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Pushpvritiya
यदि तुम कवि हो तो उकेरोगे मुझे सृष्टि के रूप में........... सृष्टि........ अर्थात प्रकृति......... अर्थात मूल.......... अर्थात समस्त सार.......... है न........ किंतु यहां पन्नों पर उकेरी स्त्री सामान्य स्त्री से पूर्णत: भिन्न है.......... @पुष्पवृतियां ©Pushpvritiya पुरुषों को देखा है कभी....... कायिक गढ़न की बात कर रही हूं..... क्या दिखता है......? पौरूष... बल...सामर्थ्य... अब स्त्री को इस संदर्भ में
#Seema.k*_-sailent_*write@
फूलों को क्या मालूम कि कब कौन आकर उसे उसकी उम्मीद (टहनी) से दूर कर देगा। वह तो यूंही हवाओं संग खेला करते हैं! ©seema kapoor प्रकृति प्रकृति
writer0698
बहार -ए-प्रकृति #प्रकृति #NojotoPhoto
Shashank Rastogi
एक रात जागा में मैंने देख लिया सवेरा प्रकृति की गोद में ही तो है जन्नत का बसेरा प्रकृति #प्रकृति #सवेरा #रात #जन्नत
Amit Gupta
ये धूप, तू मान मेरी ये धूप, तेरा यूं नित्य बढ़ना लाजमी है मानता हूं मैं, तेरी तपन तुझको मानवों ने ही दिए, जानता हूं मैं पर क्या तू भी बन जाओगी निर्मोही और निष्ठुर तू मान मेरी, कर दे ऐसी सभी नाराजगी तू दूर मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । आकांक्षाओं कि परिसिमा लांघते गए ओ इस कदर पेड़ काटे, पर्वत - पहाड़ तोड़े, और न जाने क्या-क्या किए दर्द तेरी समझता हूं, ऐसे ही नहीं ढा रही तू ये कहर पर तुझसे से तो हमने ना कभी ऐसी उम्मीद किए मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । अच्छे, बुरे, लोभी, लालची, मतलबी चाहे जैसे भी आखिर ये भी तो तेरे संग ही रहते, तू रखे चाहे जैसे भी मान जा, तू जिद न कर, बढ़ तू पर न इस तरह देख, प्रकृति प्रेमियों के भी आंसू बने पसीने कि तरह मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । नन्हे बच्चों की अभी छुट्टियां भी तो नहीं हुई तेरी तपन उन्हें तड़पाती है, न जाऊंगा स्कूल, कहलवाती है ये भविष्य कल के, पढ़ कर समझेंगे तेरी वेदना को तू भी तो समझ बागों से दूर होते इनकी संवेदना को मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । प्रकृति प्रेम @ प्रकृति की तपन
आलोक अग्रहरि
ये उदासी भी ह्रदय में इक नया संचार करती है कभी कितने बेबस होते हैं इसका एहसास दिलाती है। भूल न जाना प्रकृति का विनाश ही है सृजन संदेश, क्योंकि बासी फूलों से प्रकृति श्रृंगार नही करती है।। ©आलोक अग्रहरि प्रकृति
Swati
प्रकृति की गोद में करुणा, समानता और देने की भावना के गुण जब आपके भीतर जागृत होते हैं, तब प्रकृति से संवाद भी निश्चित होते हैं। 🥀🍃 ©Swati #प्रकृति