Nojoto: Largest Storytelling Platform

New कुठार Quotes, Status, Photo, Video

Find the Latest Status about कुठार from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, कुठार.

Related Stories

    PopularLatestVideo

Ghumnam Gautam

किसी के दिन नहीं चलते, किसी पे रात भारी  है
नवोढ़ा के लिए प्रियतम बिना बरसात भारी है
बुलाना वायदा करके मिलन का, और नहीं आना
कुँआरे उर पे सचमुच ये कुठाराघात भारी है

©Ghumnam Gautam #blindinglights #कुठाराघात 
#वायदा #मिलन 
#ghumnamgautam

Vibhor VashishthaVs

Meri Diary Vs❤❤ “अज्ञानी होना ग़लत नही है, अज्ञानी बने रहना ग़लत है “ - स्वामी दयानंद सरस्वती समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों पर #yourquote #yqdidi #yqquotes #yourquotedidi #vs❤❤ #maharshi #swamidayanandsaraswati

read more
Meri Diary #Vs❤❤
“अज्ञानी होना ग़लत नही है, 
अज्ञानी बने रहना ग़लत है “
- स्वामी दयानंद सरस्वती
समाज में व्याप्त कुरीतियों और 
अंधविश्वासों पर कुठाराघात करने 
वाले महान संत, आर्य समाज के 
संस्थापक, प्रगतिशील चिंतक, 
महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती 
जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि।
आपके विचार समतामूलक समाज 
के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करते हैं...। 
✍️Vibhor vashishtha vs— % & Meri Diary #Vs❤❤
“अज्ञानी होना ग़लत नही है, अज्ञानी बने रहना ग़लत है “
- स्वामी दयानंद सरस्वती
समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों पर

अनुज

घनघोर अंधेरी रात और स्वयं से मुलाकात, अक्सर दिन के शोरगुल से थका हारा, बिछौने पर शांत मन से बात, प्रश्नों के उत्तर खंगालना, दायित्वों का नि #Poetry #Feeling #Hindi #poem

read more
घनघोर अंधेरी रात
और स्वयं से मुलाकात,
अक्सर दिन के शोरगुल से
थका हारा, बिछौने पर 
शांत मन से बात,
प्रश्नों के उत्तर खंगालना,
दायित्वों का निर्वाह और,
हल सवालों के निकालना,
अपेक्षाओं का कुठाराघात,
जैसे शूल सा आघात,
स्वयं के आकलन से,
मन मे उठती टींस,
एक सुलझे मुश्किलों से,
बाक़ी और पच्चीस,
मां के टूटे चश्मे और,
बच्चों की स्कूली फीस,
घड़ी की सुइयों पर,
मेरा नहीं था इतना जोर,
बिन कहे मचा रही थी,
हर सेकेण्ड पर शोर,
तीव्र हो चला था ह्रदय,
जैसे टूटती सांस की डोर,
रूकती नज़र समय पर अकस्मात,
सोंच में डूबा रहा,
और ज्यों के त्यों हालात,
घनघोर अंधेरी रात
और स्वयं से मुलाकात,

©अनुज घनघोर अंधेरी रात
और स्वयं से मुलाकात,
अक्सर दिन के शोरगुल से
थका हारा, बिछौने पर 
शांत मन से बात,
प्रश्नों के उत्तर खंगालना,
दायित्वों का नि

