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Parasram Arora
आकांक्षाओं की आभाव ग्रस्तता हमें अंधकार मे ले जा सकती है और सभी आकांक्षाएं अंधी हो सकती है अगर उन्हें ज्ञान का काढ़ा न पिलाया जाय लेकिन बो ज्ञान भी अयोग्य घोषित हो जाता है अगर उसके साथ कर्म को उपेक्षित रखा जाय जबकि वो कर्म भी खोखला साबित हो सकता है ज़ब तक उस कर्म को प्रेम की चाशनी मे न घोल दिया जाय क्योंकि प्रेम और कर्म को जोड़ देने क़े बाद जीवन की कर्मभूमि और तपोभूमि को सुवासित वातायन दिया जा सकता है ©Parasram Arora सुवासित वातायन....
VINOD VANDEMATRAM
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Aaradhana Anand
"कीमती है सिक्के, ईमान सस्ता है.. यहां रिश्तों का मतलब ही मतलब का रिश्ता है...!!! चित् तरंगिणी पत्रिका
manoj kumar jha"Manu"
शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे। साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने।। सभी पर्वतों में मणियाँ नहीं होतीं, सभी हाथियों के मस्तक में मोती नहीं होते, साधु पुरुष सभी स्थानों में नहीं मिलते और चन्दन सभी वनों में नहीं पाया जाता है। सुभाषित
Aaradhana Anand
चित् तरंगिणी पत्रिका दिव्य शब्द संग्रह खाली है सडक लेकिन ,मोड बहुत है । दिखती है साफ सुथरी लेकिन , जोड बहुत है ।। चित् तरंगिणी पत्रिका
Aaradhana Anand
“भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा” यानी भारत की दो प्रतिष्ठायें हैं पहली संस्कृत व दूसरी संस्कृति..... “संस्कृताश्रिता संस्कृति:” यानि भारत की संस्कृति संस्कृतभाषा पर ही आश्रित है। चित् तरंगिणी पत्रिका
Aaradhana Anand
करके साधु की हत्या , मिला कौन सा मान । कुकर्मो से मानव न सुधरे , कैसे बसा ये अभिमान ।। नमन करो तो ज्ञान मिले , मिले धर्म का ध्यान । साधु की हत्या करे जो, न हो कभी कल्याण ।। मानव की बुद्धि भ्रष्ट हुई , यहां पापी बने महान । दुनिया मे हाहाकार मचा , ये ही कर्मो का परिणाम ।। चित् तरंगिणी पत्रिका