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Praveen Jain "पल्लव"

#Moon छटता है जब भुजबल तब पीड़ा से कराहता है #Moon #कविता

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पल्लव की डायरी
घटते कद पर, चाँद भी सिमट जाता है
पूर्ण सौंदर्य पाकर छट भी जाता है
गुमान पालकर इतराते है लोग
स्वार्थो में अंधा हो जाता है
दर्द नही समझता परायो का
छल बल दिखाता है
 छटता है जब भुजबल 
तब पीड़ा से कराहता है
समय के चक्र में अच्छो अच्छो का
दम्भ टूट जाता है
                            प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" #Moon 
छटता है जब भुजबल तब पीड़ा से कराहता है
#Moon

Pankaj Neeraj

दिन छोटा हो रात बढ़ा था महिषासुर का उत्पात बढ़ा था वो अपना भुजबल दिखलाने को चल दिया स्वर्ग विजय पाने को कई अस्त्र उस पर मार चुके थे देव इंद्र

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 दिन छोटा हो रात बढ़ा था
महिषासुर का उत्पात बढ़ा था
वो अपना भुजबल दिखलाने को
चल दिया स्वर्ग विजय पाने को
कई अस्त्र उस पर मार चुके थे
देव इंद्र

मुंशी पवन कुमार साव "शत्यागाशि"

#संकल्प #SANKALP #resolute #shatyagashi ●◆★संकल्पी★◆● ~~~~~~~~~~~~~~ बाधाएँ कभी न आती हैं, जो जन संकल्पी होते हैं। मंजिल रहती कोसो दूर सद

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●◆★संकल्पी★◆●
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बाधाएँ कभी न आती हैं, जो जन संकल्पी होते हैं।
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👇
(Full in Caption) #संकल्प #sankalp #resolute #shatyagashi

  ●◆★संकल्पी★◆●
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बाधाएँ कभी न आती हैं,
जो जन संकल्पी होते हैं।
मंजिल रहती कोसो दूर सद

रजनीश "स्वच्छंद"

कैसी कविता।। ना कवि हूँ, ना कविता लिखता, शब्द-भाव पिरोया करता हूँ। ये देख देख दुनिया अपनी, निजमन ही रोया करता हूँ। भावों की विह्वल धारा, #Life #Truth #सच #kavita #nojotophoto

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 कैसी कविता।।

ना कवि हूँ, ना कविता लिखता,
शब्द-भाव पिरोया करता हूँ।
ये देख देख दुनिया अपनी,
निजमन ही रोया करता हूँ।

भावों की विह्वल धारा,

Chandan Kumar

#आरक्षण_पर_कविता:- करता हूँ अनुरोध आज मैं, भारत की सरकार से," प्रतिभाओं को मत काटो, आरक्षण की तलवार से…" "वर्ना रेल पटरियों पर जो, फैला आज त

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#आरक्षण_पर_कविता:-
करता हूँ अनुरोध आज मैं, भारत की सरकार से,"
प्रतिभाओं को मत काटो, आरक्षण की तलवार से…"
"वर्ना रेल पटरियों पर जो, फैला आज त

रजनीश "स्वच्छंद"

कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ।। कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ, मैं वन्दे मातरम गाऊंगा। कद तेरा जग में बढ़ा कर आया हूँ, मैं वन्दे मातरम गाऊंगा। #falconfilms19

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कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ।।

कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ,मैं वन्दे मातरम गाऊंगा।
कद तेरा जग में बढ़ा कर आया हूँ,मैं वन्दे मातरम गाऊंगा।

तेरा दूध लहू बन दौड़े रग में,यौवन भी तुझपे वार रहा।
है खेद जरा जयचंदों की,हिम्मत फिर भी न हार रहा।

तू जननी, तू माता मेरी,विश्वकर्मा रचनाकार तू ही।
तू ही भाल का चन्दन है,कुंडल कवच श्रृंगार तू ही।

तेरी आभा ही लिए चले हम,निशा-दिवस और चार पहर।
ये धरती तेरी, अम्बर तेरा,कस्बा नगर और गांव शहर।

जीवन तेरे नाम करा कर आया हूँ,मैं वन्दे मातरम गाऊंगा।
कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ,मैं वन्दे मातरम गाऊंगा।

ये भुजा तेरी, ये भुजबल तेरा,शत्रुबल क्षीण कर आया हूँ।
शत्रुदलन का भाव लिए मैं,रिपु को दीन कर आया हूँ।

तेरे शौर्य की मादकता में,बन गज रण में झूमा हूँ।
मुंडमाला लिए गले मे,हो रौद्र शत्रुदल में घूमा हूँ।

आंख न कोई उठने पाए,सजग तेरे संतान खड़े हैं।
सहिष्णु तो हम रहे सदा,कर में तीर-कमान पड़े हैं।

शोणित से लाल धरा कर आया हूँ,मैं वन्दे मातरम गाऊंगा।
कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ,मैं वन्दे मातरम गाऊंगा।

©रजनीश "स्वछंद" कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ।।

कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ,
मैं वन्दे मातरम गाऊंगा।
कद तेरा जग में बढ़ा कर आया हूँ,
मैं वन्दे मातरम गाऊंगा।
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