Vibhor VashishthaVs

Meri Diary Vs❤❤ आधुनिक हिंदी के महान साहित्यकार कायस्थ रत्न उपन्यास के सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र जी की पुण्यतिथि पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि...🙏🏵 #yourquote #yqbaba #yqdidi #yqquotes #yourquotebaba #yourquotedidi #vs❤❤ #premchandpoetryworld

read more
Meri Diary #Vs❤❤
आधुनिक हिंदी के महान साहित्यकार कायस्थ रत्न उपन्यास के सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र जी की पुण्यतिथि पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि...🙏🏵🙏🏵🙏🏵🙏🏵🙏🏵🙏
"सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल रहते हैं"
महान साहित्यकार, मानव मन के अद्भुत पारखी, उपन्यास सम्राट, अपनी रचनाओं के द्वारा समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों पर कुठाराघात करने वाले,हिन्दी साहित्य को यथार्थवादी रचनाएँ प्रदान करने वाले महानत लेखकों में शुमार मुंशी प्रेमचंद्र जी की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धेय नमन....🙏🏵🙏
आपकी रचनाधर्मिता सृजन कार्य में संलग्न असंख्य युवाओं की प्रेरणा है।
✍️Vibhor vashishtha Vs
     Meri Diary #Vs❤❤
आधुनिक हिंदी के महान साहित्यकार कायस्थ रत्न उपन्यास के सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र जी की पुण्यतिथि पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि...🙏🏵

Abhishek Rajhans

रावण... रावण… क्या मात्र एक शब्द है या एक व्यक्तितव जिसने छल से हरण किया था जिसने स्त्री के सतीत्व पर कुठाराघात किया था वो रावण..

read more
रावण...
क्या मात्र एक शब्द है
या एक व्यक्तितव 
जिसने छल से हरण किया था
जिसने स्त्री के सतीत्व पर कुठाराघात किया था
वो रावण..
कहाँ मरा है अभी तक
जितने दशहरा पुतला फूंका उसका
उतनी बार उठ खड़ा हुआ है
अपने सहस्त्र शरीर में प्राण भर कर
राम के वेश में
अभिशाप बनकर

रावण...
वास्तव में एक शब्द नहीं
एक व्यक्तित्व हीं है
जिसे धारण कर लिया है
आज के राम का स्वरुप
जो नेस्तनाबूद करना चाहता है
एक स्त्री के गौरव को
बालिका के रूप में सकुचाई सीता को.
बंद कमरे में सिसकती सीतायें
भेद नहीं पा रही लक्ष्मण रेखा को
अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
कैसे पुकारे राम को
जब रावण ही हो
राम के वेश में
                   --अभिषेक राजहंस रावण...
रावण…
क्या मात्र एक शब्द है
या एक व्यक्तितव
जिसने छल से हरण किया था
जिसने स्त्री के सतीत्व पर
कुठाराघात किया था
वो रावण..

yogesh atmaram ambawale

प्रिय मित्र आणि मैत्रिणीनों आज आपण अलंकाराचा तिसरा प्रकार बघणार आहोत. तो आहे अपन्हुती. ३) अपन्हुती:- (अपन्हुती म्हणजे लपविणे/ झाकणे) अपन्हु #Collab #YourQuoteAndMine #yqtaai #अपन्हुतीअलंकार

read more
नाही म्हणतो प्रेम,
तरी मनात तिचाच विचार येई,
न राहिलो जरी पास,
तरी हृदयास तिचाच भास होई. प्रिय मित्र आणि मैत्रिणीनों
आज आपण अलंकाराचा तिसरा प्रकार बघणार आहोत.
तो आहे अपन्हुती.

३) अपन्हुती:- (अपन्हुती म्हणजे लपविणे/ झाकणे) अपन्हु

Abhijit Agrahari

यात्री गण कृपया ध्यान दें एक मीटर दूरी से सामान ले...!" बीस सेकंड तक हाथों को सेनिटाइजर करतें रहे मेरी बात न माने तो मोबाइल की कालर ट्यून

read more
यात्री गण कृपया ध्यान दें
एक मीटर दूरी से सामान ले...!"

बीस सेकंड तक हाथों को 
सेनिटाइजर करतें रहे
मेरी बात न माने तो मोबाइल की 
कालर ट्यून सुनते रहे
मगर जत्था रवाना मत करो
दिल दिमाग कान से नेमत करो
लाकडाउन का पालन करे और सबको सम्मान दे
यात्री गण कृपया ध्यान दें एक....!"

