Find the Latest Status about सियासी रनिया का बिरहा from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, सियासी रनिया का बिरहा.
Mihir Choudhary
तुमने तो हँस के पूछा था बोलो न कितना प्रेम है बोलो कैसे मैं बतलाता बोलो ना कैसे समझता जब अहसास समंदर होता है तो शब्द नही फिर मिलते हैं उन बेहिसाब से चाहत को कैसे कैसे मैं बतलाता बोलो न कैसे दिखलाता बोलो न कैसे समझता तब भी हिसाब का कच्चा था अब भी हिसाब का कच्चा हूँ जो था वो ना मेरे बस का था अब तो जो हालात हुए उनसे तो मैं अब बेबस हूं अब अंदर -अंदर सब जलता है लावा जैसा सा कुछ पलता है धीमे धीमे कुछ रिसता है कुछ टूट-टूट के पीसता है नस-नस मैं जैसे कुछ खौलता है धड़कन बिजली सा दौड़ता है अब बेहिसाब ये यादे है बस बेहिसाब ये चाहत है बोलो क्या वो प्रेम ही था बोलो न क्या ये प्रेम ही है मिहिर... बिरहा
Purohit Nishant
बड़े सलीके से तहजीब से बात करते हैं दौर चुनाव का हो सियासी कुत्ते भी विलायती बात करते हैं – पुरोहित"निशान्त" ©Purohit Nishant सियासी व्यंग्य.... #Mic #मेरी_कलम #हिन्दी_युग #कवि #व्यंग्य #सियासत
Rajesh rajak
सखियां करती फागुन की बातें, ये सखी,कैसे कटें ये तन्हा रातें, आ गया बसंत,दुख भए अनंत, दिन तो बीता प्रियतम की बाट जोहते, कैसे बीतें बैरन रातें, यार मिले कोई तलबगार,कसक मिटे मन की, राग मल्हार फगुआ गाए,प्रीत मिले न यौवन की, मन मतंग,करता है तंग,फीका सा लागे मोहे लाल रंग, हे कंत,कर बिरह का अंत,पुलक उठे मोरा अंग अंग,, फागुन का बिरह,
Vandana
तुम जो दूर गए मुझसे,, मुद्दतों बीत गए मुझे मुस्कुराए,,, एक उदासी से छाई रहती है मुख में,, लफ्जों में कैद हो गई है अब खामोशी,,, ऐसा ना है की प्यास है जिस्म की,, यह तो एक रूह की कसक है,,,, ना जिंदगी में कोई वजह है, बेवजह सी हो गई है मेरी अब दुनियाँ,, साथ जब तुम थे ना कोई गम था ना कुछ कम था,,, तुम्हारी मौजूदगी ही मेरे जीने का सहारा था अब जो बिछड़न का दर्द है, वो आंसू बन छलकते है, मेरे आंखों से,,,, करवटें बदलती हूं वीरान रातों में,, तन्हा अकेले ही खुद से लड़ती हूं,, जज्बातों के बहाव में बह जाती हूं,, हाँ, मैं उस पल बहुत कमजोर पड़ जाती हूं, माना जब तुम पास थे पूरा हक समझती थी,, नाजायज ख्वाहिशें और भरपूर कोसती थी, तुम्हें अपना खुदा समझ मनमर्जियां खूब चलाती थी,,, नादान अल्हड़पन में बहुत तुम्हें सताती थी,, आज वह शरारतें उदास निराश बैठी है,,, विरहा वेदना बिछड़न का दर्द,,,,
Anuj Ray
" बिरहा की रातें" न धुंआ न कहीं ,आग जला करती है, बिरहा की रातें यूं ही ,खामोश जला करती हैं जलता है बदन आग की लपटों में,दो बूंद की उम्मीद लिये, बेबसी हाथ मला करती है। फागुन का महीना हो, या घनी सावनी रातें, पिया मिलन की आस में, यूं ही ख़ला करती हैं। ©Anuj Ray #बिरहा की रातें