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दो पल का शायर
कितने खुदगर्ज है हम अपनी खुशियों की खातिर, कुछ भी कर लेते है बिना कुछ सोचे समझे, फिर भी जाने क्यूं क्षण भर की खुशी पाकर लोग उसे चरम सूख का नाम क्यूं देते हैं...? चरम सुख
Health care
sex की चरम सीमा पर मर्द और औरत की दिल की धड़कन heart beating 140 प्रति मिनट हो जाती है ऐसी पोस्ट देखने और पढ़ने के लिए फॉलो कीजिये लाइक कीजिये और वीडियो को शेयर कीजिये 🥰🥰 ©Health care #snowmountain सेक्स चरम सुख 👩❤️👨
Rajesh Gond
उसके साथ सोने की कभी ख्वाइश ही नही रखी बस उसके होने की अनुभूति ही हमे चरम सुख दे देता था..! - Rajesh Gond उसके साथ सोने की कभी ख्वाइश ही नही रखी बस उसके होने की अनुभूति ही हमे चरम सुख दे देता था..💓 #shayari #2liners #hindi
KISHAN KORRAM
आने वाला पल आने वाला पल सौगात नई लायी उम्मीदों के आँगन में फूल नये मुस्काये मौसम की नव बहार भी गीत नये गाये इठलाती हुए पवनें भी झूम-झूम बलखायें प्रकृति आनन्दित होकर चरम सुख पहुँचाये सुख की ये बेला भी सपनों की शाख सजाये आने वाला पल सौगात नई लाये ✍️©Kishan Korram 📝30 Dec. 2019 #आने वाला पल सौगात नई लायी उम्मीदों के आँगन में फूल नये मुस्काये मौसम की नव बहार भी गीत नये गाये इठलाती हुए पवनें भी झूम-झूम बलखायें
Divyanshu
"अब तो बस मैं जा रहा हूँ"a diary of kota student!!(full poem im caption) वो उठतीं उँगलियाँ, कुटिल मुस्कान, चीरते शब्द और व्यंगात्मक कटाक्ष,
अशोक द्विवेदी "दिव्य"
कैप्शन में पढिये । ( उलझे मसले ) #सेक्स_से_संभोग #उलझे_मसले जब भी विपरीत लीगी एक दूसरे को देखते है, तो सेक्स का ख्याल अक्सर आता है । मग़र आज के समय मे सेक्स को हिंसक, बनाने
Nalin jain
कभी कभी बिलख जाता हू, मनमानी वाली बात मनाने के खातिर, शायद आसानी से समझ जाऊँ कोई एक दफा सीने से लगा दे! किसी को समझाने का मतलब, गिड़गिड़ाना नहीं होता मेरे दोस्त,, ये शायद तू समझ सके या फिर मुझे समझा दे!! कुछ चुभन सी है मुझे बीते हुए कल को लेकर, खुद को बदल भी रहा हू पर तू कोई तो वजह दे! क्या हक नहीं है मुझे, तेरी मौजूदगी मे गुस्ताखीया करने की,, ख़ुदा मुझे रोने वाला बना ही मत, या फिर कोई अच्छी सी सजा दे!! बातों के तीर, चिर देते है इंसान को अंदर से, हर वक्त मे जो साथ रहे, भला कोई ऐसी इन्तेहा दे! सब को मना लूँगा, पर एक आखिरी आस है मेरी,, मुझे सुकून की सैर वाला, एक हसीन ख्वाब दिखा दे!! इन्तेहा - चरम सीमा!