कुछ दिनों खातिर एक दूसरे
से पहले नजरबंद हो
ताकि देश की जिंदादिली से
आबोहवा स्वच्छंद हो
संकल्प लो ज़रा इस अभिशाप से उभर जाए
भारत मां बाप भाई बहन के लिए घर जाए
देशहित प्रतिबद्ध है अब हम सभी अनुदान दे
यात्री गण कृपया ध्यान दें एक......!"

अदृश्य है बीमारियां,ईश्वर भी
मगर हमें विश्वास दिन-रात है
पुलिस डाक्टर नर्स है सुरक्षा कवच
तो इन पर क्यो कुठाराघात है
बिल्कुल समय का सत्य है कुचक्र है
नाज़ है जिंदगी जिंदादिली है फक्र है
ऐसा नहीं पुलिस आए तो झोला फेंककर स्थान दे
यात्री गण कृपया ध्यान दें एक...!'

यात्री गण कृपया ध्यान दें
एक मीटर दूरी से सामान ले.....!"
@_Abhijit agrahari यात्री गण कृपया ध्यान दें
एक मीटर दूरी से सामान ले...!"

बीस सेकंड तक हाथों को 
सेनिटाइजर करतें रहे
मेरी बात न माने तो मोबाइल की 
कालर ट्यून

Sarita Shreyasi

दो अलग-अलग प्रतिक्रियायें, घटना जबकि एक ही थी, रोजमर्रा के काम में, बात अप्रिय लग गयी किसीकी। एक चुप रही,कुछ सह गयी, जब सह न पायी, बह गयी। द #Hindi #yqbaba #yqdidi #reaction

read more
दो अलग-अलग प्रतिक्रियायें,घटना जबकि एक ही थी,
रोजमर्रा के काम में,बातअप्रिय लग गयी किसीकी।
एक चुप रही,कुछ सह गयी,जब सह न पायी, बह गयी।
दूजा सुन न पाया,कह दिया,
वह भी सह न पाया,तभी उबल कर बह गया।
एक ओर वेदना बही, दूजे ओर एक का क्रोध,
एक की थी प्रतिक्रिया,दूसरे ने किया प्रतिरोध ।
एक विवाद नहीं चाहती,अतः प्रतिवाद नहीं करती,
चुभते टुकड़े उठा कर, चुपचाप समेट लेती है । 
दूसरा समेट नहीं पाता,अपने अंदर का बिखराव,
शांत तभी हो पाता है,जब दे जाता औरों को घाव।
सहने वाला सक्षम है,सबल है,संवेदना स्व में सीमित रखता है,
जो लड़ता,स्वयं चोट खाता है,औरों को जख्मी करता है।
जो नहीं चीखता, हम उसे कमजोर कहते हैं,
आवाज ऊँची कर पाने को,अपना जोर समझते हैं।
वो बिना कहे कुछ सह पाती है,बिना आघात रह पाती है,
तुम एक बात भी सह नहीं पाते,प्रत्युत्तर में कुठाराघात करते हो।
फिर भी सहने वाले को ही निर्बल और स्वयं को सशक्त कहते हो,
जबकि तुम सुलझाने की नहीं,भिड़ने की ताकत रखते हो। दो अलग-अलग प्रतिक्रियायें,
घटना जबकि एक ही थी,
रोजमर्रा के काम में, बात
अप्रिय लग गयी किसीकी।
एक चुप रही,कुछ सह गयी,
जब सह न पायी, बह गयी।
द

Vikas Sharma Shivaaya'

श्री गणेश चालीसा जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल। विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥ अर्थ: हे सद्गुणों के सदन भगवान श्री गणेश आपकी जय #समाज

read more
श्री गणेश चालीसा

जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
अर्थ: हे सद्गुणों के सदन भगवान श्री गणेश आपकी जय हो, कवि भी आपको कृपालु बताते हैं। आप कष्टों का हरण कर सबका कल्याण करते हो, माता पार्वती के लाडले श्री गणेश जी महाराज आपकी जय हो।

