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Veena Choubey
वेद शास्त्रों में पढ़ लो मेरी अजर अमर गाथा। सुन्दर सृष्टि संसार की रचना यही नारी की परिभाषा । कोमल हृदय मन अविरल आँखों में अश्रु समाए हूँ । प्रेमवास हृदय में चंचल मुक्त कण्ठ आजमाये हूँ । मौन हुँ कमजोर नहीं मैं बस आँखों में सपने हैं और कुछ आशा। वेद शास्त्रों में पढ़ लो मेरी अजर अमर गाथा। नारी रूपअम्बिका दुर्गवासिनी वर्दायिनी शक्ति का कोई पार न पावें बन जाए चंडालनी प्रेम प्यार की मूरत है और ममता सी अभिलाषा । सुन्दर सृष्टि संसार की रचना नारी की परिभाषा माँ बेटी,बहन,पत्नी हर रूप में बसती नारी छवि निराली देख हृदय विशाल सा इसका देवों ने नारी की रचना कर डाली। तीन लोकों के नर नारायण ने चरणों में इनके टेका माथा। वेद शास्त्रों में पढ़ लो अजर अमर मेरी गाथा। नारी शक्ति पर कविता
CalmKrishna
रात्रि सौंदर्य... #कविता #रात्रि #सौंदर्य #poem #nojotohindi
mau jha
दिल में उसके एक तमन्ना बाकी है अभी कहानी का एक पन्ना बाकी है वो लक्ष्मी है तुम भगवान तो बनो वो सीता है, तुम राम तो बनो, हर जुल्म पर जो बोल उठे ऐसी आवाम तो बनो,किसी की चीख किसी की कराह लिखूँ एक मुस्कुराते हुए चेहरे की सिसकती हुई आह लिखूँ क्योंकि ये सब कुछ उसके अंदर है वो औरत नहीं, समंदर है. ©mau jha नारी कविता
mau jha
पाई-पाई जोड़कर वो तुम्हारे घर को बनाती है हाथ उठाते उसपर तुमको शर्म नहीं आती है,भूख उसे भी है पर खाना उसने खाया नहीं पता लगाओ देखो शायद पति दफ्तर से आया नहीं ,हर दिन की देरी उसके लिए समस्या भारी है इसी समर्पण सहित तपस्या उसकी जारी है भाग्य मनाओ फिर भी तुमको छोड़ वो नहीं जाती है हाथ उठाते जिसपर तुमको शर्म नहीं आती हऐ ©mau jha नारी कविता
Geeta Sharma pranay
मै नारी अबला ! कैसे अपने आप को कह दूँ ? बस! थोड़ा-सा सुख मैने क्या चाह लिया, सब के लिए मै कामचोर ही हो गई, ? मै नारी अबला! हर क्षेत्र में मैं आत्म-निर्भर बनी, अपनी मेहनत से, कुछ देर थक कर क्या बैठी, मै तो सब के लिए आलसी ही हो गई? मै नारी अबला ! हर क्षेत्र में, कभी माँ, तो कभी पत्नी बनकर मुझसे ही बार-बार अग्नि-परीक्षा की लालसा होने लगी, बस! क्या यही जीवन हैं मेरा ? मै नारी अबला! कैसे समाज के ठेकेदारों ने मुझ पर आरोप लगा दिया? मैरे द्वारा किया गया त्याग-तप को ही गलत ठहरा दिया ? क्या मै बस भोग की वस्तु हूँ? मै नारी अबला! कैसे मैं खामोश हो जाऊ,, " मै शर्मो-हय्या की प्रति-मुर्ति क्या बन बैठी, मै तो स्वयं के लिए निर्बल हो गई? मै नारी अबला? कैसे मै सदियों से लगा कलंक अभी भी अपने मस्तक पर धारण करूँ ? मैने आवाज़ क्या उठाई , तो सारे पुरुषत्व को ठेस लग गई ? हाँ "हूँ मै अबला " बस! अपनी ममता के आगे, और अपने दाम्पत्य जीवन व घर-परीवार के आगे, तभी तो मैं माँ और पत्नी बनकर सारी बुराई का ठीकरा अपने ऊपर ले लेती हूँ | मैं नारी अबला! कैसे अपने आप को कह दूँ ? गीता शर्मा 'प्रणय' 30.05.2020 मै नारी अबला #कविता