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Pnkj Dixit
#OpenPoetry 🚩 ॐ 🚩 ब्राह्मणत्व अग्निॠर्षि: पवमान: पाञ्चजन्य पुरोहित: । -- ऋगवेद । तेजस्वी , ज्ञानी , पवित्र तथा संयमी ही पुरोहित हों । पुरोहित की पवित्र जिम्मेदारी केवल वे लोग उठावें जिनमें आवश्यक गुण हों । ॐ वन्दे वेद प्रकाशम् 🚩 जय वैदिक सनातन धर्म संस्कृति 🚩 🚩 कृण्वन्तो विश्वमार्यम् 🚩 ०९/०८/२०१९ 🌷👰💓💝 ... ✍ कमल शर्मा'बेधड़क' 🚩 ॐ 🚩 ब्राह्मणत्व अग्निॠर्षि: पवमान: पाञ्चजन्य पुरोहित: । -- ऋगवेद । तेजस्वी , ज्ञानी , पवित्र तथा संयमी ही पुरोहित हों ।
Divyanshu Pathak
तुम गर्जन ''रावणहत्थे" की मैं "पाञ्चजन्यं" का नाद प्रिये । आपको पता है हमारे सनातन या वैदिक धर्म के देवी देवताओं के पास एक विशेष वाद्ययंत्र और नृत्य कला की निधि वर्णित की गई है शिव तांडव करते है तो क
Shaarang Deepak
Deepak Kanoujia
प्रेम ! कृष्ण के पाञ्चजन्य शंख सा... प्रेम ! कृष्ण की बांसुरी सा... (अनुशीर्षक पढ़ें...)— % & प्रेम ! एक शंखनाद है... कृष्ण के पाञ्चजन्य शंख के नाद सा, जो खींच लाता है अर्जुन जैसे लड़ाकों को भी प्रेम के निकट प्रेम रत सांसरिक संत बने र
Chanchal Jaiswal
ना जाने कितनी शालाएँ ना जाने कितने सभागार जाग्रत वाणी थी तूर्य हुई हुई कभी तूणीर बाण हुआ कभी गाण्डीव प्रखर पाञ्चजन्य का नाद शिखर। पुलकित मेधा सौरभ भर-भर फड़कता शौर्य साहसी भुजदल। केशर सा जगमग भाल भानु उत्तुंग हिमालय सा सीना हरियाला हृदय भावभीना कण्ठ-कण्ठ जयघोष विपुल स्पंदन-स्पंदन राष्ट्रवन्दन। गौरवशाली इतिहास प्रवर प्रेरित होते जनगण सुनकर नन्हें-नन्हें से बाल नवल विकसेगा इनमें भारत कल। (शेष कविता caption में...) ना जाने कितनी शालाएँ ना जाने कितने सभागार जाग्रत वाणी वो तूर्य हुई हुई कभी तूणीर बाण हुआ कभी गाण्डीव प्रखर पाञ्चजन्य का नाद शिखर। पुलकित मे
Bhavana kmishra
आप सभी को विजय दिवस की शुभकामनाएं.. मै केशव का पाञ्चजन्य हूँ गहन मौन मे खोया हूं, उन बेटो की याद कहानी लिखते-लिखते रोया हूं जिन माथे की कंकुम बिंदी वापस लौट नहीं पाई चुटकी, झुमके पायल ले गई कुर्वानी की अमराई कुछ बहनों की राखी जल गई है बर्फीली घाटी में वेदी के गठबंघन मिल गये हैं सीमा की माटी में पर्वत पर कितने सिंदूरी सपने दफन हुए होंगे बीस बसंतों के मधुमासी जीवनहरण हुए होंगे टूटी चूडी, धुला महावर, रूठा कंगन हाथों का कोई मोल नहीं दे सकता बासंती जज्बातों का जो पहले-पहले चुम्बन के बादलाम पर चला गया नई दुल्हन की सेज छोडकर युद्ध काम पर चला गया उसको भी मीठी नीदों की करवट याद रही होगी खुशबू में डूबी यादों की सलवट याद रही होगी उन आखों की दो बूंदों से सातों सागर हारे हैं जब मेंहदी वाले हाथों ने मंगलसूत्र उतारे हैं गीली मेंहदी रोई होगी छुप के घर के कोने में ताजा काजल छूटा होगा चुपके चुपके रोने में जब बेटे की अर्थी आई होगी सूने आंगन में.. शायद दूध उतर आया हो बूढी मां के दामन में वो विधवा पूरी दुनिया का बोझा सर ले सकती है, जो अपने पती की अर्थी को भी कंधा दे सकती है मै ऐसी हर देवी के चरणो मे शीश झुकाता हूं, इसिलिये मे कविता को हथियार बना कर गाता हूं जो सैनिक सीमा रेखा पर ध्रुव तारा बन जाता है, उस कुर्बानी के दीपक से सूरज भी शरमाता है गरम दहानो पर तोपो के जो सीने आ जाते है, उनकी गाथा लिखने को अम्बर छोटे पड जाते है उनके लिये हिमालय कंधा देने को झुक जाता है कुछ पल को सागर की लहरो का गर्जन रुक जाता है उस सैनिक के शव का दर्शन तीरथ जैसा होता है, चित्र शहीदो का मंदिर की मूरत जैसा होता है जिन बेटो ने पर्वत काटे है अपने नाखूनो से, उनकी कोई मांग नही है दिल्ली के कानूनो से सेना मर-मर कर पाती है, दिल्ली सब खो देती है….. और शहीदों के लौहू को, स्याही से धो देती है…… मैं इस कायर राजनीति से बचपन से घबराता हूँ….. इसीलिए मैं कविता को हथियार बनाकर गाता हूँ।। # हरिओम पंवार जी (कवि) ©Bhavana kmishra #कारगिल विजय दिवस आप सभी को विजय दिवस की शुभकामनाएं.. मै केशव का पाञ्चजन्य हूँ गहन मौन मे खोया हूं, उन बेटो की याद कहानी लिखते-लिखते रोया