 

           ॥चौपाई॥

 जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥
अर्थ: हे देवताओं के स्वामी, देवताओं के राजा, हर कार्य को शुभ व कल्याणकारी करने वाले भगवान श्री गणेश जी आपकी जय हो, जय हो, जय हो।

 
जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायका बुद्धि विधाता॥
अर्थ: घर-घर सुख प्रदान करने वाले हे हाथी से विशालकाय शरीर वाले गणेश भगवान आपकी जय हो। श्री गणेश आप समस्त विश्व के विनायक यानि विशिष्ट नेता हैं, आप ही बुद्धि के विधाता है बुद्धि देने वाले हैं।

 
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
अर्थ: हाथी के सूंड सा मुड़ा हुआ आपका नाक सुहावना है पवित्र है। आपके मस्तक पर तिलक रुपी तीन रेखाएं भी मन को भा जाती हैं अर्थात आकर्षक हैं।

 
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
अर्थ: आपकी छाती पर मणि मोतियां की माला है आपके शीष पर सोने का मुकुट है व आपकी आखें भी बड़ी बड़ी हैं।

 
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥
अर्थ: आपके हाथों में पुस्तक, कुठार और त्रिशूल हैं। आपको मोदक का भोग लगाया जाता है व सुगंधित फूल चढाए जाते हैं।

 
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥
अर्थ: पीले रंग के सुंदर वस्त्र आपके तन पर सज्जित हैं। आपकी चरण पादुकाएं भी इतनी आकर्षक हैं कि ऋषि मुनियों का मन भी उन्हें देखकर खुश हो जाता है।

 
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता। गौरी लालन विश्व-विख्याता॥
अर्थ: हे भगवान शिव के पुत्र व षडानन अर्थात कार्तिकेय के भ्राता आप धन्य हैं। माता पार्वती के पुत्र आपकी ख्याति समस्त जगत में फैली है।

 
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे। मुषक वाहन सोहत द्वारे॥
अर्थ: ऋद्धि-सिद्धि आपकी सेवा में रहती हैं व आपके द्वार पर आपका वाहन मूषक खड़ा रहता है।

 
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुची पावन मंगलकारी॥
अर्थ: हे प्रभु आपकी जन्मकथा को कहना व सुनना बहुत ही शुभ व मंगलकारी है।

 
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥
अर्थ: एक समय गिरिराज कुमारी यानि   माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए भारी तप किया।

 
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा॥
अर्थ: जब उनका तप व यज्ञ अच्छे से संपूर्ण हो गया तो ब्राह्मण के रुप में आप वहां उपस्थित हुए।

 
अतिथि जानी के गौरी सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥
अर्थ: आपको अतिथि मानकार माता पार्वती ने आपकी अनेक प्रकार से सेवा की।

 
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
अर्थ: जिससे प्रसन्न होकर आपने माता पार्वती को वर दिया।

 
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥
अर्थ: आपने कहा कि हे माता आपने पुत्र प्राप्ति के लिए जो तप किया है, उसके फलस्वरूप आपको बहुत ही बुद्धिमान बालक की प्राप्ति होगी और बिना गर्भ धारण किए इसी समय आपको पुत्र मिलेगा।

 
गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥
अर्थ: जो सभी देवताओं का नायक कहलाएगा, जो गुणों व ज्ञान का निर्धारण करने वाला होगा और समस्त जगत भगवान के प्रथम रुप में जिसकी पूजा करेगा।

अस कही अन्तर्धान रूप हवै। पालना पर बालक स्वरूप हवै॥
अर्थ: इतना कहकर आप अंतर्धान हो गए व पालने में बालक के स्वरुप में प्रकट हो गए।

