाम का उच्चारन ज्यादा हिंसा में होता है क्या हुआ यहां के लोगों को पत्थर भी इन पर रोता है हर बहन बेटियां भारत की अत्याचारों से आतांकित है हर शासन ही दुष्शासन के चीर हरण से खंडित है रक्षा के सारे स्रोत यहां के भक्षक को ही आवंटित है हर योग्य और निर्दोष यहां प्रति छड़ प्रति पल दंडित है दोषों की सारी पोथी पढ़ अत्याचारी ही पंडित है नवसंचित मन आशंकित है हर दैत्य दमन से वंचित है हर दैत्य दमन से वंचित है
Poetess_sonikatanwar
आज का एक यही सत्य बन गया मानव दैत्य रोया भूलोक,सिसका आसमान देख इनका आधिपत्य। ©Poetess Sonika #दैत्य #poetess_sonika_tanwar_svra #poemkiduniya #nojotohindi #nojotoenglish #nojotonews #nojotoquote