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Shadow9

जरूरी सूचना // अगर किसी वैक्ति के हड्डी घुटना पैर गर्दन में दर्द हो अथवा मोच दर्द कमर दर्द ज्यादा चल नही पाते थकान महसूस होना आदि कोई भी परे #Comedy

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Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 25 हनुमानजी का विशाल रूप और गर्जना हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास। अट्टहास करि गर्ज कपि बढ़ि लाग अकास॥25॥ उस समय भ #समाज

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🙏सुन्दरकांड 🙏
दोहा – 25
हनुमानजी का विशाल रूप और गर्जना
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्ज कपि बढ़ि लाग अकास॥25॥
उस समय भगवानकी प्रेरणा से उनचासो पवन बहने लगे और
हनुमानजी ने अपना स्वरूप ऐसा बढ़ाया कि वह आकाश में जा लगा फिर अट्टहास करके बड़े जोरसे गरजे ॥25॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

लंका दहन का प्रसंग
हनुमानजी एक महल से दूसरे महल पर जाते है
देह बिसाल परम हरुआई।
मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई॥
जरइ नगर भा लोग बिहाला।
झपट लपट बहु कोटि कराला॥1॥
यद्यपि हनुमानजी का शरीर बहुत बड़ा था परंतु शरीर में बड़ी फुर्ती थी,जिससे वह एक घर से दूसरे घर पर चढ़ते चले जाते थे जिससे तमाम नगर जल गया।लोग सब बेहाल हो गये और झपट कर बहुत से विकराल कोट पर चढ़ गये॥

राक्षस लोग समझ जाते है की हनुमानजी देवता का रूप है
तात मातु हा सुनिअ पुकारा।
एहि अवसर को हमहि उबारा॥
हम जो कहा यह कपि नहिं होई।
बानर रूप धरें सुर कोई॥2॥
और सब लोग पुकारने लगे कि हे तात! हे माता!अब इस समय में हमें कौन बचाएगा॥हमने जो कहा था कि यह वानर नहीं है,कोई देवता वानर का रूप धरकर आया है। सो देख लीजिये यह बात ऐसी ही है॥

लंका नगरी जल जाती है
साधु अवग्या कर फलु ऐसा।
जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥
जारा नगरु निमिष एक माहीं।
एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥3॥
और यह नगर जो अनाथ के नगर के समान जला है सो तो साधु पुरुषोंका अपमान करनें का फल ऐसा ही हुआ करता है॥तुलसीदासजी कहते हैं कि
हनुमानजी ने एक क्षण भर में तमाम नगर को जला दिया.केवल एक बिभीषण के घर को नहीं जलाया॥

सिर्फ विभीषण का घर क्यों नहीं जलता है?
ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा।
जरा न सो तेहि कारन गिरिजा॥
उलटि पलटि लंका सब जारी।
कूदि परा पुनि सिंधु मझारी॥4॥
महादेवजी कहते है कि हे पार्वती!
जिन्होने अग्नि को बनाया है,उस परमेश्वर का विभीषण भक्त था,हनुमान् जी उन्ही के दूत है,इस कारण से उसका घर नहीं जला॥हनुमानजी ने उलट पलट कर (एक ओर से दूसरी ओर तक)तमाम लंका को जला कर फिर समुद्र के अंदर कूद पडे॥

आगे मंगलवार को ...,

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 981 से 992 नाम  
981 यज्ञान्तकृत् यज्ञ के फल की प्राप्ति कराने वाले हैं
982 यज्ञगुह्यम् यज्ञ द्वारा प्राप्त होने वाले
983 अन्नम् भूतों से खाये जाते हैं
984 अन्नादः अन्न को खाने वाले हैं
985 आत्मयोनिः आत्मा ही योनि है इसलिए वे आत्मयोनि है
986 स्वयंजातः निमित्त कारण भी वही हैं
987 वैखानः जिन्होंने वराह रूप धारण करके पृथ्वी को खोदा था
988 सामगायनः सामगान करने वाले है
989 देवकीनन्दनः देवकी के पुत्र
990 स्रष्टा सम्पूर्ण लोकों के रचयिता हैं
991 क्षितीशः क्षिति अर्थात पृथ्वी के ईश (स्वामी) हैं
992 पापनाशनः पापों का नाश करने वाले हैं
🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏
दोहा – 25
हनुमानजी का विशाल रूप और गर्जना
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्ज कपि बढ़ि लाग अकास॥25॥
उस समय भ
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