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HARSH369

#खिलता गुलाब जल गया #Rose #प्रेरक

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मेरा खिलता गुलाब जल गया
मेरा सपना जो कागज मे था वो गल गया,
ना जाने क्यूं आंधि आयी मै बह गया
मेरा जनजीवन सारा सिमत गया..
हे प्रभु !क्या हो गया..!
मेरा खिलता गुलाब जल गया..!
मेरि नैया बीच मझधार मे दूब गयी,
मेरी खुशिया ना जाने कहां चली गयी,
सपने थे जो पाले मैने 
कही राह मे छूट गये..!
कभी तो अन्धकार हटेगा दोबारा
कभी तो गुलाब खिलेगा दोबारा,
सपने वही लिखुंगा दोबारा 
फिर से कोसिस करुंगा दोबारा..!!

©Shreehari Adhikari369 #खिलता गुलाब जल गया

#Rose

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JALAJ KUMAR RATHOUR

थी मेरी प्रीत तुम, परंतु मेरे विपरीत तुम, तुम फूल, मैं शूल , रिश्ता हमारा एक ख्वाब, होते हम भी फूल गुलाब, .... #जलज राठौर

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थी मेरी प्रीत तुम, परंतु मेरे विपरीत तुम,
तुम फूल, मैं शूल, 
 रिश्ता हमारा एक ख्वाब, काश होते हम भी फूल गुलाब, 
.... #जलज राठौर
#शूल -काँटा थी मेरी प्रीत तुम, 
परंतु मेरे विपरीत तुम,
तुम फूल, मैं शूल , 
 रिश्ता हमारा एक ख्वाब, 
होते हम भी फूल गुलाब, 
.... #जलज राठौर

Ramkishor Azad

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Nêhal Jêêt

तेरी हुस्न की तपिश से गुलाब जलते हैं महताब' ठिठुरता हैै आफताब" जलते हैं चांद' सूर्य" वो ओस नहीं कमल ही पसीजते होंगे मेरे पहल #Nênal_Jêêt

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तेरी हुस्न की तपिश से  गुलाब  जलते हैं
महताब' ठिठुरता हैै  आफताब" जलते हैं       चांद'   सूर्य"

वो ओस नहीं  कमल  ही  पसीजते  होंगे
मेरे पहलू' में तुझे पाकर तालाब जलते हैं       पास' तेरी हुस्न की तपिश से  गुलाब  जलते हैं
महताब' ठिठुरता हैै  आफताब" जलते हैं       चांद'   सूर्य"

वो ओस नहीं  कमल  ही  पसीजते  होंगे
मेरे पहल

Subhash.C.sharma

गुलाब जल रहा है देखो क्या हो रहा है, गुलाब जल रहा है, देश मै मंहगाई की हाहाकार मची है मै लिख रहा हु,जो क्या घटना यह सच्ची है? मुझे कुछ नज #Rose #कविता

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गुलाब जल रहा है

देखो क्या हो रहा है, गुलाब जल रहा है,
देश मै मंहगाई की हाहाकार मची है
मै लिख  रहा हु,जो क्या  घटना यह सच्ची है?
मुझे कुछ नजर आ रहा है देखो गुलाब जल  रहा है,

किसान सड़को में कुचल दिया जा रहा है,
 मजदूर का शोषण किया जा रहा है,
है जिनका हाल अच्छा उनका ही मुनाफा किया जा रहा है
देखो इस देश में गरीब छला जा रहा है,

तपती धूप मै वो खेतो मै काम कर रहा है, 
उगाकर अन्न देश का पेट वो पाल रहा है, 
देखो वेदना से हृदय उसका जला जा रहा है,
हाल क्या है मालूम नही, पर गरीब छला जा रहा है,

गुलाब का लाल रंग लह रहा है, मजदूर पर पूंजीपति हावी हो रहा है,
चूसकर रंग खाद का अशिष्ट ,रंग उसका लाल हो रहा है 
देखो गुलाब जल रहा है, 