 
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना॥
अर्थ: माता पार्वती के उठाते ही आपने रोना शुरु किया, माता पार्वती आपको गौर से देखती रही आपका मुख बहुत ही सुंदर था माता पार्वती में आपकी सूरत नहीं मिल रही थी।

 
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥
अर्थ: सभी मगन होकर खुशियां मनाने लगे नाचने गाने लगे। देवता भी आकाश से फूलों की वर्षा करने लगे।

 
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥
अर्थ: भगवान शंकर माता उमा दान करने लगी। देवता, ऋषि, मुनि सब आपके दर्शन करने के लिए आने लगे।

 
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा॥
अर्थ: आपको देखकर हर कोई बहुत आनंदित होता। आपको देखने के लिए भगवान शनिदेव भी आये।

 
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक, देखन चाहत नाहीं॥
अर्थ: लेकिन वह मन ही मन घबरा रहे थे ( दरअसल शनि को अपनी पत्नी से श्राप मिला हुआ था कि वे जिस भी बालक पर मोह से अपनी दृष्टि डालेंगें उसका शीष धड़ से अलग होकर आसमान में उड़ जाएगा) और बालक को देखना नहीं चाह रहे थे।

 
गिरिजा कछु मन भेद बढायो। उत्सव मोर, न शनि तुही भायो॥
अर्थ: शनिदेव को इस तरह बचते हुए देखकर माता पार्वती नाराज हो गई व शनि को कहा कि आप हमारे यहां बच्चे के आने से व इस उत्सव को मनता हुआ देखकर खुश नहीं हैं।

 
कहत लगे शनि, मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥
अर्थ: इस पर शनि भगवान ने कहा कि मेरा मन सकुचा रहा है, मुझे बालक को दिखाकर क्या करोगी? कुछ अनिष्ट  हो जाएगा।

 
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहयऊ॥
अर्थ: लेकिन इतने पर माता पार्वती को विश्वास नहीं हुआ व उन्होंनें शनि को बालक देखने के लिए कहा।

 
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक सिर उड़ि गयो अकाशा॥
अर्थ: जैसे ही शनि की नजर बालक पर पड़ी तो बालक का सिर आकाश में उड़ गया।

 
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी। सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी॥
अर्थ: अपने शिशु को सिर विहिन देखकर माता पार्वती बहुत दुखी हुई व बेहोश होकर गिर गई। उस समय दुख के मारे माता पार्वती की जो हालत हुई उसका वर्णन भी नहीं किया जा सकता।

 
हाहाकार मच्यौ कैलाशा। शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा॥
अर्थ: इसके बाद पूरे कैलाश पर्वत पर हाहाकार मच गया कि शनि ने शिव-पार्वती के पुत्र को देखकर उसे नष्ट कर दिया।

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो। काटी चक्र सो गज सिर लाये॥
अर्थ: उसी समय भगवान विष्णु गरुड़ पर सवार होकर वहां पंहुचे व अपने सुदर्शन चक्कर से हाथी का शीश काटकर ले आये।

बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो॥
अर्थ: इस शीष को उन्होंनें बालक के धड़ के ऊपर धर दिया। उसके बाद भगवान शंकर ने मंत्रों को पढ़कर उसमें प्राण डाले।

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे॥
अर्थ: उसी समय भगवान शंकर ने आपका नाम गणेश रखा व वरदान दिया कि संसार में सबसे पहले आपकी पूजा की जाएगी। बाकि देवताओं ने भी आपको बुद्धि निधि सहित अनेक वरदान दिये।

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥
अर्थ: जब भगवान शंकर ने कार्तिकेय व आपकी बुद्धि परीक्षा ली तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा आने की कही।

चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई॥
अर्थ: आदेश होते ही कार्तिकेय तो बिना सोचे विचारे भ्रम में पड़कर पूरी पृथ्वी का ही चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े, लेकिन आपने अपनी बुद्धि लड़ाते हुए उसका उपाय खोजा।