M.S Rind"
बापू फिर से आओ न भ्रष्टाचार चरम पे फिर से सत्य अहिंसा का पाठ पढ़ाओ न ©M.S Rind" भ्रष्टाचार चरम पे #gandhijayanti
Yashpal singh gusain badal'
क्या कहीं कोई ऐसी अवस्था है जो हमेशा प्रतिष्ठित और आनंदित करने वाली हो ? जिसमें समय और परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तन न हो ।हम सभी एक वक़्त तक पद,मान,प्रतिष्ठा,यौवन,क्षमता के शीर्ष पर होते हैं लेकिन वक़्त के साथ परिवर्तन होता जाता है और इसमें परिवर्तन होता है और एक वक़्त ऐसा आता है जब हमसे सब कुछ छिनता चला जाता है औऱ अंत तक हमें समझ नहीं आता है आखिर हमारी इस जिंदगी की दौड़ का उद्देश्य क्या था ? जिस अथाह संतुष्टि के लिए हम भाग रहे थे जिस संतुष्टि के लिए हमने दिन रात एक कर दिया था वह तो ज्यों की त्यों ही है ! जिस जिस रास्ते सेहमने परम संतुष्टि को ढूंढा मगर वह वहां कुछ मात्रा में उपलब्ध हुई मगर उससे प्यास बुझी नहीं बल्कि बढ़ गयी । इसलिये सवाल आता है ऐसा क्यों होता है ? सभी लोग निर्विवाद रूप से और अलगअलग रास्तों,विधियों, ज्ञात औरअज्ञात स्रोतों के जरिये,परंपरा,और प्रथाओं के जरिये, आनंद की खोज करते हैं और परमानंद तक पंहुचने का प्रयास करते है ।लेकिन क्या वे अपनी जिंदगी से संतुष्टि प्राप्त कर पाते हैं या फिर अंततः प्यासे ही रह जाते हैं ?अब यदि इतना सब कुछ करने के बाद प्यास और असंतुष्टि ही प्राप्त होती है तो यकीनन ये रास्ता वह नहीं है और ये रास्ता अवश्य भटकाव वाला है । अब प्रश्न ये है कि परम आनंद कैसे प्राप्त हो ? जो आनंद समय के साथ क्षय न हो बल्कि बढ़े और उसमें और भी निखार आये ।जहां तक मैं समझा हूँ कि चूंकि हम एक भौतिक दुनियाँ में रहते हैं और भौतिक दुनियाँ के वस्तुओं में ही आनंद ढूंढते हैं । अब बात ये है कि हर भौतिक वस्तु की एक उम्र होती है और उसके आकर्षक की भी एक उम्र होती है ।इसलिए एक समयाविधि के बाद हम उस वस्तु से उकता जाते हैं और उससे वेहतर की तलाश करने लगते हैं और अनंत प्यास की अगले पड़ाव की यात्रा पर निकल जाते हैं ।अब प्रश्न ये है कि परम आनंद क्या है ? यदि हमने निरंतर आनंद को पाया है तो फिर हम बचपन के या पुराने दिनों को क्यों याद करते हैं ?और आनंदित महसूस करते हैं जबकि आज की अपेक्षा उस वक़्त हमारे पास पैसा,पद,प्रतिष्ठा नहीं थी मगर हम आज भी मानते हैं वे दिन बहुत सुंदर थे । फिर इतने दिनों की यात्रा में कुछ भी पाया हो मगर आनंद तो उतना नहीं पाया जितना उन बेफिक्री और गरीबी के दिनों में थी ।तो इस बात से साबित हो गया कि परम आनंद भौतिक वस्तुओं में नहीं है । तो फिर परम आनंद कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? तो क्या परम आनंद भौतिक वस्तुओं के त्याग से मिल सकता है? क्या सभी इच्छाओं और आकर्षक को छोड़ देने से परम आनंद को प्राप्त किया जा सकता है . जी हां मेरा तो यही मानना है कि यदि आप भोतिक वस्तुओं से अनाशक्त हो जाये तो आप विकारमुक्त होकर प्राकृतिक हो जाएंगे जिसमें आपका कुछ नहीं होगा और जो भी होगा वह दूसरों का होगा । आप एक नदी ,एक पर्वत,एक जंगल बन जाओगे और एक देवता बन जाओगे .(देवता का मतलब देने वाला ) मेरे विचार -यशपाल singh गुसाईं ©Yashpal singh gusain badal' चरम आनंद क्या है ? #alone