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Arjun kahar

मेरे स्कूल का वो पहला दिन !! तुम्हारा मख्खी🧚‍♀️ की तरह मेरे पास भिनभिनाना 🤣 और मेरा तुम्हें देख कर चिढ़ना !! उफ्फ! वो तुम्हारा जबरदस्ती मुझस #कविता #Schoollife

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मेरे स्कूल  का वो पहला दिन !!
तुम्हारा मख्खी🧚‍♀️ की तरह मेरे पास भिनभिनाना 🤣
और मेरा तुम्हें देख कर चिढ़ना !!
उफ्फ! 
वो तुम्हारा जबरदस्ती मुझसे बातें करने के बहाने खोजना और
 मेरा सब बहानो पर पानी फेरना 🤣
सब कुछ कितना जाना -अनजाना सा था ।। 
वो दौर आज भी याद है, वो यादें आज भी ज़िंदा हैं ।। 
तुम मेरी यादों का एक अहम हिस्सा हो ।।
Thirteen! 🌹❤️😊

©Arjun kahar मेरे स्कूल  का वो पहला दिन !!
तुम्हारा मख्खी🧚‍♀️ की तरह मेरे पास भिनभिनाना 🤣
और मेरा तुम्हें देख कर चिढ़ना !!
उफ्फ! वो तुम्हारा जबरदस्ती मुझस

babli

वह अकेली थी उस दिन जब उसे परहेज था शब्दों से वह अकेली हैं आज भी जब शब्द भिनभिना रहें हैं

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वह अकेली थी 
उस दिन 
जब उसे परहेज था 
शब्दों से 

वह अकेली हैं 
आज भी 
जब शब्द भिनभिना रहें हैं

yogesh atmaram ambawale

ताई काय झाले #collabratingwithyqtaai#withcollabrating yourquoteandmineyqtaaimarathiquotesYourQuoteTaaiमराठीलेखणी आज दिवसभरात मी एकही कवि

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ताई काय झाले..

आज दिवसभरात मी एकही कविता नाही लिहिली,
कारण विषय देण्या YQ मंचावरी ताई च नाही आली.
सकाळी वाटलं विसरली असेल,जाऊ दे,
संध्याकाळी नक्की भेटेल.
पण आता सांज ही संपाया आली,
तरी ताई मात्र अजून नाही आली.
काय झाले असेल ? 
विचारांनी डोके नुसते भिनभिनाया लागले,
काय करावे आपण,
वही पेन ही आता एकमेकांना विचारू लागले. ताई काय झाले
#collabratingwithyqtaai#withcollabrating yourquoteandmine#yqtaai#marathiquotes#YourQuoteTaai#मराठीलेखणी
आज दिवसभरात मी एकही कवि

Poonam Suyal

ये कैसा गर्मी का मौसम है भाई, पसीने से हैं तरबतर लू के थपेड़ों के साथ-साथ, मच्छरों की वज़ह से भी जान पर बन आई उनको भी दावत का, सुनहरी मौक #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #kkकाव्यमिलन #कोराकाग़ज़काव्यमिलन #काव्यमिलन_3

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ये कैसा गर्मी का मौसम है भाई,
पसीने से हैं तरबतर 
लू के थपेड़ों के साथ-साथ,
मच्छरों की वज़ह से भी जान पर बन आई 

उनको भी दावत का,
सुनहरी मौका मिलता है यही 
खून चूसने से पहले,
कानों में गीत भी गुनगुनाते हैं सभी 

होते ही शाम,
सारे भिनभिनाने लगते हैं आस - पास 
उनको भगाने के सभी उपाय,
हो जाते हैं बेकार 

अपने वजन ज़्यादा होने का,
हमें आज फ़ायदा नज़र आया 
उड़ा कर ले जाना चाहते थे हमें मच्छर,
पर कोई ना हमें उठा पाया  ये कैसा गर्मी का मौसम है भाई,
पसीने से हैं तरबतर 
लू के थपेड़ों के साथ-साथ,
मच्छरों की वज़ह से भी जान पर बन आई 

उनको भी दावत का,
सुनहरी मौक

Prabhjeet Singh Param

मैंने देखा है अक्सर, उस राह से गुजरते हुए, गरीबी के राक्षस को, गरीबों को निगलते हुए। कचरे के ढेर पर भिनभिनाती हुईं वो मक्खियाँ, उन्ही के बी #Poetry

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मैंने देखा है अक्सर, उस राह से गुजरते हुए,
गरीबी के राक्षस को, गरीबों को निगलते हुए।

कचरे के ढेर पर भिनभिनाती हुईं वो मक्खियाँ,
उन्ही के बी

Prabhjeet Singh Param

मैंने देखा है अक्सर, उस राह से गुजरते हुए, गरीबी के राक्षस को, गरीबों को निगलते हुए। कचरे के ढेर पर भिनभिनाती हुईं वो मक्खियाँ, उन्ही के बी #Poetry

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मैंने देखा है अक्सर, उस राह से गुजरते हुए,
गरीबी के राक्षस को, गरीबों को निगलते हुए।

कचरे के ढेर पर भिनभिनाती हुईं वो मक्खियाँ,
उन्ही के बी
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