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Vikas Sharma Shivaaya'
#FourlinePoetry कबीर सो धन संचिए जो आगे कूं होइ। सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्या कोइ । कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम दे, सर पर धन की गठरी बांधकर ले जाते तो आज तक किसी को नहीं देखा। 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' धन की गठरी
sonia
जहां मिले अवनि अंबर से उस क्षितिज पर जो रखे स्वप्न मेरे हिस्से के जा कर ले लूं सबसे पहले बांध गठरिया भागू मैं ले अपने आकाश - धरा को सोनिया सूर्य प्रभा 16/04/2018 # स्वप्नों की गठरी
priya sharma
अरमानों की गठरी बांधे गांव से शहर आए हैं.. कुछ हसरतो को दिल में लिए माँ-बाप की उम्मीदे भी साथ लाए हैं.. बहन की शादी का सपना भी साथ-साथ चल रहा हैं.. इस छोटे से मन में ना जाने क्या-क्या पल रहा हैं.. ख्वाब, ख्वाहिशों, जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ता जा रहा हैं.. और ये वक्त है के हाथ से निकलता जा रहा हैं.. कोशिशें मेरी फिर भी निरंतर जारी है.. मै भी हार नहीं मानूँगा ऐ वक्त.. कुछ कर गुजरने की मन में जो ठानी है. --प्रिया शर्मा ©priya sharma #अरमानो की गठरी...
Vivek
चहकना उसकी फितरत महकना उसकी नजाकत घूमना फिरना खेतों में है गाँव की गोरी की आदत...!!! ©Vivek #गाँव की गोरी
Hindi poem the heart of nation
आशा की गठरी बांध जगत में, जीवन जीने आया हूं अपने सपनों को पंख लगाकर,उन्हें उड़ाने आया हूं कुछ मोल भाव कर्मों से तो, कुछ भाग्य भी करने वाला है हर समय नाचते हैं हम पर, कोई हमें नचाने वाला है कुछ कर्ज जहां का मुझपर है, मैं उसे चुकाकर जाऊंगा तुम पाट भले दो भूतल में मैं फिर से उभरकर आऊंगा हर एक दर्द का जगती से,हिसाब कराने आया हूं अपने सपनों को पंख लगाकर उन्हें उड़ाने आया हूं। आशा की गठरी
Parasram Arora
ज़ब छलक उठी जज्बातो की गगरी उछल पड़ा था ह्रदय और उद्वेलित भी हुआ था पर कोरी रही मन की नगरी भूला भटका वो मनचिन्हा सा पल आया था मेरे घर पर उसे मै बिठाता कंहा? खिलाता क्या ? साधारण बोलचाल की भाषा भी तो वह कहा समझता है फिर गंध नाद और रंगो का सामूहिक समारोह वो मनाता कहा? #जज्बातो की गगरी......
Amit Singhal "Aseemit"
हम लोग जीवन भर लादे रहते हैं, बुरी और दुख भरी यादों की गठरी। यदि हमारे विचार सुंदर सादे रहते हैं, हमारे सिर पर होगी छाया सुनहरी। ©Amit Singhal "Aseemit" #यादों #की #गठरी
M R Mehata(रानिसीगं )
जय माता दी 🖤 पतन तो हो कर ही रहता है फिर अभिमान की गठरी सर पर लेकर मानव न जाने क्यू फिरता रहता है जिंदगी भर जब की.. पथझड में तो हरे भरे पेड़ भी सूख जाया करते हैं ©M R Mehata(रानिसीगं ) #Sukha अभिमान की गठरी