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Aditya Agnihotri
राहुल राज मौर्या
"इस कौम की आधी ताकत लड़कियों की शादी करने में जा रही है।" ~~परसाई~~ #परसाई की कलम से #nojotohindi #nojoto
Gautam Yadav
"ठिठुरता हुआ गणतंत्र" जनता– नेताजी यह समाजवाद कब आएगी? नेताजी –समाजवाद कोई मामूली चीज थोड़े ही हैं, जो यूं ही आ जाएगा। बड़ी चीज के आने में देर होती ही है। इसके लिए धैर्य रखना पड़ेगा। 👉समाजवाद प्रतिवर्ष दिल्ली से चलता है लेकिन राज्यों की राजधानी पहुंचते-पहुंचते उसका एक चौथाई भाग हड़प हो जाता है। फिर जिला मुख्यालय तक आते-आते वह आधा हो जाता है। प्रखंड तक आते-आते वह चौथाई भर बच जाता है। फिर बड़ा बाबू और उसके बाद छोटा बाबू इत्यादि की टेबल ओं तक पहुंचते-पहुंचते, घूमते– घामते इतना व्यस्त रह जाता है कि पुनः दूसरा गणतंत्र दिवस आ जाता है। और समाजवाद जहां का तहां रह जाता है। 😰😰😰 "ठिठुरता हुआ गणतंत्र" हिंदी साहित्य के विख्यात निबंधकार "हरिशंकर परसाई जी के द्वारा"
K L MAHOBIA
हाय, मेरी पत्नी बनती कितनी कैसी भोली भाली है। लूटने वाली कोई और नहीं ,अपनी ही घरवाली है। आदमी को देखो कैसा भाग रहा लिखते है अरूणाई में पॉकेट को खाली करती सदा से पत्नी अपनी आली है। रातों दिन मारा मारा फिरता जीवन का रस सूख गया। रोज कमाया पैसा मेरा छीना पत्नी चंडी काली है। हाय, मेरी पत्नी बनती कितनी कैसी भोली भाली है। लूटने वाली कोई और नहीं ,अपनी ही घरवाली है। जीवन में शादी करना भारी मेरी भूल सुनो भाई जी। मेरा जीवन मुश्किल में पड़ता पत्नी महंगी पा ली है। ब्यूटी पार्लर, क्रीम पाउडर आई लाइनर कितने नखरे। साड़ी गहने कपड़े हर महीने में पैसा अब खाली है। हाय, मेरी पत्नी बनती कितनी कैसी भोली भाली है। लूटने वाली कोई और नहीं ,अपनी ही घरवाली है। किटी पार्टी नाइट पार्टी पत्नी कितना फिर ढोंग रचाती। थोड़ा सा पैसा कम होता सुनता अक्सर देती गाली है। किस मोह जाल में उलझाया मुझे बचा लो कोई साथी। गिर गया बेशर्म पैसा भीख मांग रहा छुपाता जाली है। हाय, मेरी पत्नी बनती कितनी कैसी भोली भाली है। लूटने वाली कोई और नहीं , अपनी ही घरवाली है। के एल महोबिया ✍️ ©K L MAHOBIA #कविता हास्य व्यंग्य के एल महोबिया
कमलेश
आसान मंज़िल पहले दोस्तों के साथ घूमने जाने के लिए घर में झूठ बोलते थे अब गर्लफ्रेंड के साथ घूमने जाने के लिए झूठ बोलते हैं ©expresslove हास्य व्यंग्य #shyari #व्यंग्य #Love
Rãjpøôt BãÑä Ãkâsh
हमें क्या फर्क पड़ता है, हमें क्या फर्क पड़ता है, अगर आज कोई ठोकर खाता हैं, कोई गड्डे में गिर जाता हैं, अरे भाई इसी से तो ही वोट बैंक बनता हैंI हमें क्या फर्क पड़ता है, अगर दो माले की बिल्डिंग 20 माले का होता हैं, चाहे उस बिल्डिंग में दबकर लोग मरता हैं, पर भाई पैसा तो उधर से ही मिलता हैंI हमें क्या फर्क पड़ता हैं, कोई भूखा मरता हैं, या कचरा प्लास्टिक खाता हैं, यार नेता है हमारा पेट तो भर जाता हैंI Writer Akash✍️ #व्यंग्य