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Adv Sushil Kumar Choudhary

सर्वप्रिय मोदी जी

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HappyBdayPMModi,मित्रों  सर्वे प्रिय मोदी जी 
अंधेरों से उजीयारों की ओर ले जाओगे
यह विश्वास है हमें 
इस देश को शिखर तक ले जाओगे 
यह आस है हमें 
हिमालय सा व्यक्तित्व हो आप 
नाज है हमें 
पापियों का नाश करोगे और दुश्मनों का सर्वनाश 
यह विश्वास है हमें 
भारत को फिर से अखंड भारत बनाओगे यह आस है हमें 
नेतृत्व की मिसाल हो आप 
नाज है हमें 
भारत को फिर से विश्व गुरु बनाओगे 
यह विश्वास है हमें 
इस संसार पर छा जाएगा यह देश हमारा 
यह आस है हमें 
इस देश की अमूल्य धरोहर हो 
आप नाज है हमें
Adv Sushil सर्वप्रिय मोदी जी

Shravan Goud

सभी के लिए समान भावना ही सर्वप्रिय बनाती है।

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क्रोधी स्वभाव वाले व्यक्ति से लोग दूर

भागते है और खुद को पछताने के सिवा

कुछ नहीं मिलता। वही मिलनसार स्वभाव

वाले व्यक्ति को सारे पसंद करते हैं। सभी के लिए समान भावना ही सर्वप्रिय बनाती है।

Bajrangautam

मक़बूलियत नहीं कमाई हमने.... मक़बूलियत = लोकप्रियता, सर्वप्रियता "खैर मक़बूलियत नहीं कमाई हमने, ख़िलाफ़त से जो भरे हुए थे। मंजूर तो हम उस खुदा #शायरी #nojotophoto #दफन #मुर्दों #bajrangbhagat #bajrangautam #aapkejazbaat

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 मक़बूलियत नहीं कमाई हमने....

मक़बूलियत = लोकप्रियता, सर्वप्रियता

"खैर मक़बूलियत नहीं कमाई हमने,
ख़िलाफ़त से जो भरे हुए थे।
मंजूर तो हम उस खुदा

Shruti Gupta

हे विरह के सखा, मेरे मन की व्यथा, मेरे नयन के अश्रु हैं भेट तुम्हारे। ऐ चित्त मेरे, तुम्हें सर्वज्ञ माना। हे प्रेम, तुम्हें अपना सर्वस्व मान #yqbaba #हिंदी #yqdidi #yqrestzone #rzhindi #rzकाव्योगिता #rzकाव्योगिता3

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हे विरह के सखा, मेरे मन की व्यथा,
मेरे नयन के अश्रु भी हैं भेट तुम्हारे।
ऐ चित्त मेरे, तुम्हें सर्वज्ञ माना।
हे प्रेम, तुम्हें अपना सर्वस्व माना!

प्रिय के क्रोध में और वियोग के गीत
मां की आंचल के लाल तुम मर्म प्रीत
तुम्हें सर्वजनीन सदा, सर्वत्र माना।
हे प्रेम, तुम्हें अपना सर्वस्व माना!

आनंद-करुणा में तुम, विरह वियोग में,
वो हरी जो एक पर है हर सम रूप में।
क्यों सर्वदा तुम्हे सर्वोत्तम माना?
हे प्रेम, तुम्हें अपना सर्वस्व माना!

पूर्ण जग की स्तुति, तुम सूर्य की दीप्ति,
कमल की प्रियांशी, तुम चन्द्र की प्रीति,
सर्वप्रिय तुम, तुम्हें सर्वश्रेष्ठ माना।
हे प्रेम, तुम्हें अपना सर्वस्व माना! हे विरह के सखा, मेरे मन की व्यथा,
मेरे नयन के अश्रु हैं भेट तुम्हारे।
ऐ चित्त मेरे, तुम्हें सर्वज्ञ माना।
हे प्रेम, तुम्हें अपना सर्वस्व मान

amar gupta

हे विरह के सखा, मेरे मन की व्यथा, मेरे नयन के अश्रु हैं भेट तुम्हारे। ऐ चित्त मेरे, तुम्हें सर्वज्ञ माना। हे प्रेम, तुम्हें अपना सर्वस्व मान #yqbaba #हिंदी #yqdidi #yqrestzone #rzhindi #rzकाव्योगिता #rzकाव्योगिता3

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हे विरह के सखा, मेरे मन की व्यथा,
मेरे नयन के अश्रु भी हैं भेट तुम्हारे।
ऐ चित्त मेरे, तुम्हें सर्वज्ञ माना।
हे प्रेम, तुम्हें अपना सर्वस्व माना!

प्रिय के क्रोध में और वियोग के गीत
मां की आंचल के लाल तुम मर्म प्रीत
तुम्हें सर्वजनीन सदा, सर्वत्र माना।
हे प्रेम, तुम्हें अपना सर्वस्व माना!

आनंद-करुणा में तुम, विरह वियोग में,
वो हरी जो एक पर है हर सम रूप में।
क्यों सर्वदा तुम्हे सर्वोत्तम माना?
हे प्रेम, तुम्हें अपना सर्वस्व माना!

पूर्ण जग की स्तुति, तुम सूर्य की दीप्ति,
कमल की प्रियांशी, तुम चन्द्र की प्रीति,
सर्वप्रिय तुम, तुम्हें सर्वश्रेष्ठ माना।
हे प्रेम, तुम्हें अपना सर्वस्व माना! हे विरह के सखा, मेरे मन की व्यथा,
मेरे नयन के अश्रु हैं भेट तुम्हारे।
ऐ चित्त मेरे, तुम्हें सर्वज्ञ माना।
हे प्रेम, तुम्हें अपना सर्वस्व मान

kavi vikrant chambali

शीर्षक- धर्म विधा - कविता मानव सेवा कर्म बड़ा है दुनिया में सब कर्मों से। मानवता ही बड़ा धर्म है दुनिया में सब धर्मों से।। ईश्वर ने इंसान #stay_home_stay_safe

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शीर्षक- धर्म
विधा - कविता


मानव सेवा कर्म बड़ा है दुनिया में सब कर्मों से।
मानवता ही बड़ा धर्म है दुनिया में सब धर्मों से।।

ईश्वर ने इंसान बनाए फिर धर्म कहां से आया।
इस धरा की मानवता पर किसने कहर ढाया।।

सभी धर्मों में लोग एक से अच्छे बुरे होते।
धर्मों के आवेश में हम मानवता को खोते।।

मानवता ही सर्वप्रिय है दुनिया के सब मर्मों से।
मानवता ही बड़ा धर्म है दुनिया के सब धर्म से।।

धर्म में आकर कैसे हमने इस धरा पर रंग बांटे।
किसी ने भगवा रंग पहना कोई अपने बाल काटे।।

आज धरा पर मानवता कहां, धर्म की लड़ाई है।
चारों तरफ नजर घुमाओ भाई का दुश्मन भाई है।।

कैसे मैं मानवता बचाऊं दुनिया के बेशर्मो से।
मानवता ही बड़ा धर्म है दुनिया की सब धर्म से।। 


नाम - विक्रांत राजपूत चम्बली
पता - ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
ईमेल पता - ndlodhi2@yahoo.com

© स्वरचित रचना एवं
सर्वाधिकार सुरक्षित

©kavi vikrant rajput rajput शीर्षक- धर्म
विधा - कविता


मानव सेवा कर्म बड़ा है दुनिया में सब कर्मों से।
मानवता ही बड़ा धर्म है दुनिया में सब धर्मों से।।

ईश्वर ने इंसान
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