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भरत सिंह
मैं जब भी किताब लिखूंगा तो एक बात जरूर लिखूंगा की *प्रेम* अपनी *पराकाष्ठा* पर तब तक रहता है जब तक इजहार न हो, हम जितने वेग से एक-दूसरे के नजदीक आते हैं उतने वेग से दूर नहीं जा सकते, हमें मानसिक रूप से दूर जाने में जमाना लग सकता है हम सहमति के साथ खूबसूरत मोड़ पर रिश्ता खत्म नहीं कर सकते हैं, एक मुकम्मल इश्क को खत्म करने के लिए नफरत की पर्याप्त मात्रा चाहिए ही होगी मुझे अच्छे से यकीन है अगर तुम्हारे बच्चे हिंदी का होमवर्क करते वक्त तुमसे *नफरत का पर्यायवाची* पूछेंगे तो तुम्हें मेरा ख्याल जरूर आएगा @देवेन्द्र दांगी
Jagdeesh Dangi
अपने अगर अपने नही हुए तो फिर उन अपनो के लिए लड़ना बेवखूफी है 💯 ©Jagdeesh Dangi दांगी एक आवाज़ सच की और #selflove
Suraj Dangi
मुस्कराया कीजिए रोने से दर्द और हरे हो जाया करते हैं #सूरज दांगी जाट
Piku Thakur
तुम मांग कर तो देखो सच्चे दिल से, वो तुम्हारी दुनिया ना बदल दे तो कहना! तुम मांग कर तो देखो, दिल की आवाज अभिषेक दांगी ठाकुर A@isha_rana Shikha Verma दिल की आवाज अभिषेक दांगी ठाकुर
Om
में तुम्हें ही खोज रहा हूं दिन रात, मगर तुम मिले ही नहीं हो इस जन्नत में, ©Om ओम दांगी आशय #togetherforever
J P Lodhi.
समाज की कठपुतली सत्य में समाज की कठपुतली है नारी, समाज ने बांधे रूढ़ियों के बंधन भारी। कभी रिश्तों तो कभी समाज ने लूटा है, लगता नारी से तो भगवान भी रूठा है। सोते जागते नचाते रहते उसे बंधन सारे, दुख की दास्तां कहते बहते अश्क खारें। जकड़ा उसे अंधविश्वास की बेड़ियों ने, हरपल नोचा उसको इंसानी भेड़ियों ने। बाजारों में बेच रहे नारी को कोडियों में, बिना मर्जी बांध रहे बेमेल जोड़ियों में। रहती आई , वह हमेशा शिक्षा से वंचित, तबभी करती आई संस्कारों को संचित। सहती आ रही जुल्म सितम पीढ़ियों से, गिरती रही वह ऊपर चड़ती सीढ़ियों से। नाच रही वह सदा नाच कठपुतलियों के, प्रथाओं के धागों से जकड़ी उंगलियों से। JP lodhi #समाज की कठपुतली