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥
अर्थ: आपने अपने माता पिता के पैर छूकर उनके ही सात चक्कर लगाये।

धनि गणेश कही शिव हिये हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥
अर्थ: इस तरह आपकी बुद्धि व श्रद्धा को देखकर भगवान शिव बहुत खुश हुए व देवताओं ने आसमान से फूलों की वर्षा की।

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई॥
अर्थ: हे भगवान श्री गणेश आपकी बुद्धि व महिमा का गुणगान तो हजारों मुखों से भी नहीं किया जा सकता।

मैं मतिहीन मलीन दुखारी। करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी॥
अर्थ: हे प्रभु मैं तो मूर्ख हूं, पापी हूं, दुखिया हूं मैं किस विधि से आपकी विनय आपकी प्रार्थना करुं।

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥
अर्थ: हे प्रभु आपका दास रामसुंदर आपका ही स्मरण करता है। इसकी दुनिया तो प्रयाग का ककरा गांव हैं जहां पर दुर्वासा जैसे ऋषि हुए हैं।

अब प्रभु दया दीना पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥
अर्थ: हे प्रभु दीन दुखियों पर अब दया करो और अपनी शक्ति व अपनी भक्ति देनें की कृपा करें।

                    ॥दोहा॥

श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥
अर्थ: श्री गणेश की इस चालीसा का जो ध्यान से पाठ करते हैं। उनके घर में हर रोज सुख शांति आती रहती है उसे जगत में अर्थात अपने समाज में प्रतिष्ठा भी प्राप्त होती है।

सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश॥
अर्थ: सहस्त्र यानि हजारों संबंधों का निर्वाह करते हुए भी ऋषि पंचमी (गणेश चतुर्थी से अगले दिन यानि भाद्रप्रद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी) के दिन भगवान श्री गणेश की यह चालीसा पूरी हुई।

         ॥इति श्री गणेश चालीसा ॥ 

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' श्री गणेश चालीसा

जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
अर्थ: हे सद्गुणों के सदन भगवान श्री गणेश आपकी जय

Vikas Sharma Shivaaya'

श्री शनि चालीसा:- ॥दोहा॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल। दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥ जय जय श्री शनिदेव प्रभु, स #समाज

read more
श्री शनि चालीसा:-
              ॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
 हे माता पार्वती के पुत्र भगवान श्री गणेश, आपकी जय हो। आप कल्याणकारी है, सब पर कृपा करने वाले हैं, दीन लोगों के दुख दुर कर उन्हें खुशहाल करें भगवन। हे भगवान श्री शनिदेव जी आपकी जय हो, हे प्रभु, हमारी प्रार्थना सुनें, हे रविपुत्र हम पर कृपा करें व भक्तजनों की लाज रखें।

                    ॥चौपाई॥

जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिये माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
हे दयालु शनिदेव महाराज आपकी जय हो, आप सदा भक्तों के रक्षक हैं उनके पालनहार हैं। आप श्याम वर्णीय हैं व आपकी चार भुजाएं हैं। आपके मस्तक पर रतन जड़ित मुकुट आपकी शोभा को बढा रहा है। आपका बड़ा मस्तक आकर्षक है, आपकी दृष्टि टेढी रहती है ( शनिदेव को यह वरदान प्राप्त हुआ था कि जिस पर भी उनकी दृष्टि पड़ेगी उसका अनिष्ट होगा इसलिए आप हमेशा टेढी दृष्टि से देखते हैं ताकि आपकी सीधी दृष्टि से किसी का अहित न हो)। आपकी भृकुटी भी विकराल दिखाई देती है। आपके कानों में सोने के कुंडल चमचमा रहे हैं। आपकी छाती पर मोतियों व मणियों का हार आपकी आभा को और भी बढ़ा रहा है। आपके हाथों में गदा, त्रिशूल व कुठार हैं, जिनसे आप पल भर में शत्रुओं का संहार करते हैं।

पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःख भंजन॥
सौरी, मन्द, शनि, दशनामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं। रंकहुं राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
र्पिंगल, कृष्ण, छाया नंदन, यम, कोणस्थ, रौद्र, दु:ख भंजन, सौरी, मंद, शनि ये आपके दस नाम हैं। हे सूर्यपुत्र आपको सब कार्यों की सफलता के लिए पूजा जाता है। क्योंकि जिस पर भी आप प्रसन्न होते हैं, कृपालु होते हैं वह क्षण भर में ही रंक से राजा बन जाता है। पहाड़ जैसी समस्या भी उसे घास के तिनके सी लगती है लेकिन जिस पर आप नाराज हो जांए तो छोटी सी समस्या भी पहाड़ बन जाती है।

राज मिलत वन रामहिं दीन्हो। कैकेइहुं की मति हरि लीन्हो॥
बनहूं में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चतुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलाखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महँ कीन्हों। तब प्रसन्न प्रभु हवै सुख दीन्हों॥
हे प्रभु आपकी दशा के चलते ही तो राज के बदले भगवान श्री राम को भी वनवास मिला था। आपके प्रभाव से ही केकैयी ने ऐसा बुद्धि हीन निर्णय लिया। आपकी दशा के चलते ही वन में मायावी मृग के कपट को माता सीता पहचान न सकी और उनका हरण हुआ। उनकी सूझबूझ भी काम नहीं आयी। आपकी दशा से ही लक्ष्मण के प्राणों पर संकट आन खड़ा हुआ जिससे पूरे दल में हाहाकार मच गया था। आपके प्रभाव से ही रावण ने भी ऐसा बुद्धिहीन कृत्य किया व प्रभु श्री राम से शत्रुता बढाई। आपकी दृष्टि के कारण बजरंग बलि हनुमान का डंका पूरे विश्व में बजा व लंका तहस-नहस हुई। आपकी नाराजगी के कारण राजा विक्रमादित्य को जंगलों में भटकना पड़ा। उनके सामने हार को मोर के चित्र ने निगल लिया व उन पर हार चुराने के आरोप लगे। इसी नौलखे हार की चोरी के आरोप में उनके हाथ पैर तुड़वा दिये गये। आपकी दशा के चलते ही विक्रमादित्य को तेली के घर कोल्हू चलाना पड़ा। लेकिन जब दीपक राग में उन्होंनें प्रार्थना की तो आप प्रसन्न हुए व फिर से उन्हें सुख समृद्धि से संपन्न कर दिया।

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी-मीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहि गहयो जब जाई। पार्वती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रोपदी होति उधारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ई॥
आपकी दशा पड़ने पर राजा हरिश्चंद्र की स्त्री तक बिक गई, स्वयं को भी डोम के घर पर पानी भरना पड़ा। उसी प्रकार राजा नल व रानी दयमंती को भी कष्ट उठाने पड़े, आपकी दशा के चलते भूनी हुई मछली तक वापस जल में कूद गई और राजा नल को भूखों मरना पड़ा। भगवान शंकर पर आपकी दशा पड़ी तो माता पार्वती को हवन कुंड में कूदकर अपनी जान देनी पड़ी। आपके कोप के कारण ही भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया। पांडवों पर जब आपकी दशा पड़ी तो द्रौपदी वस्त्रहीन होते होते बची। आपकी दशा से कौरवों की मति भी मारी गयी जिसके परिणाम में महाभारत का युद्ध हुआ। आपकी कुदृष्टि ने तो स्वयं अपने पिता सूर्यदेव को नहीं बख्शा व उन्हें अपने मुख में लेकर आप पाताल लोक में कूद गए। देवताओं की लाख विनती के बाद आपने सूर्यदेव को अपने मुख से आजाद किया।

