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Dr Manju Juneja
ओ सुखी तेरे हथ विच रुमाल ,मैं वी पाया कुर्ता लाल नच लईये असा वी तेरे नाल दिल करे मैं ता भंडगे विच तेरे नाल नचा हो सौदा खरा -खरा हो सौदा खरा -खरा ओ सुखी तेरे हथ विच रुमाल तू ते मुंडा बड़ा कमाल मैं वी गिद्दा पौन नू तैयार, नच लईये असा वी तेरे नाल दिल करे मैं ता भगड़े विच तेरे नाल नचा हो सौदा खरा- खरा हो सौदा खरा- खरा ओ सुखी तेरे हथ विच रुमाल ,तेरे गानयाँ दा कमाल तू ते करना ऐ धमाल,मैं वी सोहणी हा मुट्यार दिल करे मैं ता भगड़े विच तेरे नाल नचा हो सौदा खरा- खरा हो सौदा खरा- खरा ओ सुखी तेरे हाथ रुमाल हर पासे आई प्यार दी बहार हर कोई तैनू मिलन नू तैयार दिल करे मैं ता भगड़े विच तेरे नाल नचा हो सौदा खरा -खरा हो सौदा खरा- खरा ©Dr Manju Juneja #सुखबीर #Nachdi #पंजाबी #बोलिया #बोलियाँ #रुमाल #प्यार #भंगडा #नचा #दिल
Shilpa
उफ् तेरी मुस्कुराहट और आँखो की ये बोलियाँ । दिल पे चलती हे जैसे हजारों गोलियाँ ।। 2019#shilpapandya
Hasanand Chhatwani
*गुरु बानी कहती है* *बिन बोलियाँ सब किछ जाणदा* *किस आगे करे अरदास हमें* *कभी भी मालिक से कुछ नही* *माँगना चाहिए ,* *वो खुद ही आपके सारे कारज* *संवारेगा अगर मालिक दे सकता है* *तो जान भी सकता है कि हमे क्या चाहिए* *🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻* *गुरु बानी कहती है* *बिन बोलियाँ सब किछ जाणदा* *किस आगे करे अरदास हमें* *कभी भी मालिक से कुछ नही*
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल सच को मिलती हैं गालियाँ देखो । झूठ पे बजती तालियाँ देखो ।।१ पेट कितना भरा हमारा है । तुम भी आकर ये थालियाँ देखो ।।२ काट कर पेट बेटियाँ पाली । क्या बचा आज झोलियाँ देखो ।।३ नाम ऊँचा जरूर होगा कल । पढ़ रही आज बेटियाँ देखो ।।४ किसका मक़सद हुआ यहाँ पूरा । हर बशर में हैं सिसकियाँ देखो ।।५ वो नहीं फिर मिले कभी हमसे । बन्द जबसे ये खिड़कियाँ देखो ।।६ आह दिल से अगर मिरे निकली । टूट जायेगी फिर बेडियाँ देखो ।।७ पीठ पे मार कर चले ख़ज़ंर । मीठी जिनकी थी बोलियाँ देखो ।।८ रूह तक हो गई प्रखर घायल । भीगती आप आँखियाँ देखो ।।९ २२/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल सच को मिलती हैं गालियाँ देखो । झूठ पे बजती तालियाँ देखो ।।१
ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)
दोस्तो "हिंदी दिवस"का नाम सुनता हुँ तो चेहरे पर एक खामोशी छा जाती है,,,, ऊर्दु कलमकार" मुहोब्बत इकबाल "ने कहा है! "हिंदी है हम" आखिर क्य
Abhishek Yadav
बरसती बूँदें अचानक ठहर गयी, बहती हुई तेज हवा भी थम गई चुपचाप। आपस में गुँथे हुये सब पर्वत ढीले होकर तकने लगे आकाश। उड़ते हुए रेत कण तटस्थ हो देखने लगे, रास्ते सारे मुड़कर आने लगे झील की ओर। फिर चहकते हुये जीवों की सब बोलियाँ छीन ली गयीं और तब उस पल झील की एक लहर जागृत हुई! वह सोचने लगी...🤔 क्या जन्म और पुनर्जन्म की बहस उसके लिए भी है? क्या उसका किनारे के पत्थरों से बार-बार टकरा जाना , पिछले जन्मों का परिणाम है? या आगे आने वाले जन्मों के लिए, जमा की जा रही कर्मों की पूँजी है? यूँ उसका मचलना, सूरज की किरणों में नाचना, ये सब क्या वह खुद कर रही है या करवाने वाला कोई और ही है? और वह सिर्फ एक माध्यम मात्र है! उसको यह जिज्ञासा भी हुई, कि उसके जीवन का रिव्यू कैसा होगा? रोज एक ही कार्य समान रूप से करने पर, निरंतरता के लिए प्रशंसा होगी! या बार-बार दोहराने पर, मौलिकता के अभाव वाली आलोचना होगी? उसने अपने चारों तरफ घूमकर देखा और खुद से पूछ बैठी- क्या वह सुन्दर दृश्य में टांक दिए जाने के लिए है केवल? पहले से तय एक भूमिका निभा देने के लिए है बस? कभी खुद तय करके किसी धारा में क्या बह पायेगी वह? उसे पहाड़, हवा, रास्ते, रेत, कण सब की दिनचर्या एकदम अपने जैसी लगी, और उनसे जवाब पाने की उम्मीद खोकर वह और निराश हो गई। इन गहरे सवालों के जवाब लहर को न मिलने थे और न मिले। रास्ते फिर चलने लगे वैसे ही दिशाहीन, जीव फिर से आवाज पा गए और निरर्थक कुछ कहने लगे। पहाड़ों ने फिर लहरों को घेर लिया, रेत, कण फिर उड़ने लगे तमाशा समाप्त देखकर। हवायें फिर से पगलाकर सरसराने लगीं, और लहरें फिर चल पड़ीं होकर उदास।😢 मगर! चलने के पहले एक लहर मेरे पास आयी और तपाक से बोली- "तुमने फिर मुझमें अपनी छवि खोज ली न ?"😕😍 -✍️ अभिषेक यादव बरसती बूँदें अचानक ठहर गयी, बहती हुई तेज हवा भी थम गई चुपचाप। आपस में गुँथे हुये सब पर्वत ढीले होकर तकने लगे आकाश। उड़ते हुए रेत कण तटस्थ ह