कारखाना  , हो चाहे फाटक मजाक उसका  उड़ाया जा रहा है,
बड़े बड़े उद्योगपतियों का कर्जा माफ किया जा रहा है,
देखो देश में ये क्या हो रहा है,
किसान की ना कर परवाह उसे गुलाम बनाया जा रहा है,
देखो किसान रो रहा है,
फैलाकर हाथ तेरे समक्ष, कुछ तुझसे मांग रहा है ,
देखो देखो धीरे धीरे गुलाब जल रहा है,
             


                           सुभाष सी. शर्मा

©Subhash.C.sharma गुलाब जल रहा है

देखो क्या हो रहा है, गुलाब जल रहा है,
देश मै मंहगाई की हाहाकार मची है
मै लिख  रहा हु,जो क्या  घटना यह सच्ची है?
मुझे कुछ नज

Aryan Verma

सुना है दिन को उसे तितलियां स्ताती है सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते है सुना है उसके लबों से गुलाब जलते है सो हम बहार पर इल्जाम धर कर दे #lovequotes #urdupoetry #yqhindi #yqlove #रातें #आंखें

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सुना है लोग उसे आंख भरके देखते 
सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते है
सुना है बोले तो बतों से फूल झड़ते है
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं सुना है दिन को उसे तितलियां स्ताती है
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते है
सुना है उसके लबों से गुलाब जलते है 
सो हम बहार पर इल्जाम धर कर दे

shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

#hugday हरेक*खार पे *सुर्ख़ गुलाब हरेक कली में*रोशन_ए _चराग़..... इस *जहन_ए_तसव्वुर में*तफरी करने वाले तेरा *तबस्सुम_ए_कहकशां कहाँ है.....✍️ #ValentineDay #nojotohindi #NojotoFilms #nojotonewa #shamawritesBebaak

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Nitin Kr Harit

- पुरुष तुम गेहूँ, वो गुलाब - बीच पगडंडी पर खड़ा था मैं, एक तरफ तन कर खड़ा था गेहूँ, एक तरफ लहरा रहा था गुलाब... यूं तो दोनों में अपने-अपने #HindiPoem #hindipoetry #yqdidi #yqhindi #yqquotes #हिंदीसाहित्य #NitinKrHarit

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पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़ें - पुरुष तुम गेहूँ, वो गुलाब -

बीच पगडंडी पर खड़ा था मैं,
एक तरफ तन कर खड़ा था गेहूँ,
एक तरफ लहरा रहा था गुलाब...

यूं तो दोनों में अपने-अपने

नितिन कुमार 'हरित'

- पुरुष तुम गेहूँ, वो गुलाब - बीच पगडंडी पर खड़ा था मैं, एक तरफ तन कर खड़ा था गेहूँ, एक तरफ लहरा रहा था गुलाब... यूं तो दोनों में अपने-अपने #Rose #कविता #hindipoetry #हिंदीसाहित्य #NitinKrHarit #शब्दोंकाघर

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- पुरुष तुम गेहूँ, वो गुलाब -

बीच पगडंडी पर खड़ा था मैं,
एक तरफ तन कर खड़ा था गेहूँ,
एक तरफ लहरा रहा था गुलाब...

यूं तो दोनों में अपने-अपने गुण थे,
पर ना जाने क्यों?
घमंड से इतरा रहा था गेहूँ.
नुकीली सी कर रखी थीं उसने बालें अपनी,
जैसे कह रहा हो, दुनिया का पेठ भरता हूँ,
मुझ जैसा कोई नहीं,
मैं तैयार हूँ, हर चुनोती के लिए...

वहीं गुलाब, महक रहा था
लहलहा रहा था
खुले दिल से, 
बिना भेद भाव के 
बाँट रहा था अपना मकरंद
हवा में घोल रहा था ख़ुशबू
पानी को तराश कर बना रहा था गुलाब जल
उसने अपने हर पंखुड़ी दान कर दी थी
ताकि उनसे बन सके इत्र, शर्बत
और ना जाने क्या क्या...

पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़ें

©Nitin Kr. Harit - पुरुष तुम गेहूँ, वो गुलाब -

बीच पगडंडी पर खड़ा था मैं,
एक तरफ तन कर खड़ा था गेहूँ,
एक तरफ लहरा रहा था गुलाब...

यूं तो दोनों में अपने-अपने
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