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advocate Vibha Bajpai

अतृप्त आत्माए #समाज

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श्रेजल मिश्रा🍂

दर्द यूं ही हो जाता है सिर्फ चोट लगने से या तो भावनायें आहत होने से, कभी गिरने से नहीं होता सिर्फ एहसास जगने से दर्द यूं ही हो जाता है ।। #Zindagi #brokenheart #pyaar #yqbaba #yqdidi

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दुःख-दर्द दर्द यूं ही हो जाता है
सिर्फ चोट लगने से 
या तो भावनायें आहत होने से, 
कभी गिरने से नहीं होता
सिर्फ एहसास जगने से
दर्द यूं ही हो जाता है ।।

Sacred Heart

प्रतिस्पर्धा थी प्रेम की जिस में दिया जाना था मुझे पुरुस्कार स्वरूप प्रथम पुरस्कार में देह थी मेरी द्वितीया में था मेरे मन का वरण तृतिया पु #Poetry #पवित्रा

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प्रतिस्पर्धा थी प्रेम की
जिस में दिया जाना था मुझे पुरुस्कार स्वरूप
प्रथम पुरस्कार में देह थी मेरी
द्वितीया में था मेरे मन का वरण 
तृतिया पु

AK__Alfaaz..

#पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #साँवली_साँझ उसके अठ्ठारहवें बसंत की, अंतिम पूनम की साँझ को, ​अमावस की, ​पहली चिठ्ठी आती है, #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqquotes #bestyqhindiquotes

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उसके अठ्ठारहवें बसंत की,
​अंतिम पूनम की साँझ को,
​अमावस की,
​पहली चिठ्ठी आती है,
​उसके नाम,
​जो लाती है,
​कभी,
​उत्तरित नही हुए,
​कुछ,
​अनुत्तरित प्रश्न,
​व..कुछ प्रश्न वाचक चिन्ह,
​जो चिपके रहे सदा,
​माथे की बिंदिया बनकर,
उसके ​आखिरी सावन की,
​साँवली साँझ तक, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#साँवली_साँझ

उसके अठ्ठारहवें बसंत की,
अंतिम पूनम की साँझ को,
​अमावस की,
​पहली चिठ्ठी आती है,

AK__Alfaaz..

#पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #लक्ष्मी_की_अस्थियां साँझ ढ़ले, ​पिछली कई रातों से, ​नैनों के दरिया से एकत्रित, ​आँसुओं के, #yqbaba #yqdidi #yqhindi #bestyqhindiquotes

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​साँझ ढ़ले,
​पिछली कई रातों से,
​नैनों के दरिया से एकत्रित,
​आँसुओं के,
​ईंधन को सुलगाकर,
​वो बैठी थी..रसोई मे,
​अपने भाग्य की,
​रोटियां बनाने,
​
​वो गूँथ रही थी,
​परम्पराओं के श्मशान से मिली,
​अपने जैसी स्त्रियों की,
​और..अपनी पुरखिनों की,
​अस्थियों मे,
​पुरातात्विक वेदना का,
जल ​मिलाके, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#लक्ष्मी_की_अस्थियां

साँझ ढ़ले,
​पिछली कई रातों से,
​नैनों के दरिया से एकत्रित,
​आँसुओं के,

AK__Alfaaz..

#पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #किंजल_अक्षिता बहती नदी के, ​किनारे पर रूकी सी रेत, ​और ...उसमें, ​चलते पाँवों के, #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqquotes #bestyqhindiquotes

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बहती नदी के,
​किनारे पर रूकी सी रेत,
​और ...उसमें,
​चलते पाँवों के,
​डूबते पद्चिन्ह उसके,
​उसकी छनकती,
​पाजेब के दम घोंट रही थी,
उसके ​पाँव के,​
​तलवों मे लिपटी रेत,
​घूमना चाहती है,
​पूरी धरती,
​वो..धरती,
​जो उसके हिस्से,
​मात्र रसोई से बिस्तर तक है, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#किंजल_अक्षिता

बहती नदी के,
​किनारे पर रूकी सी रेत,
​और ...उसमें,
​चलते पाँवों के,
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