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Ansh Rajora
किसी को ग़ज़ल तुम बनाकर तो देखो मिलेगी ख़ुशी दिल लगाकर तो देखो तुम्हारा हुनर फिर ज़माना देखेगा ज़मीं से फलक को हिलाकर तो देखो भगत सिंह तुम्ही हो, हो अशफ़ाक़ तुम ही दिलों में शमा इक जलाकर तो देखो अभी भी तरसता है बस प्यार को वो पुराना शजर गांव जाकर तो देखो है मुमकिन कि मरकर भी जी जाऊं फिर मैं मेरी माँ का आँचल बिछाकर तो देखो हाँ भरती है सांसे ये मुर्दों की बस्ती ग़ज़ल की ज़मीं पे भी आकर तो देखो ये मक़्ता अधूरा है उस बिन फकीरा तो लो नाम सानी बिठाकर तो देखो #अशफ़ाक़ - अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ(freedom fighter) #सानी - second line of a couplet #मक़्ता - last couplet of a ghazal #fakeera #ghazalgo_fakeera #
Vaibhav Shrivastav
शहीदो की शहादत को भुलाया जा नही सकता, हैं इनका कर्ज इतना की चुकाया जा नही सकता।। ..... 🇮🇳🇮🇳🇮🇳.. 🙏 ©Vaibhav Shrivastav शहीद.....अशफाक उल्ला खाँ..🇮🇳🙏
Kishan Gupta
किचन की रानी, तू पसीने से लतपत, पंखा बना, मुझे घुमाये जा रही हो,, चाय कब तक यूँ ही, फीकी पिलाओगी, इलायची के इंतजार में, अदरक पीसे जा रही हो। ~किशन गुप्ता #कविता #कविता #
Awanish Singh
दीप हूँ जलता रहूँगा । मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।। पार जाऊँगा मेरा साहस, कभी हारा नहीं है। जो मिटा अस्तित्व दे, ऐसी कोई धारा नहीं है ।। कौन रोकेगा स्वयं तूफान, थककर रुक गये हैं । हर लहर मेरा किनारा, ध्येय तक बढ़ता रहूँगा।। दीप हूँ जलता रहूँगा । मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।। तोड़ दी अवरोध की सारी, शिलाएँ एक क्षण में । मैं धरा का प्यार मुझको, स्नेह देते सब डगर में।। शीत वर्षा और आतप कर, न पाये क्षीण गति को। बिजलियों की कौंध में भी, पंथ गढ़ता ही रहूँगा।। दीप हूँ जलता रहूँगा । मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।। ©Awanish Singh (AK Sir) #कविता #कविता
Balu Khaire
भीगी हुई आँखोका मंजर न मिलेगा, घर छोडकर मत जाओ कही घर ना मिलेगा। फिर याद बहुत आएगी जुल्फो की शाम, जब धूप मे साया कोई सर न मिलेगा। आंसू को काभि ओस का कतरा न समझना, ऐसा तुम्हे चाहत का समुदर ना मिलेगा। इस ख्वाब के माहोल मे बे-ख्वाब है आँखे, जब निंद बहुत आएगी बिस्तर ना मिलेगा। ये सोचलो आखरी साया है मोहब्बत, इस दरसे उठोगे तो कोई दर ना मिलेगा ©Balu Khaire कविता कविता #lonely
vijaysinh
writing quotes in hindi मन पीढ़ा से बैचेन हो जाता है, तब जा के क़लम कागज स्याही रोता है। क़लम खुद का नहीं,औरों का दुख रोता हैं। हर पन्ने पर क्रांति की बीज बोता है। दुनिया में सब से ज्यादा दुखी क़लम हैं, हर वक़्त खून के आंसू रोता है, खून रूपांतर चंद लकीरों में होता है। अब लोक उसे अल्फ़ाज़ समजते हैं पर वह अल्फ़ाज़ नहीं लब होते हैं जो क़लम के दिलसे निकले होते है। #कविता #क़लम कविता