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Deepak Aggarwal

चाकू, छूरी, खंजर, तलवार सिख रखे थे सब पैंतरे खिलाड़ी ने, वो नजरो से वार कर बैठी होश उड़ गए खिलाड़ी के। #nojotophoto

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 चाकू, छूरी, खंजर, तलवार सिख रखे थे सब पैंतरे खिलाड़ी ने, वो नजरो से वार कर बैठी होश उड़ गए खिलाड़ी के।

Deepak Aggarwal

चाकू, छूरी, खंजर, तलवार सिख रखे थे सब पैंतरे खिलाड़ी ने, वो नजरो से वार कर बैठी होश उड़ गए खिलाड़ी के। #nojotophoto

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 चाकू, छूरी, खंजर, तलवार सिख रखे थे सब पैंतरे खिलाड़ी ने, वो नजरो से वार कर बैठी होश उड़ गए खिलाड़ी के।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- दूरी जब जब है बढ़ी , और बढ़ी है नेह । प्रियतम तेरी चाह में , जला रही मैं देह ।। जला रही मैं देह , बावरी बनकर घूमूं । सूझे कब अब #कविता

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कुण्डलिया :-

दूरी जब जब है बढ़ी , और बढ़ी है नेह ।
प्रियतम तेरी चाह में , जला रही मैं देह ।।
जला रही मैं देह , बावरी बनकर घूमूं ।
सूझे कब अब राह , चरण पद तेरे चूमू ।।
मिलो प्रखर जो आप , कमी हो जाए पूरी ।
कहती तुमसे आज , मिटा दो अब ये दूरी ।।१

दूरी तुमसे थी सखा , मजबूरी थी खास ।
लेकिन सच यह भी सुनों , तुम बिन रही उदास ।।
तुम बिन रही उदास, एक पल सुकूँ न आया ।
उठती है मन पीर  , तुम्हें जो संग न पाया ।।
सुनो प्रखर तुम आज , जिया पर चलती छूरी ।
बात यही है साँच , बहुत तड़पाती दूरी ।।२

१२/०५/२०२३    -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-

दूरी जब जब है बढ़ी , और बढ़ी है नेह ।
प्रियतम तेरी चाह में , जला रही मैं देह ।।
जला रही मैं देह , बावरी बनकर घूमूं ।
सूझे कब अब

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- दूरी जब जब है बढ़ी , और बढ़ी है नेह । प्रियतम तेरी चाह में , जला रही मैं देह ।। जला रही मैं देह , बावरी बनकर घूमूं । सूझे कब अब #कविता

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कुण्डलिया :-

दूरी जब जब है बढ़ी , और बढ़ी है नेह ।
प्रियतम तेरी चाह में , जला रही मैं देह ।।
जला रही मैं देह , बावरी बनकर घूमूं ।
सूझे कब अब राह , चरण पद तेरे चूमू ।।
मिलो प्रखर जो आप , कमी हो जाए पूरी ।
कहती तुमसे आज , मिटा दो अब ये दूरी ।।१

दूरी तुमसे थी सखा , मजबूरी थी खास ।
लेकिन सच यह भी सुनों , तुम बिन रही उदास ।।
तुम बिन रही उदास, एक पल सुकूँ न आया ।
उठती है मन पीर  , तुम्हें जो संग न पाया ।।
सुनो प्रखर तुम आज , जिया पर चलती छूरी ।
बात यही है साँच , बहुत तड़पाती दूरी ।।२

१२/०५/२०२३    -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-

दूरी जब जब है बढ़ी , और बढ़ी है नेह ।
प्रियतम तेरी चाह में , जला रही मैं देह ।।
जला रही मैं देह , बावरी बनकर घूमूं ।
सूझे कब अब

रजनीश "स्वच्छंद"

स्वीकार ना होगा।। चलूं उनकी निशानी पर मुझे स्वीकार ना होगा, ये रस्ता अनवरत चलता कभी इतवार ना होगा। ना कोई तीर ना तलवार फिर भी लड़ रहा हूँ म #Poetry #कविता #nojotophoto

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 स्वीकार ना होगा।।

चलूं उनकी निशानी पर मुझे स्वीकार ना होगा,
ये रस्ता अनवरत चलता कभी इतवार ना होगा।

ना कोई तीर ना तलवार फिर भी लड़ रहा हूँ म

Devesh Dixit

#उलझा_है_मन_खुद_में #nojotohindi उलझा है मन खुद में उलझा है मन खुद में मेरा, कैसे अपनी मैं बात कहूँ। हे शिव जी अब तो कृपा करो, तुमसे ही #Poetry #sandiprohila

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