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Ajay K. C. Mungeri

तहरी ग़ज़ल #Drops #शायरी

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बराए मशविरा.....
तहरी मुशायरा क्रमांक ५०
आपकी याद आती रही रात भर 
चश्मे नम मुस्कुराती रही रात भर
              ~मख़्दूम मोहिउद्दीन
२१२___२१२___२१२___२१२
चाँद सी/चमचमा/ती रही /रात भर
दिल को मे/रे लुभाती रही/रात भर//१

दिलकी धड़/कन जगा/ती रही /रात भर
बेरूख़ी /तो सुला/ती रही /रात भर //२

जीने की /आरज़ू /कोई भी/है कहाँ 
कल जुदा/ई मिटा/ती रही /रात भर //३

मिलने की /हसरतें /दूर जा/ती रही
पास अप/ने बुला/ती रही /रात भर//४

जिन्दगी /जिन्दगी /सी रही /रात भर
कल हवा /खुशबू ला /ती रही /रात भर//५

जितने थे/तुमसे पह/ले भुला/ता रहा
सामने/मुस्कुरा/ती रही/रात भर//६

                                    __Ajay K. C. Mungeri
                                            ०२/०५/२०२१

©Ajay K. C. Mungeri तहरी ग़ज़ल
#Drops

Pnkj Dixit

ग़ज़ल कर रही आराम । ग़ज़ल को नहीं विराम ।। मुखड़ा कह रहा ग़ज़ल । ग़ज़ल बनी है अविराम ।। २८/०६/२०१९ 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा'बेधड़क'

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#DearZindagi ग़ज़ल  कर रही आराम ।
ग़ज़ल को  नहीं विराम ।।
मुखड़ा कह रहा ग़ज़ल ।
ग़ज़ल बनी है अविराम ।।

२८/०६/२०१९
🌷👰💓💝
...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' ग़ज़ल  कर रही आराम ।
ग़ज़ल को  नहीं विराम ।।
मुखड़ा कह रहा ग़ज़ल ।
ग़ज़ल बनी है अविराम ।।

२८/०६/२०१९
🌷👰💓💝
...✍ कमल शर्मा'बेधड़क'

Ali sir (A+A)

ग़ज़ल

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Veena Khandelwal

ग़ज़ल

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#ग़ज़ल

मुहब्बत जब करें आँखे , इबारत ही नहीं होती।
दिखावे की ज़ताने की,लियाकत ही नहीं होती।

सफीने दिल लिखी मेरे ,इबारत तुम ज़रा पढ़ लो।
उसे इज़हार करने की  , ज़रूरत ही नहीं होती।

नज़ाकत है अदाओं में,नज़ारत से भरा चेहरा।
इशारों से अगर छेड़ूं  , शरारत ही नहीं होती  ।

इबादत इश्क को समझे,शिकायत हो ना इक दूजे।
मुहब्बत में वहां यारों  , सियासत ही नहीं होती।

जहाँ दो प्यार करते दिल,दो तन  इक जान हो जाये 
खुदा जाने बड़ी इससे , इनायत ही नहीं होती।

करी माँ बाप की सेवा, खुशी दामन भरे उनके।
बड़ी इससे कभी कोई  , इबादत ही नहीं होती।

हया आँखों में थोड़ी हो,जरा हो चाल गजनी सी।
लबों मुस्कान हो ऐसी नज़ाकत ही नहीं होती।

मुहब्बत पास इतनी हो,मगर कुछ बंदिशें भी हो।
सम्हाले किस तरह दिल को,हिफ़ाज़त ही नहीं होती।

बिखर जाये मुहब्बत जब,बसा घर भी बिखर जाये।
तमन्ना हो ना जीने की ,कयामत ही नहीं होती।


नज़ारत=ताजगी
लियाकत=योग्यता,शालिनता ग़ज़ल

के_मीनू_तोष

............. #ग़ज़ल

Azhar Ali Imroz

ग़ज़ल

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ग़ज़ल
आँखे क्यों नम है
सब है तो हम है
हम में भी ग़म है
दुनिया क्यों‌ कम है 
धरती   पे  रन  है 
पीने  को   रम  है
जाती  तेरी  जो 
सब के सब सम है
छाती  में  ले कर 
चलते क्यों बम है
 तेरी जाँ ,जाँ  है
   तूँहीं   रूपम  है
         तुझ में भी क्या है?
       चींटी का दम  है
        जग में परिवर्तन   
       तूँ कैसा लम है
        जो जल,जम जाए 
      तूँ वैसा जम है 
       फिर इस धरती पे
         क्यों  होता धम है

    अज़हर अली इमरोज़
मतलब
रन ----युद्ध/युद्ध का मैदान
रम---विलायती शराब
रूपम___सौंदर्य/सुन्दर /गुनकारी ग़ज़ल
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