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Jitendra Kumar Som
चौथी पुतली कामकंदला की कहानी चौथे दिन जैसे ही राजा सिंहासन पर चढ़ने को उद्यत हुए पुतली कामकंदला बोल पड़ी, रूकिए राजन, आप इस सिंहासन पर कैसे बैठ सकते हैं? यह सिंहासन दानवीर राजा विक्रमादित्य का है। क्या आप में है उनकी तरह विशेष गुण और त्याग की भावना? राजा ने कहा- हे सुंदरी, तुम भी विक्रमादित्य की ऐसी कथा सुनाओ जिससे उनकी विलक्षणता का पता चले। पुतली बोली, सुनो राजन, एक दिन राजा विक्रमादित्य दरबार को संबोधित कर रहे थे, तभी किसी ने सूचना दी कि एक ब्राह्मण उनसे मिलना चाहता है। विक्रमादित्य ने कहा कि ब्राह्मण को अंदर लाया जाए। विक्रमादित्य ने उसके आने का प्रयोजन पूछा। ब्राह्मण ने कहा कि वह किसी दान की इच्छा से नहीं आया है, बल्कि उन्हें कुछ बताने आया है। उसने बताया कि मानसरोवर में सूर्योदय होते ही एक खंभा प्रकट होता है जो सूर्य का प्रकाश ज्यों-ज्यों फैलता है ऊपर उठता चला जाता है और जब सूर्य की गर्मी अपनी पराकाष्ठा पर होती है तो वह साक्षात सूर्य को स्पर्श करता है। ज्यों-ज्यों सूर्य की गर्मी घटती है, छोटा होता जाता है तथा सूर्यास्त होते ही जल में विलीन हो जाता है। विक्रमादित्य के मन में जिज्ञासा हुई कि आखिर वह कौन है। ब्राह्मण ने बताया कि वह भगवान इन्द्र का दूत बनकर आया है। देवराज इन्द्र का आपके प्रति जो विश्वास है आपको उसकी रक्षा करनी होगी। आगे उसने कहा कि सूर्य देवता को घमंड है कि समुद्र देवता को छोड़कर पूरे ब्रह्मांड में कोई भी उनकी गर्मी को सहन नहीं कर सकता। देवराज इन्द्र उनकी इस बात से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि उनकी अनुकम्पा प्राप्त मृत्युलोक का एक राजा सूर्य की गर्मी की परवाह न करके उनके निकट जा सकता है। वह राजा आप हैं। राजा विक्रमादित्य को अब सारी बात समझ में आ गई। उन्होंने सोच लिया कि प्राणोत्सर्ग करके भी सूर्य भगवान को समीप से जाकर नमस्कार करेंगे तथा देवराज के उनके प्रति विश्वास की रक्षा करेंगे। उन्होंने ब्राह्मण को समुचित दान-दक्षिणा देकर विदा किया तथा अपनी योजना को कार्य-रूप देने का उपाय सोचने लगे। भोर होने पर दूसरे दिन वे अपना राज्य छोड़कर चल पड़े। एकांत में उन्होंने मां काली द्वारा प्रदत्त दोनों बेतालों का स्मरण किया। दोनों बेताल तत्क्षण उपस्थित हो गए। विक्रम को दोनों बेताल ने बताया कि उन्हें उस खंभे के बारे में सब कुछ पता है। दोनों बेताल उन्हें मानसरोवर के तट पर लाए। रात उन्होंने हरियाली से भरी जगह पर काटी और भोर होते ही उस जगह पर नजर टिका दी, जहां से खंभा प्रकट होता। सूर्य की किरणों ने जैसे ही मानसरोवर के जल को छुआ, एक खंभा प्रकट हुआ। विक्रमादित्य तुरंत तैरकर उस खंभे तक पहुंचे। खंभे पर जैसे विक्रमादित्य चढ़े जल में हलचल हुई और लहरें उठकर विक्रम के पैर छूने लगीं। ज्यों-ज्यों सूर्य की गर्मी बढी़, खंभा बढ़ता रहा। दोपहर आते-आते खंभा सूर्य के बिल्कुल करीब आ गया। तब तक विक्रम का शरीर जलकर बिलकुल राख हो गया था। सूर्य भगवान ने जब खंभे पर एक मानव को जला हुआ पाया, तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि विक्रम को छोड़कर कोई दूसरा नहीं होगा। उन्होंने भगवान इन्द्र के दावे को बिल्कुल सच पाया। उन्होंने अमृत की बूंदों से विक्रम को जीवित किया तथा अपने स्वर्णकुंडल उतारकर भेंट कर दिए। उन कुंडलों की यह विशेषता थी कि कोई भी इच्छित वस्तु वे कभी भी प्रदान कर देते। सूर्य देव ने अपना रथ अस्ताचल की दिशा में बढ़ाया तो खंभा घटने लगा। सूर्यास्त होते ही खंभा पूरी तरह घट गया और विक्रम जल पर तैरने लगे। तैरकर सरोवर के किनारे आए और दोनों बेतालों का स्मरण किया। बेताल उन्हें फिर उसी जगह लाए जहां से उन्हें सरोवर ले गए थे। विक्रम पैदल अपने महल की दिशा में चल पड़े। कुछ ही दूर पर एक ब्राह्मण मिला जिसने बातों-बातों में कुण्डल मांग लिए। विक्रम ने बिना एक पलकी देरी किए बेहिचक उसे दोनों कुंडल दे दिए। पुतली बोली- बोलो राजन, क्या तुम में है वह पराक्रम कि सूर्य के नजदीक जाने की हिम्मत कर सको? और अगर चले जाओ तो देवों के देव सूर्यदेव के स्वर्णकुंडल किसी साधारण ब्राह्मण को दे सको? अगर हां तो इस सिंहासन पर तुम्हारा स्वागत है। राजा पेशोपेश में पड़ गया और इस तरह चौथा दिन भी चला गया। पांचवे दिन पांचवी पुतली लीलावती ने सुनाई विक्रमादित्य के शौर्य की गाथा। ©Jitendra Kumar Som #holihai चौथी पुतली कामकंदला की कहानी
Jitendra Kumar Som
चौथी पुतली कामकंदला की कहानी चौथे दिन जैसे ही राजा सिंहासन पर चढ़ने को उद्यत हुए पुतली कामकंदला बोल पड़ी, रूकिए राजन, आप इस सिंहासन पर कैसे बैठ सकते हैं? यह सिंहासन दानवीर राजा विक्रमादित्य का है। क्या आप में है उनकी तरह विशेष गुण और त्याग की भावना? राजा ने कहा- हे सुंदरी, तुम भी विक्रमादित्य की ऐसी कथा सुनाओ जिससे उनकी विलक्षणता का पता चले। पुतली बोली, सुनो राजन, एक दिन राजा विक्रमादित्य दरबार को संबोधित कर रहे थे, तभी किसी ने सूचना दी कि एक ब्राह्मण उनसे मिलना चाहता है। विक्रमादित्य ने कहा कि ब्राह्मण को अंदर लाया जाए। विक्रमादित्य ने उसके आने का प्रयोजन पूछा। ब्राह्मण ने कहा कि वह किसी दान की इच्छा से नहीं आया है, बल्कि उन्हें कुछ बताने आया है। उसने बताया कि मानसरोवर में सूर्योदय होते ही एक खंभा प्रकट होता है जो सूर्य का प्रकाश ज्यों-ज्यों फैलता है ऊपर उठता चला जाता है और जब सूर्य की गर्मी अपनी पराकाष्ठा पर होती है तो वह साक्षात सूर्य को स्पर्श करता है। ज्यों-ज्यों सूर्य की गर्मी घटती है, छोटा होता जाता है तथा सूर्यास्त होते ही जल में विलीन हो जाता है। विक्रमादित्य के मन में जिज्ञासा हुई कि आखिर वह कौन है। ब्राह्मण ने बताया कि वह भगवान इन्द्र का दूत बनकर आया है। देवराज इन्द्र का आपके प्रति जो विश्वास है आपको उसकी रक्षा करनी होगी। आगे उसने कहा कि सूर्य देवता को घमंड है कि समुद्र देवता को छोड़कर पूरे ब्रह्मांड में कोई भी उनकी गर्मी को सहन नहीं कर सकता। देवराज इन्द्र उनकी इस बात से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि उनकी अनुकम्पा प्राप्त मृत्युलोक का एक राजा सूर्य की गर्मी की परवाह न करके उनके निकट जा सकता है। वह राजा आप हैं। राजा विक्रमादित्य को अब सारी बात समझ में आ गई। उन्होंने सोच लिया कि प्राणोत्सर्ग करके भी सूर्य भगवान को समीप से जाकर नमस्कार करेंगे तथा देवराज के उनके प्रति विश्वास की रक्षा करेंगे। उन्होंने ब्राह्मण को समुचित दान-दक्षिणा देकर विदा किया तथा अपनी योजना को कार्य-रूप देने का उपाय सोचने लगे। भोर होने पर दूसरे दिन वे अपना राज्य छोड़कर चल पड़े। एकांत में उन्होंने मां काली द्वारा प्रदत्त दोनों बेतालों का स्मरण किया। दोनों बेताल तत्क्षण उपस्थित हो गए। विक्रम को दोनों बेताल ने बताया कि उन्हें उस खंभे के बारे में सब कुछ पता है। दोनों बेताल उन्हें मानसरोवर के तट पर लाए। रात उन्होंने हरियाली से भरी जगह पर काटी और भोर होते ही उस जगह पर नजर टिका दी, जहां से खंभा प्रकट होता। सूर्य की किरणों ने जैसे ही मानसरोवर के जल को छुआ, एक खंभा प्रकट हुआ। विक्रमादित्य तुरंत तैरकर उस खंभे तक पहुंचे। खंभे पर जैसे विक्रमादित्य चढ़े जल में हलचल हुई और लहरें उठकर विक्रम के पैर छूने लगीं। ज्यों-ज्यों सूर्य की गर्मी बढी़, खंभा बढ़ता रहा। दोपहर आते-आते खंभा सूर्य के बिल्कुल करीब आ गया। तब तक विक्रम का शरीर जलकर बिलकुल राख हो गया था। सूर्य भगवान ने जब खंभे पर एक मानव को जला हुआ पाया, तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि विक्रम को छोड़कर कोई दूसरा नहीं होगा। उन्होंने भगवान इन्द्र के दावे को बिल्कुल सच पाया। उन्होंने अमृत की बूंदों से विक्रम को जीवित किया तथा अपने स्वर्णकुंडल उतारकर भेंट कर दिए। उन कुंडलों की यह विशेषता थी कि कोई भी इच्छित वस्तु वे कभी भी प्रदान कर देते। सूर्य देव ने अपना रथ अस्ताचल की दिशा में बढ़ाया तो खंभा घटने लगा। सूर्यास्त होते ही खंभा पूरी तरह घट गया और विक्रम जल पर तैरने लगे। तैरकर सरोवर के किनारे आए और दोनों बेतालों का स्मरण किया। बेताल उन्हें फिर उसी जगह लाए जहां से उन्हें सरोवर ले गए थे। विक्रम पैदल अपने महल की दिशा में चल पड़े। कुछ ही दूर पर एक ब्राह्मण मिला जिसने बातों-बातों में कुण्डल मांग लिए। विक्रम ने बिना एक पलकी देरी किए बेहिचक उसे दोनों कुंडल दे दिए। पुतली बोली- बोलो राजन, क्या तुम में है वह पराक्रम कि सूर्य के नजदीक जाने की हिम्मत कर सको? और अगर चले जाओ तो देवों के देव सूर्यदेव के स्वर्णकुंडल किसी साधारण ब्राह्मण को दे सको? अगर हां तो इस सिंहासन पर तुम्हारा स्वागत है। राजा पेशोपेश में पड़ गया और इस तरह चौथा दिन भी चला गया। पांचवे दिन पांचवी पुतली लीलावती ने सुनाई विक्रमादित्य के शौर्य की गाथा। ©Jitendra Kumar Som #me चौथी पुतली कामकंदला की कहानी
Chandrika Lodhi
karwachauth मैं दिदार करती हूँ उस चाँद का जो मेरे दामन में समाता है वो हर पूनम मुझसे मिलने आता है दूज की काली स्याही रात में दो पल आकर रोनक कर जाता है आमावश्या को अकसर तड़पता है सप्तमी की रात से पूरा करने को मुझे अपना आकार बढाता है वो चौथ को अकसर इतराता है मैं पूजती हूँ उसको इसलिए देरी से आता है करवा चौथ की शुभकामनाएं
vinay shukla advocate high court allahabad
विनय शुक्ला की तरफ से सबको हार्दिक शुभकामनाएं करवा चौथ की बधाई।
vinay shukla advocate high court allahabad
विनय शुक्ला की तरफ से सबको हार्दिक शुभकामनाएं करवा चौथ की बधाई।