वाहन प्रभु के सात सुजाना। दिग्ज हय गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँजी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्वसुख मंगल कारी॥
हे प्रभु आपके सात वाहन हैं। हाथी, घोड़ा, गधा, हिरण, कुत्ता, सियार और शेर जिस वाहन पर बैठकर आप आते हैं उसी प्रकार ज्योतिष आपके फल की गणना करता है। यदि आप हाथी पर सवार होकर आते हैं घर में लक्ष्मी आती है। यदि घोड़े पर बैठकर आते हैं तो सुख संपत्ति मिलती है। यदि गधा आपकी सवारी हो तो कई प्रकार के कार्यों में अड़चन आती है, वहीं जिसके यहां आप शेर पर सवार होकर आते हैं तो आप समाज में उसका रुतबा बढाते हैं, उसे प्रसिद्धि दिलाते हैं। वहीं सियार आपकी सवारी हो तो आपकी दशा से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है व यदि हिरण पर आप आते हैं तो शारीरिक व्याधियां लेकर आते हैं जो जानलेवा होती हैं। हे प्रभु जब भी कुत्ते की सवारी करते हुए आते हैं तो यह किसी बड़ी चोरी की और ईशारा करती है। इसी प्रकार आपके चरण भी सोना, चांदी, तांबा व लोहा आदि चार प्रकार की धातुओं के हैं। यदि आप लौहे के चरण पर आते हैं तो यह धन, जन या संपत्ति की हानि का संकेतक है। वहीं चांदी व तांबे के चरण पर आते हैं तो यह सामान्यत शुभ होता है, लेकिन जिनके यहां भी आप सोने के चरणों में पधारते हैं, उनके लिये हर लिहाज से सुखदायक व कल्याणकारी होते है।

जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अदभुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥

जो भी इस शनि चरित्र को हर रोज गाएगा उसे आपके कोप का सामना नहीं करना पड़ेगा, आपकी दशा उसे नहीं सताएगी। उस पर भगवान शनिदेव महाराज अपनी अद्भुत लीला दिखाते हैं व उसके शत्रुओं को कमजोर कर देते हैं। जो कोई भी अच्छे सुयोग्य पंडित को बुलाकार विधि व नियम अनुसार शनि ग्रह को शांत करवाता है। शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष को जल देता है व दिया जलाता है उसे बहुत सुख मिलता है। प्रभु शनिदेव का दास रामसुंदर भी कहता है कि भगवान शनि के सुमिरन सुख की प्राप्ति होती है व अज्ञानता का अंधेरा मिटकर ज्ञान का प्रकाश होने लगता है।

               ॥दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों विमल तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
भगवान शनिदेव के इस पाठ को ‘विमल’ ने तैयार किया है जो भी शनि चालीसा का चालीस दिन तक पाठ करता है शनिदेव की कृपा से वह भवसागर से पार हो जाता है।

हनुमान जी मंत्र:-
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।(रामरक्षास्तोत्रम् 23)
जिनकी मन की गति और हवा की गति, जो बुद्धिमान और विवेकपूर्ण के बीच अधिक है, मैं हवा के पुत्र श्री राम दत्त वानरों के सिर में शरण लेता हूं। इस कलि योग में हनुमान जी की भक्ति से बढ़कर भक्ति में कोई शक्ति नहीं है। राम रक्षा स्तोत्र से लिए गए हनुमान जी की शरण में जाने के लिए इस श्लोक या मंत्र का पाठ करने से हनुमान जी तुरंत साधक की विनती सुन लेते हैं और उन्हें अपनी शरण में ले लेते हैं। जो लोग प्रतिदिन हनुमान जी का ध्यान करते हैं, हनुमान जी उनकी बुद्धि से क्रोध को दूर करते हैं और शक्ति बढ़ाते हैं।

🌹बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🙏

©Vikas Sharma Shivaaya' श्री शनि चालीसा:-
              ॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, स
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile